प्रेम की संस्कृति, करुणा की क्रांति उत्पन्न करती है, संत पापा
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, सोमवार, 25 फरवरी 2019 (रेई)˸ वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 24 फरवरी को, संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया। देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर कहा, "अति प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात"।
इस रविवार का सुसमाचार पाठ (लूक. 6,27-38) ख्रीस्तीय जीवन के एक केंद्रीय एवं विलक्षण विन्दु, "शत्रुओं से प्रेम" पर ध्यान आकृष्ट करता है। येसु के शब्द स्पष्ट हैं -''मैं तुम लोगों से, जो मेरी बात सुनते हो, कहता हूँ-अपने शत्रुओं से प्रेम करो। जो तुम से बैर करते हैं, उनकी भलाई करो। जो तुम्हें शाप देते है, उन को आशीर्वाद दो। जो तुम्हारे साथ दुर्व्यवहार करते हैं, उनके लिए प्रार्थना करो।" (पद. 27-28) संत पापा ने कहा कि ये कोई विकल्प नहीं बल्कि आदेश हैं। सभी लोगों के लिए नहीं किन्तु शिष्यों के लिए हैं क्योंकि येसु कहते हैं, तुम लोगों से जो मेरी बात सुनते हो।
शत्रुओं से प्रेम
संत पापा ने कहा कि येसु यह अच्छी तरह जानते थे कि शत्रुओं से प्रेम करना मानवीय स्वभाव से परे जाना है यही कारण है कि वे मनुष्य बन गये ताकि हम जिस स्थिति में हैं उसी स्थिति में न छोड़ दिये जाएँ बल्कि पिता के समान महान प्रेम के स्त्री और पुरूष बन सकें। यही वह प्रेम है जिसे येसु उन लोगों को देना चाहते हैं जो उन्हें सुनते हैं। यह उन्हीं के द्वारा संभव है और उन्हीं के प्रेम एवं मनोभाव के साथ हम भी, उन लोगों से प्रेम कर सकते हैं जो हमसे प्रेम नहीं करते और हमारी बुराई करते हैं।
ईश्वर के प्रेम की विजय
इस तरह येसु हर हृदय में घृणा एवं विद्वेष पर ईश्वर के प्रेम की विजय चाहते हैं। प्रेम का तर्क जिसकी पराकाष्ठा ख्रीस्त के क्रूस में है यह ख्रीस्तियों की पहचान है तथा जो भाई-बहन के रूप में सभी लोगों से मुलाकात करने हेतु बाहर जाने के लिए प्रेरित करता है किन्तु मानव की सहज प्रवृति एवं दुनिया के नियम अनुसार प्रतिकार की भावना से किस तरह बाहर निकला जा सकता है? इसका उत्तर येसु देते हैं- ''अपने स्वर्गिक पिता-जैसे दयालु बनो। दोष न लगाओ और तुम पर भी दोष नहीं लगाया जायेगा।"
येसु को सुनना
संत पापा ने कहा कि जो व्यक्ति येसु को सुनता, उनका अनुसरण करने के लिए प्रेरित होता है चाहे उसके लिए कीमत ही चुकाना क्यों न पड़े वह ईश्वर का पुत्र बन जाता है। इस तरह वह स्वर्गिक पिता के समान बनता है। वह उन चीजों को करने में सक्षम हो जाता है जिसको करने के लिए कभी सोचा ही नहीं था। जिन चीज में पहले उसे लज्जा महसूस होती थी वह अब उसे आनन्द और शांति प्रदान करता है। उसे शब्दों एवं व्यवहार से हिंसक बनने की कोई आवश्यकता नहीं। वह अपने व्यवहार में कोमलता एवं अच्छाई पाता है। वह महसूस करता है कि ये अच्छाईयाँ खुद से नहीं बल्कि ईश्वर से आती हैं। अतः उसके लिए वह घमंड नहीं करता किन्तु कृतज्ञ होता है।
प्रेम मानव प्रतिष्ठा प्रदान करता
प्रेम से बढ़कर कुछ नहीं है। वह व्यक्ति को मानव प्रतिष्ठा प्रदान करता है जबकि दूसरी ओर घृणा और द्वेष प्रतिष्ठा कम कर देते हैं। ईश्वर के स्वरूप में सृष्ट छवि को बिगाड़ देता है।
अपमान एवं गलतियों का बदला प्रेम से देने के आदेश ने एक नई संस्कृति "करूणा की संस्कृति" को उत्पन्न किया है। संत पापा ने कहा कि हमें इस आदेश को सुनना और इसका पालन अच्छी तरह करना चाहिए जो हमें सच्ची क्रांति प्रदान करता है। यह प्रेम की क्रांति है जिसके नायक हैं हर युग के शहीद। येसु हमें आश्वासन देते हैं कि हमारी बुराई करने वालों के साथ हमारे प्रेमपूर्ण वर्ताव बेकार नहीं होंगे। वे कहते हैं "क्षमा करो और तुम्हें भी क्षमा मिल जायेगी। दो और तुम्हें भी दिया जायेगा। दबा-दबा कर, हिला-हिला कर भरी हुई, ऊपर उठी हुई, पूरी-की-पूरी नाप तुम्हारी गोद में डाली जायेगी; क्योंकि जिस नाप से तुम नापते हो, उसी से तुम्हारे लिए भी नापा जायेगा।'' (37-38) यह अच्छा है। यह हमारे लिए बहुत अच्छा होगा यदि हम उदार और दयालु हैं।
बुराई पर अच्छाई की जीत संभव है
हमें क्षमा करना चाहिए क्यों ईश्वर हमें हमेशा क्षमा प्रदान करते हैं। यदि हम पूरी तरह क्षमा नहीं करते हैं तो हमें भी पूरी तरह क्षमा नहीं मिल पायेगी। दूसरी ओर यदि हमारा हृदय खुला है, यदि हम भ्रातृत्व प्रेम से क्षमा प्रदान करते हैं तथा एकता के संबंधों को मजबूत करते हैं तब हम दुनिया के सामने घोषित करते हैं कि बुराई पर अच्छाई की जीत संभव है। अक्सर हमारे लिए अच्छाईयों की अपेक्षा बुराइयों की याद करना अधिक आसान होता है। उन लोगों की ओर इशारा करना जिन्होंने इसे अपनी आदत बना ली है और वे उसके शिकार बन चुके हैं। वे अन्याय को जमा करने वाले लोग हैं जो केवल बुरी चीजों की याद करते हैं। संत पापा ने कहा कि यह सही रास्ता नहीं है हमें इसके विपरीत जाना है, अच्छे कार्यों की याद करना है, यदि कोई शिकायत करता, दूसरों के बारे बुरी बातें बोलता है तब हम उसमें रूचि न दिखायें बल्कि उसकी अच्छाइयों को प्रकट करें, यही करुणा की क्रांति है।
माता मरियम से प्रार्थना
धन्य कुँवारी मरियम हमारे हृदय को येसु के इस पवित्र शब्द (प्रेम) द्वारा स्पर्श किये जाने में मदद दे तथा बदले में पाने की आशा किये बिना अच्छा काम करने की शक्ति प्रदान करे ताकि सभी ओर प्रेम के विजय का साक्ष्य दे सकें।
इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here