आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

विश्राम दिवस का अर्थ

संत पापा फ्रांसिस ने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के दौरान अपनी धर्मशिक्षा माला में तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को सही विश्राम दिवस का अर्थ बतलाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 05 सितम्बर 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को ईश्वर की दस आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।

ईश्वर की दस आज्ञाएं आज हमें प्रभु के दिन, विश्राम दिवस की ओर ले चलती है। यह हमारे लिए एक साधारण आज्ञा स्वरुप प्रतीत होती है मगर यह हमारी धारणा को गलत सिद्ध करती है। आराम करना हमारे लिए सहज नहीं है क्योंकि यह हमारे लिए सही और गलत तरीके का आराम हो सकता है। हम इसे कैसे समझ सकते हैंॽ

जीवन में मनोरंजन का स्वरुप

आज का समाज मनोरंजन और छुट्टियों की प्यासी लगती है। वर्तमान परिवेश में हम मनोरंजन के उद्योग को फलता-फूलता हुआ पाते हैं जो कई तरह के विज्ञापनों द्वारा हमारा ध्यान अपनी ओर खींचता है और हम दुनिया को एक वृहृद आदर्श मनोरंजन के मैदान स्वरुप पाते हैं जहाँ हर कोई अपने में मस्ती करते हुए दिखलाई देता है। जीवन के संदर्भ में हम आज किसी भी गंभीर और प्रभावकारी कार्य हेतु अपने को समर्पित करना नहीं चाहते बल्कि हम टाल-मटोल करते हैं। आज हम पैसा कमाते हैं जिससे हम उसका उपयोग अपनी सुख-सुविधा हेतु, अपनी संतुष्टि में उपभोग करते हैं। यह हमारे लिए उस सफल व्यक्ति के जीवन को प्रस्तुत करता है जो अपनी सुख-सुविधा हेतु विभिन्न वस्तुओं और स्थानों का उपयोग करने की क्षमता रखता है। संत पापा ने कहा लेकिन इस तरह की मानसिकता हमें अपने में असंतुष्टि प्रदान करती और हम मनोरंजन की अचेत अवस्था में रहते हैं जो आराम नहीं अपितु जीवन की हकीकतों से भागना, सच्चाई से अपने को तटस्थ करना है। आज के समान मानव ने कभी आराम नहीं किया है यद्यपि मानव ने अभी के समान अपने जीवन में कभी खालीपन का अनुभव नहीं किया है। उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा कि मनोरंजन की सारी संभावनाएं, बाहर जाना, यात्रा करना ये बहुत सारी चीजें हैं जो हमारे हृदय को परिपूर्णत प्रदान नहीं करती और न ही हमें आराम देती हैं।

आराम का अर्थ

ईश्वर की आज्ञा अपने में एक कठिनाई को ढ़ूढ़ना और उसकी गहराई तक जाने की कोशिश करना है जिससे आराम को एक नया अर्थ दिया जा सके। संत पापा ने कहा कि इस आज्ञा का एक विशिष्ट मतलब है जो हमें एक प्रेरणा प्रदान करती है। ईश्वर ने नाम में हमारा आराम करने का एक विशेष अर्थ है, “छः दिनों में प्रभु आकाश, पृथ्वी, समुद्र और उन में जो कुछ है, वह सब बनाया है और उसने सातवें दिन विश्राम किया। इसलिए प्रभु ने विश्राम-दिवस को आशीष दी है और उसे पवित्र ठहराया है।”(नि. 20.11)

यह हमारा ध्यान सृष्टि के कार्य की समाप्ति की ओर ले चलता है जहाँ ईश्वर कहते हैं,“ईश्वर ने अपने द्वारा बनाया हुआ सब कुछ देखा और यह उसको अच्छा लगा।”(उत्प.1. 31) इस भांति विश्राम दिवस की शुरूआत होती है जहाँ येसु अपने द्वारा सृष्ट चीजों पर आनन्दित होते हैं। अतः यह ईश्वर के कार्यों पर चिंतन करने और उनकी आशीष प्राप्त करने का दिन होता है।

आराम, ईश्वर के प्रति कृतज्ञता

ईश्वर की आज्ञा के अनुसार हमारे लिए आराम करने का अर्थ क्या हैॽ संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए एक अवसर है जहाँ हम चिंतन करते, ईश्वर के नाम की महिमा गाते हैं न कि अपने जीवन में टाल-मटोल करते हैं। यह हमारे लिए जीवन की सच्चाई को देखते हुए यह कहने का समय है कितना सुन्दर है यह जीवन। आराम जीवन की सच्चाई से भागने के बदले उसे ईश्वर की आशीष स्वरुप देखने की मांग करता है। हम ख्रीस्तियों के लिए विश्राम के दिन का केन्द्र-विन्दु ख्रीस्तयाग है जिसका अर्थ “कृतज्ञता” है। यह ईश्वर को धन्यवाद कहने का दिन है, जीवन के लिए धन्यवाद, उनकी करूणा और उनके द्वारा मिले सभी वरदानों के लिए कृतज्ञता प्रकट करने का दिन। रविवार हमारे लिए अन्य दिनों को खारिज नहीं करता वरन हमें उन दिनों के लिए ईश्वर का शुक्रिया अदा करते हुए अपने जीवन में शांति स्थापित करने का अवसर देता है। संत पापा ने कहा कि कितने ही लोग हैं जिनके पास मनोरंजन के कितने अवसर हैं परन्तु वे अपने जीवन में शांति का एहसास नहीं करते हैं। रविवार हमारे लिए, यह कहते हुए अपने जीवन में ईश्वर की शांति को अनुभव करने का दिन है कि जीवन बहुमूल्य है, यह अपने में सहज नहीं, यह हमारे लिए दुःखदायी है लेकिन यह कीमती है।

