आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा आमदर्शन समारोह के दौरान संत पापा  

ईश्वर से हमारा सच्चा संबंध

बुधवारीय आमदर्शन समारोह की धर्मशिक्षा माला में संत पापा फ्रांसिस ने विश्वासियों और तीर्थयात्रियों को ईश्वर का नाम लेने का मर्म समझाया।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 22 अगस्त 2018 (रेई) संत पापा फ्राँसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पौल षष्टम से सभागार में विश्व के विभिन्न देशों से आये हुए तीर्थयात्रियों और विश्वासियों को संहिता की आज्ञाओं पर अपनी धर्मशिक्षा माला को आगे बढ़ते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनो, सुप्रभात।
आइए हम आज ईश्वर की आज्ञा को देखें,“प्रभु, अपने ईश्वर का नाम व्यर्थ न लेना।” (नि.20.7) ईश्वर की यह आज्ञा हमें इस बात के लिए निमंत्रण देती है कि हम अपने ईश्वर के नाम को व्यर्थ और अनुचित रुप में न लें। यह हमें इन कीमती शब्दों के अर्थ को और अधिक गहराई से समझने की मांग करती है।
संत पापा ने कहा कि हम ईश्वर की इस आज्ञा को और एक बार अच्छी तरह सुनें। “तुम ईश्वर का नाम व्यर्थ न लो।” यह वाक्यांश ईब्रानी और यूनानी भाषा का अनुवादित रुप है जिसका शब्दिक अर्थ है, “तुम उसे अपने ऊपर न लो, इसे अपने लिए उपयोग न करो।”
उन्होंने कहा कि शब्द “व्यर्थ” का अर्थ हमारे लिए स्पष्ट और साफ है। इसका अर्थ “खाली और बेकार” है जिसे हम एक खाली लिफाफे के रुप में देख सकते हैं जिसमें कुछ भी नहीं है। यह पाखंडता की विशेषता है जहाँ हम औपचरिकता और झूठ को पाते हैं।

ईश्वर का नाम, परिवर्तन का कारण

धर्मग्रंथ में नाम को हम एक अंतरंग सच्चाई के रुप में पाते हैं जो वस्तुओं और विशेषकर लोगों के लिए है। नाम बहुधा प्रेरितिक कार्य की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट करता है। उदाहरण के रूप में उत्पत्ति ग्रंथ में अब्राहम (उत्प.17.5) और सुसमाचारों में पेत्रुस (यो.1.42) के नाम जो उनके जीवन में परिवर्तन की ओर हमारा ध्यान खींचता है। इसी भांति ईश्वर के नाम से सच्चे रुप में वाकिफ होना हमें अपने जीवन में परिवर्तन लाने हेतु मदद करता है, मूसा को जब ईश्वर के सच्चे नाम का पता चला तो उसके जीवन का इतिहास ही बदल गया।(निर्ग.3.13-15)
यहूदी रीति के अनुसार ईश्वर के नाम की घोषणा दण्डमोचन के उस दिन बड़े समारोह के साथ की जाती थी जब लोगों को अपने पापों से मुक्ति मिलती थी क्योंकि ईश्वरीय नाम के साथ लोग अपने जीवन में उनकी करुणा का एहसास करते थे।

ईश्वर का नाम लेने का अर्थ

संत पापा ने कहा, “ईश्वर के नाम को अपने में लेने” का अर्थ है उस सच्चाई को अपने में ग्रहण करना, ईश्वर के साथ एक मजबूत संबंध में प्रवेश करना है। हम ख्रीस्तियों के लिए यह आज्ञा इस बात की याद दिलाती है कि हमने “पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा ग्रहण किया है” जैसे कि हम इसे अपने जीवन में सदैव विधिवत पुष्ट करते, जब-जब हम क्रूस के चिन्ह से अपने को अंकित करते हैं, जो हमें अपने रोज दिन के जीवन में ईश्वर के साथ, उनके प्रेम में संयुक्त रहने को मदद करती है।

विश्वासी समुदाय के लिए गृहकार्य

संत पापा फ्रांसिस ने आमदर्शन समारोह में उपस्थित तीर्थयात्रियों और विश्वासियों से इस बात को पूछते हुए कहा कि हम किस तरह अपने परिवार में बच्चों को क्रूस का चिन्ह बनाना सिखलाते हैं। हमारे बच्चे क्रूस का चिन्ह किस तरह से बनाते हैंॽ उन्होंने इस बात पर जोर देते हुए कहा,“यह आप सबों के लिए एक गृहकार्य है आप अपने बच्चों को अच्छी तरह क्रूस का चिन्ह बनाने की शिक्षा दें।”

