संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस 

इतिहास अतीत पर चिंतन कराता एवं भविष्य का रास्ता दिखलाता

संत पाप फ्राँसिस ने कलीसियाई इतिहास के प्रोफेसरों से 12 जनवरी को वाटिकन में मुलाकात किया तथा उन्हें निमंत्रण दिया कि वे ख्रीस्त पर चिंतन करने में मदद देते रहे "जो कलीसिया के कोने के पत्थर हैं और जो इतिहास, मानव की स्मृति एवं संस्कृति में कार्य करते हैं।"

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

इटली में कलीसिया के इतिहास के प्रोफेसरों को कलीसिया की धर्मशिक्षा में उनकी सेवा के लिए धन्यवाद देते हुए संत पापा ने प्रकाश डाला कि किस तरह इतिहास जीवन का शिक्षक है किन्तु खेद प्रकट किया कि बहुत कम विद्यार्थी इसकी पढ़ाई करते हैं।

कलीसिया के इतिहास के इताली अकादमिक संघ की 50वीं वर्षगाँठ के अवसर पर सदस्यों ने संत पापा से मुलाकात की।  

इतिहास के पाठों पर चिंतन

संत पापा ने कहा, "इतिहास का अध्ययन यदि उत्साह के साथ किया जाए, तो यह आज के समाज को बहुत कुछ सिखला सकता है जो विभाजित है तथा सच्चाई, शांति और न्याय के लिए प्यासी है।"

यह पर्याप्त है यदि इसके द्वारा हम प्रज्ञा तथा युद्ध के बुरे एवं नाटकीय प्रभाव के कारण साहस के साथ चिंतन करना सीख जाएँ। युद्धों ने मनुष्यों के जीवन को दुःखमय बना दिया है। फिर भी हम अभी तक नहीं सीख रहे हैं। उन्होंने सेमिनरी, परमधर्मपीठीय विश्वविद्यालयों, सम्मेलनों एवं सेमिनार में इतिहास के विशेषज्ञों के कार्यों की सराहना की जो कलीसिया के इतिहास एवं धर्मशिक्षा का साक्ष्य एवं उसमें अपना सहयोग देते हैं।

इताली कलीसिया के इतिहास की समृद्धि

संत पापा ने कहा कि इताली कलीसिया अतीत का साक्ष्य देने में अत्यन्त समृद्ध है। उन्होंने कहा कि यह एक सम्पति है जिसको न केवल सुरक्षित रखा जाना चाहिए बल्कि भविष्य की ओर आगे बढ़ने हेतु वर्तमान में मददगार बनाना चाहिए। इटली के इतिहास पर प्रकाश डालते हुए जो उन लोगों के लिए आवश्यक संदर्भ प्रस्तुत करता है जो अतीत को समझना, उसकी गहराई में जाना तथा उसका आनन्द देना चाहते हैं, उन्होंने इतिहासकारों से आग्रह किया कि वे उसे संग्रहालय अथवा विषाद के कब्रस्थान  में तब्दील न कर दें बल्कि इसे इस तरह प्रस्तुत करें कि यह हमारे लिए सजीवन और प्रासंगिक लगे।

इतिहास के केंद्र में ईश्वर का वचन

संत पापा के अपने संदेश में मुख्य रूप से स्मरण दिलाया कि इतिहास के केंद्र एवं मूल में ईश्वर का वचन है।  

उन्होंने कहा, "एक शब्द जो लिखित रूप में पैदा नहीं होता है, वह मानव अनुसंधान से नहीं आता है बल्कि ईश्वर द्वारा दिया गया है तथा सबसे बढ़कर वह जीवन द्वारा और जीवन में प्रकट होता है।"

यह शब्द इतिहास में कार्य करता है तथा अंदर से बदलाव लाता है यही शब्द येसु ख्रीस्त हैं जो मान इतिहास को गहरे रूप से रेखांकित करते हैं और इतिहास के कालक्रम की गिनती उनके जन्म से होती है।

संत पापा ने इस बात पर ध्यान दिया कि विश्वास को, इतिहासकार या विद्वान को तथ्यों और सच्चाई के प्रति अधिक सम्मानजनक बनाना चाहिए। उसे ज्ञान के अनुमान से जुड़ी दुनियादारी से खुद को दूर कर लेना चाहिए, उदाहरण के लिए करियर या अकादमिक मान्यता की लालसा अथवा उस विश्वास से कि वह तथ्यों और लोगों को खुद के लिए आंक सकता है।

उन्हें कहा कि ख्रीस्त की उपस्थिति को देख पाने की क्षमता एवं इतिहास में कलीसिया की यात्रा हमें विनम्र बनाता तथा हमें वर्तमान से इंकार करने के लिए अतीत में शरण लेने के प्रलोभन से बचाता है।

संत पापा ने अपने संदेश के अंत में उन्हें निमंत्रण दिया कि वे ख्रीस्त पर चिंतन को अपना योगदान देना जारी रखें जो कोने के पत्थर हैं जो इतिहास मानव यादगारी एवं सभी संस्कृतियों में कार्य करते हैं।

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12 January 2019, 16:44