हमारा एक पिता है, हम अनाथ नहीं हैं, संत पापा
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, रविवार, 17 मई 2020 (रेई): संत पापा ने पास्का के 6वें रविवार को ख्रीस्तयाग में प्रार्थना का निमंत्रण देते हुए कहा, "आज हम उन लोगों के लिए प्रार्थना करते हैं जो अस्पतालों और सड़कों को साफ करते हैं, कूड़ेदानों को खाली करते और हरेक घर जाकर कचरा हटाते हैं। यह ऐसा काम है जिसको कोई नहीं देखता किन्तु यह ऐसा काम है जो जीवित रहने के लिए आवश्यक है। प्रभु उन्हें आशीष दे और उनकी सहायता करे।
उपदेश में उन्होंने आज के सुसमाचार पाठ (यो.14, 15-21) और दूसरा पाठ (1पीटर 3, 15-18) पर चिंतन किया।
येसु एक प्रतिज्ञा के साथ विदा होते हैं
संत पापा ने उपदेश में कहा कि जब येसु ने अपने शिष्यों से विदा ली तब उन्होंने उन्हें आशा प्रदान की। इस बात की आशा कि वे उन्हें अनाथ नहीं छोड़ेंगे। अनाथ होना या पिता का नहीं होना यह पृथ्वी पर कई समस्याओं की जड़ है।
संत पापा ने कहा, "हम जिस समाज में जीते हैं उसमें पिता की कमी है। अनाथ होने का मनोभाव है जो अपनात्व में और भाईचारा की भावना को भी प्रभावित करता है।"
प्रतिज्ञा का पूर्ण होना
इस प्रतिज्ञा की पूर्णता पवित्र आत्मा में होती है। पवित्र आत्मा हमें अपना ग्राहक बनाने नहीं आते, बल्कि हमें पिता तक पहुँचने का रास्ता देखाने आते हैं। जिस रास्ता को येसु ने बतलाया है।"
पवित्र त्रित्व आध्यात्मिकता
संत पापा ने कहा कि सिर्फ ईश्वर के पुत्र की ओर प्रेरित करनेवाली आध्यात्मिकता नहीं है। पिता केंद्र में हैं, पुत्र, पिता द्वारा भेजे गये थे और उन्हीं के पास वापस लौटे। पवित्र आत्मा भी पिता द्वारा भेजे गये ताकि पिता के पास पहुँचने का रास्ता दिखायें और उनका स्मरण दिलायें।
अपनेपन की भावना
संत पापा ने कहा कि हम बेटे-बेटियाँ हैं और अनाथ नहीं हैं यह चेतना शांति से जीने की कुँजी है। बड़े और छोटे दोनों ही प्रकार के युद्धों में अनाथ होने का आयाम होता है क्योंकि पिता जो शांति लाते हैं वे अनुपस्थित हैं।
परिवार में होने का मनोभाव
ख्रीस्तीय के रूप में हमें मिशन पूरा करना है जैसा कि संत पेत्रुस दूसरे पाठ में आह्वान करते हैं। हमें आशा का साक्ष्य देना है। जब दूसरे हमसे कुछ करने का आग्रह करते हैं तब हम उसे सौम्य एवं सम्मान के साथ पूरा करें, अपना अंतःकरण शुद्ध रखें। सौहार्द और सम्मान की भावना से साथ वर्ताव करना, उन लोगों की विशेषता है जो एक ही पिता की संतानें हैं। यह अपनेपन की भावना है, एक परिवार में होना है जहाँ पिता की उपस्थिति होती है। पिता ही परिवार का केंद्र होता जो सबका मूल होता है और हर एकता एवं मुक्ति का स्रोत होता है। उन्होंने पवित्र आत्मा को हमारे लिए भेजा ताकि वह हमें पिता तक पहुँचने का रास्ता दिखलाये। हमें सौहार्द, विनम्रता एवं शांति जैसी पारिवारिक मनोभावों की शिक्षा दे।
पवित्र आत्मा से प्रार्थना
अपने उपदेश के अंत में संत पापा ने विश्वासियों को प्रार्थना करने का आह्वान करते हुए कहा, "आइये, हम पवित्र आत्मा से प्रार्थना करें कि वह हमें किस तरह पिता के पास पहुँचना है उसकी याद हमेशा दिलायें। इस सभ्यता में जहाँ अनाथ होने का गहरा एहसास है हमें फिर से पिता को प्राप्त करने की कृपा प्रदान करें, पिता जो जीवन के अर्थ की चेतना प्रदान करते हैं, हरेक स्त्री और पुरूष को एक परिवार के सदस्य बना दें।
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