ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस ख्रीस्तयाग अर्पित करते संत पापा फ्राँसिस  (Vatican Media)

ख्रीस्तीय होने का अर्थ येसु को क्रूस पर भी स्वीकार कर पाना

ख्रीस्तीय वह है जो येसु के उस रास्ते को स्वीकार करता है जिसको उन्होंने हमारी मुक्ति के लिए अपनाया, वह है अपमान का रास्ता। यह बात संत पापा फ्राँसिस ने वाटिकन स्थित प्रेरितिक आवास संत मर्था के प्रार्थनालय में ख्रीस्तयाग अर्पित करते हुए प्रवचन में कही। उन्होंने कहा कि जब ख्रीस्तीय विश्वासी, पुरोहित, धर्माध्यक्ष और स्वंय पोप भी इस रास्ते को नहीं अपनाते हैं तब वे गलती करते हैं। अतः हमें प्रभु से कृपा की याचना करनी चाहिए कि हम ख्रीस्तीयता के अनुकूल जी सकें, न कि ख्रीस्तीयता का प्रयोग उच्च सफलता हासिल करने के लिए करें।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 20 फरवरी 20 (रेई)˸ आज के सुसमाचार पाठ में येसु अपने शिष्यों से पूछते हैं कि "लोग मुझे क्या कहते हैं कि मैं कौन हूँ?" "तुम मुझे क्या कहते हो?" पाठ पर चिंतन करते हुए संत पापा ने कहा कि सुसमाचार हमें येसु कौन हैं, उसे जानने के लिए प्रेरितों द्वारा लिये गये चरणों के बारे सिखलाता है। येसु को जानने के तीन चरण हैं ˸ ईश्वर द्वारा येसु को दिये गये रास्ते को जानना, विश्वास प्रकट करना एवं उनका अनुसरण करना। 

पवित्र आत्मा द्वारा येसु पर विश्वास की अभिव्यक्ति

संत पापा ने कहा कि जब हम सुसमाचार पढ़ते हैं तब हम येसु के बारे जानते हैं।  जब बच्चों को धर्मशिक्षा दी जाती है और उन्हें गिरजा लाया जाता है तब वे येसु के बारे जानने की कोशिश करते हैं किन्तु यह केवल पहला कदम है, दूसरा कदम है येसु पर विश्वास की अभिव्यक्ति।

विश्वास की अभिव्यक्ति हम अकेले नहीं कर सकते। संत मत्ती रचित सुसमाचार में येसु पेत्रुस से कहते हैं, "तुमने नहीं बल्कि पिता ने तुझमें यह प्रकट किया"। अतः हम येसु पर अपने विश्वास की अभिव्यक्ति तभी कर सकते हैं जब ईश्वर हमें पवित्र आत्मा की कृपा प्रदान करते हैं। संत पौलुस कहते हैं कि पवित्र आत्मा की शक्ति के बिना कोई भी येसु को प्रभु नहीं कह सकता। यही कारण है कि ख्रीस्तीय समुदाय को हमेशा पवित्र आत्मा की शक्ति की याचना करनी चाहिए, जिससे कि हम उन्हें ईश्वर के पुत्र स्वीकार कर सकें।  

येसु के मार्ग को क्रूस तक स्वीकार करना

संत पापा ने कहा कि येसु के जीवन का मकसद क्या था, वे क्यों आये? इस सवाल का उत्तर देने का अर्थ है उन्हें जानने के तीसरे चरण को अपनाना। संत पापा याद कराते हैं कि इसके बाद येसु अपने शिष्यों को अपने दुःखभोग, मृत्यु एवं पुनरूत्थान के बारे बतलाते हैं।  

येसु पर विश्वास करने का अर्थ है उनकी मृत्यु, उनके पुनरूत्थान पर विश्वास करना न कि यह घोषणा करना कि आप ईश्वर हैं और वहीं पूर्ण विराम कर देना बल्कि हमें घोषणा करना चाहिए कि वे हमारे लिए आये, हमारे लिए मरे और जी उठे, उन्होंने हमें जीवन दिया और हमारे मार्गदर्शन के लिए पवित्र आत्मा की प्रतिज्ञा की। येसु पर अपने विश्वास की अभिव्यक्ति करने का अर्थ है पिता के उस रास्ते को अपनाना जिन्होंने येसु के लिए अपमान का रास्ता चुना। संत पौलुस फिलीपियों को लिखते हैं, "ईश्वर ने अपने पुत्र को इस संसार में भेजा जिन्होंने अपने को दीन बनाया, दास का रूप धारण किया, अपमानित होने दिया और यहाँ तक की मृत्यु, क्रूस की मृत्यु तक आज्ञाकारी बने रहे।" यदि हम येसु के रास्ते को स्वीकार नहीं करते हैं जो अपमान का रास्ता है जिसको उन्होंने हमारी मुक्ति के लिए चुना है, तब न केवल हम ख्रीस्तीय कहलाने के लायक नहीं हैं बल्कि हम येसु के उस फटकार के योग्य हैं जिसको उन्होंने पेत्रुस पर लगाई, "हट जाओ शैतान।"

जो अपमान के रास्ते पर नहीं चलता वह ख्रीस्तीय नहीं

संत पापा ने गौर किया कि शैतान ठीक से जानता था कि येसु ईश्वर के पुत्र हैं फिर भी येसु उसकी घोषणा को अस्वीकार करते हैं जब वे पेत्रुस को दूर हटने के लिए कहते हैं क्योंकि शैतान येसु के रास्ते को स्वीकार नहीं करता।

संत पापा ने कहा कि येसु की घोषणा करना वास्तव में येसु के रास्ते को स्वीस्कार करना है जो दीनता और अपमान का रास्ता है। जब कलीसिया इस रास्ते पर नहीं चलती है तब वह गलती करती है, वह दुनियादारी के रास्ते पर चलती है।

उन्होंने कहा कि जब हम अच्छे ख्रीस्तियों को देखते हैं जो अच्छे विचार रखते किन्तु धर्म को दयालुता अथवा मित्रता के सामाजिक विचार के दायरे में रखने के भ्रम में रहते हैं; जब हम उन पुरोहितों को देखते हैं जो कहते हैं कि वे येसु का अनुसरण करते किन्तु सम्मान एवं वैभव की खोज करते, दुनियादारी के रास्ते को अपनाते हैं तब वे येसु का अनुसरण नहीं करते बल्कि अपनी खोज करते हैं। भले ही वे खुद को ख्रीस्तीय बतलाते हैं किन्तु वे ख्रीस्तीय नहीं हैं क्योंकि वे येसु के रास्ते को नहीं अपनाते जो एक अपमान का रास्ता है। संत पापा ने कलीसिया के इतिहास की याद की कि कई धर्माध्यक्षों एवं संत पापाओं ने भी दुनियादारी का जीवन जीया। वे अपमान के रास्ते को नहीं जानते थे उन्होंने उसे नहीं स्वीकारा। संत पापा ने कहा कि हमें इससे सीख लेनी चाहिए क्योंकि यह सच्चा रास्ता नहीं है।   

जीवन और प्रेरिताई में ख्रीस्तीयता

संत पापा ने उपदेश के अंत में विश्वासियों को निमंत्रण दिया कि वे ख्रीस्तीयता की कृपा के लिए प्रार्थना करें, ख्रीस्तीयता का प्रयोग ऊंचाई हासिल करने के लिए नहीं बल्कि येसु का अनुसरण, उनके रास्ते पर अपमान सहने तक करने के लिए करें।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

20 February 2020, 16:37
सभी को पढ़ें >