ईश्वर से सच्चा संबंध, हमारी वास्तविकता

उन्होंने कहा,“यह संभंव है कि हममें से कोई यह पूछ सकता है कि क्या हम ईश्वर के नाम को पाखंडता, औपरचारिकता या खालीपन में ले सकते हैंॽ “जी हाँ”, दुर्भग्यावश इसका उत्तर साकरात्मक है, “यह संभंव है।” हम अपने जीवन में ईश्वर के संग झूठा संबंध बना सकते हैं। ईश्वर कि यह आज्ञा हमें इस बात के लिए निमंत्रण देती है कि हम ईश्वर के साथ अपना संबंध पाखंडता के बिना, हम जैसे हैं वैसे ही अपने को ईश्वर के हाथों में सुपूर्द करें। आखिरकार जब तक हम अपने को ईश्वर के साथ संयुक्त नहीं करते, अपने हाथों से उनका स्पर्श नहीं करते जो हमारे जीवन के स्रोत हैं तो हम केवल सिद्धान्तों तक ही सीमित रहते हैं।
ख्रीस्तीयता हृदयों को स्पर्श करती है। क्यों संतों में हमारे हृदयों को स्पर्श करने क्षमता हैॽ क्योंकि हम उनके जीवन में अपने हृदय की गहरी भावनाओं को पाते हैं, सच्चाई, सच्चा संबंध, मूलसिद्धान्त। जीवन की ये सारी बातें हम अपने “बगल के संतों” अर्थात हमारे माता-पिता में पाते हैं जो अपने जीवन के द्वारा अपने बच्चों को सुसंगत, सरलता, ईमादारी और उदारता का उदाहरण देते हैं।

हमारी सरलता ईश्वर की महिमा

यदि ख्रीस्तियों के रुप हम बिना पाखंडता से ईश्वर का नाम लेते तो हम ईश्वर के नाम को माहिमान्वित करते हैं जिसे हम हे पिता हमारे की प्रार्थना, “तेरा नाम पवित्र किया जावे” के रुप में पाते हैं। इसके द्वारा हम कलीसिया के विश्वास को घोषित करते जो अन्यों को विश्वासी बनाती है। यदि हमारा जीवन अच्छे उदाहरणों के रुप में ईश्वर के नाम को घोषित करता तो इसके द्वारा हम अपने बपतिस्मा की सुन्दरता और ख्रीस्तयाग को एक महान उपहार स्वरुप पेश करते हैं। यह अति उत्कृष्ट रुप में हमारे शरीर के संबंध को येसु ख्रीस्त के शरीर संग संयुक्त करता है। हम उनमें निवास करते और वे हममें निवास करते हैं जो कि हमारे जीवन की सच्चाई है।
येसु ख्रीस्त के क्रूस से प्रेरित हम में से कोई भी अपने जीवन को हेय की दृष्टि से नहीं देख सकता है, कोई नहीं, चाहे हमने कितना भी बड़ा पाप क्यों न किया हो। क्योंकि हममें से प्रत्येक का नाम येसु ख्रीस्त के कांधों में अंकित है। संत पापा ने कहा कि यह उचित है कि हम अपने में येसु के नाम को उच्चरित करें क्योंकि उन्होंने हमारी बुराइयों के बावजूद हमारे नाम को अपने जीवन के अंत तक धारण किया जिससे वह अपने प्रेम को हमारे हृदयों में अंकित कर सके। यही कारण है कि ईश्वर अपनी इस आज्ञा में यह घोषित करते हैं, “तुम मुझे में बने रहो क्योंकि मैं तुममें बना रहता हूँ।”

ईश्वर सबकी सुनते

किसी भी परिस्थिति में कोई भी ईश्वर के पवित्र नाम को अपने में उच्चरित कर सकता है, जो कि निष्ठावान और कारुणमय हैं। ईश्वर किसी को कभी “न” नहीं कहते  हैं विशेष कर उन्हें जो सच्चे हृदय से उन्हें पुकारते हैं। इतना कहने के बाद संत पापा ने पुनः विश्वासी समुदाय को इस बात की याद दिलाई कि वे परिवारों में अपने बच्चों को क्रूस का चिन्ह अच्छी तरह बनाना सिखलायें।
इस तरह उन्होंने अपनी धर्मशिक्षा का अंत किया और सभी विश्वास भक्तों और तीर्थयात्रियों के संग मिलकर हे पिता हमारे प्रार्थना पाठ करते हुए सभों को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद प्रदान किया।
 

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22 August 2018, 16:28