संत पेत्रुस महागिरजाघर में देवदूत प्रार्थना के दौरान संदेश देते संत पापा संत पेत्रुस महागिरजाघर में देवदूत प्रार्थना के दौरान संदेश देते संत पापा 

ईश्वर मनुष्यों की योजनाओं को बदल देते हैं, संत पापा

वाटिकन स्थित संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्राँगण में रविवार 8 जुलाई को संत पापा फ्राँसिस ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया देवदूत प्रार्थना के पूर्व उन्होंने विश्वासियों को सम्बोधित कर येसु पर विश्वास गहरा करने हेतु प्रेरित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 9 जुलाई 2018 (रेई)˸ संत पापा फ्राँसिस ने अपने संदेश में सुसमाचार पाठ पर चिंतन करते हुए कहा। आज का सुसमाचार पाठ (मार. 6,1-6) येसु के नाजरेत में लौटने और विश्राम-दिवस पर सभागृह में शिक्षा देने को प्रस्तुत करता है। जब से, उन्होंने बाहर निकलकर आस-पास के गाँवों में जाकर उपदेश देना आरम्भ किया था तब से उन्होंने अपने गाँव में पाँव नहीं रखा था अतः पूरे गाँव के लोग अपने बेटे, जिनकी ख्याति एक प्रभावशाली गुरू एवं चंगाई दाता के रूप में समस्त गलीलिया एवं उससे भी बाहर दूर-दूर तक फैल चुकी थी, उपदेश सुनने के लिए एकत्रित थे किन्तु जिससे सफलता मनी जानी चाहिए थी, वह अब बहिष्कार में बदल गयी, जिसके कारण येसु वहाँ कुछ चंगाई के सिवा दूसरा कोई चमत्कार नहीं कर सके। उस दिन की गतिविधि को सुसमाचार लेखक संत मारकुस विस्तार से इस तरह प्रस्तुत करते हैं। "जब विश्राम-दिवस आया, तो वे सभागृह में शिक्षा देने लगे। बहुत-से लोग सुन रहे थे और अचम्भे में पड़ कर कहते थे, ''यह सब इसे कहाँ से मिला? यह कौन-सा ज्ञान है, जो इसे दिया गया है? यह जो महान् चमत्कार दिखाता है, वे क्या हैं? क्या यह वही बढ़ाई नहीं है- मरियम का बेटा, याकूब, यूसुफ़, यूदस और सिमोन का भाई? क्या इसकी बहनें हमारे ही बीच नहीं रहती?'' और वे ईसा में विश्वास नहीं कर सके।" (पद. 2-3) इस पर येसु ने कहा, "अपने नगर, अपने कुटुम्ब और अपने घर में नबी का आदर नहीं होता।" (पद.4)

सच्चाई को स्वीकार नहीं कर पाना ठोकर का कारण

संत पापा ने कहा, "हम अपने आपसे पूछें, किस तरह येसु के अपने ही शहर के लोग विस्मय से अविश्वास की ओर चले गये? संत पापा ने कहा कि वे येसु के जन्म स्थान एवं उनकी वर्तमान स्थिति के बीच तुलना करने लगे। कहने लगे कि वह एक बढ़ाई का बेटा है, उसने पढ़ाई नहीं की है फिर भी वह फरीसियों से अधिक अच्छा उपदेश कैसे दे सकता है तथा कैसे चमत्कार कर करता है। इस प्रकार वे सच्चाई को स्वीकार करने के बदले, उनका अपमान करने लगे।" 

शरीरधारण का अपमान

नाजरेथ के लोगों के अनुसार, ईश्वर इतने महान हैं कि वे एक साधारण व्यक्ति के माध्यम से नहीं बोल सकते। संत पापा ने कहा कि यह शरीरधारण का अपमान है, ईश्वर के शरीरधारण की अवहेलना जो मनुष्य की तरह सोचते, मानव के हाथ से काम करते तथा मानव हृदय से प्रेम करते हैं। एक ईश्वर जो परिश्रम करते, हमारे समान खाते और सोते हैं। इस प्रकार ईश्वर के पुत्र ने मनुष्यों की हर योजना को पलट दिया, और शिष्यों ने नहीं किन्तु प्रभु ने उनके पैर धोये। यही उनके अपमान एवं अविश्वास का कारण था, जो न केवल उस युग में किन्तु हर युग में और आज भी है।   

प्रभु का निमंत्रण

येसु द्वारा किया गया परिवर्तन अतीत और आज के उनके शिष्यों को व्यक्तिगत और सामुदायिक सत्यापन के लिए प्रतिबद्ध करता है। हमारे समय में भी हम पूर्वाग्रह के कारण सच्चाई को स्वीकार नहीं कर सकते हैं, किन्तु प्रभु आज हमें निमंत्रण देते हैं कि हम दीनता पूर्वक सुनने एवं विनम्रता पूर्वक इंतजार करने के मनोभाव को अपनाएँ, क्योंकि ईश्वर की कृपा बहुधा विस्मयजनक तरीके से प्रस्तुत होता है जो हमारी आशा के परे होता है। उदाहरण के लिए हम कलकत्ता की मदर तेरेसा पर गौर करें। एक छोटी धर्मबहन जिसे किसी ने दस रूपये भी नहीं दिये, वह गलियों में गयी एवं मरते हुए लोगों के अच्छे मरण हेतु तैयारी में उनकी मदद की। इस छोटी धर्मबहन ने प्रार्थना एवं अपने कार्यों से आश्चर्यजनक कार्य किया है। एक महिला की दीनता ने कलीसिया में दया के कार्य में महान क्रांति ला दिया। यह हमारे समय का एक अच्छा उदाहरण है। ईश्वर पूर्वग्रह नहीं करते।

ईश्वर की कृपा को ग्रहण करने के रास्ते में बाधा 

संत पापा ने कहा कि हमें अपने हृदय एवं मन को खोलना चाहिए, उस दिव्य सच्चाई का स्वागत करने के लिए जो हमसे मुलाकात करने आते हैं। इसके लिए विश्वास की आवश्यकता है। विश्वास की कमी ईश्वर की कृपा को ग्रहण करने के रास्ते में बाधक है। बपतिस्मा प्राप्त कर लोग इस तरह जीते हैं मानो कि ख्रीस्त का अस्तित्व ही नहीं है। विश्वास के चिन्ह बार-बार दुहराये जाते हैं किन्तु वे उसमें येसु और उनके सुसमाचार को देख नहीं पाते। हर ख्रीस्तीय एवं हम प्रत्येक जन अपने व्यवहार द्वारा उनके साथ संबंध गहरा करने तथा उनका साक्ष्य देने के लिए बुलाये गये हैं जो हमें सदा उदार बनने हेतु प्रेरित करता है।  

माता मरियम से प्रार्थना

संत पापा ने माता मरियम की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा, "हम माता मरियम की मध्यस्थता द्वारा प्रभु से प्रार्थना करें कि वे हमारे हृदय की कठोरता एवं मन की संकीर्णता को दूर करे ताकि हम उनकी कृपा, उनकी सच्चाई एवं अच्छाई तथा करूणा के मिशन में अपना योगदान देने के लिए अपने आपको खोल सकेंगे।"  

इतना कहने के बाद संत पापा ने भक्त समुदाय के साथ देवदूत प्रार्थना का पाठ किया तथा सभी को अपना प्रेरितिक आशीर्वाद दिया। 

 

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09 July 2018, 14:34