अच्छाई के प्रति खुलापन

अपने जीवन में सच्चे आराम की अनुभूति हम में ईश्वर का कार्य है जो हमसे इस बात की मांग करती है कि हम अपने को सभी प्रकार के अभिशाप और बुराई के आकर्षण से दूर रखें। (प्रेरितिक प्रबोधन एभन्जेली गौदियुम 83) अपने हृदय में नखुशी के भाव धारण करना आसान होता है वास्तव में, जब हम असंतुष्टि के कारणों पर अपने को बल देते हैं। कृतज्ञता और खुशी हमें अच्छाई के प्रति खुला रहने की मांग करती है जो एक व्यस्क हृदय के मनोभाव हैं। अच्छाई अपने में प्रेममय है जो अपने को कभी किसी पर नहीं थोपती है। हमें इसका चुनाव करने की आवश्यकता है।

मेल-मिलाप हेतु आहृवान

संत पापा ने कहा कि शांति अपने में एक चुनाव है जिसे हम किसी पर लाद नहीं सकते हैं जिसकी प्राप्ति हमें अनायास नहीं होती है। अपने जीवन के कटु क्षणों से बाहर निकले के लिए मानव को उस परिस्थिति से भागने के बजाय उस से शांति स्थापित करने की जरुरत है। हमारे लिए यह जरूरी है कि हम स्वयं के इतिहास से मेल-मिलाप कर लें, उन चीजों से जिन्हें हम स्वीकार करना नहीं चाहते हैं जो हमारे जीवन के कठिन अंग हैं। उन्होंने कहा,“क्या आपमें से हर कोई अपने जीवन से मेल-मिलाप कर लिया हैॽ यह हमारे लिए एक विचारनीय सवाल है, क्या मैंने अपने जीवन की घटनाओं से मेल-मिलाप किया हैॽ” सच्ची शांति वास्तव में हमें अपने जीवन को बदलने में नहीं मिलती लेकिन अपने जीवन की घटनाओं का स्वागत करने और उसी रुप में आगे बढ़ाने में होती है जैसा की वे हैं।

जीवन का चुनाव

हम अपने जीवन में कितनी बार उन ख्रीस्तियों से मिलते हैं जो खुशी की खोज करते हुए स्वयं अपने जीवन में शांति का एहसास नहीं करते बल्कि हमें सांत्वना के शब्द कहते हैं। दूसरी ओर गरीब लोग जो छोटी कृपाओं में भी अपने लिए आनंत जीवन की खुशी का अनुभव करते हैं।

विधि-विवरण ग्रंथ में ईश्वर हम से कहते हैं,“मैं तुम्हारे समाने जीवन और मृत्यु, भलाई और बुराई रख रहा हूँ। तुम लोग जीवन को चुन लो, जिससे तुम और तुम्हारे वंशज जीवित रह सकें।” (विधि.30.19) यह चुनाव कुंवारी माता मरिया की अनुज्ञाप्ति है, यह पवित्र आत्मा के प्रति हमारा खुलापन है जिसके द्वारा हम येसु ख्रीस्त के कदमों का अनुसरण करने को प्रेरित होते हैं। येसु ने अपने को पिता के लिए अर्पित किया और हमारे लिए पुनरूत्थान की राह बन गये।

जीवन ईश्वर के लिए खोलें

संत पापा ने कहा कि जीवन हमारे लिए कब सुन्दर बनता हैॽ जब हम इसके बारे में अच्छा सोचते चाहे हमारे जीवन का इतिहास कुछ भी क्यों न हो। जब हम अपने संदेह की स्थिति से बाहर निकलते जो कृपा के रुप में हमारी असंतुष्टि की दीवार को ढ़हती और हमें सच्चा विश्राम प्रदान करती है। हमारे लिए जीवन तब सुन्दर बनता जब हम अपना हृदय ईश्वर के लिए खोलते हैं जिसे स्तोत्र लेखक कहता है,“केवल ईश्वर ही मेरा आश्रय है।”(62.2) स्तोत्र के शब्द हमारे लिए कितने सुन्दर हैं, “केवल ईश्वर ही मेरा आश्रय है।”।

इतना कहने के बाद उन्होंने सभी तीर्थयात्रियों और विश्वासी समुदाय के साथ हे पिता हमारे प्रार्थना का पाठ किया और सबों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।

 

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05 September 2018, 16:46