अमेज़ॅन: स्वयंसेवकों द्वारा मीठे पानी के कछुओं व ट्रैकाज की रक्षा
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
अमाजोनास, ब्राजील, शुक्रवार 17 फरवरी 2022 (वाटिकन न्यूज) : अमाजोनियन कछुओं और ट्रैकाज (अमेज़ॅन नदी के पीले-धब्बेदार कछुए) के मांस और अंडे हमेशा मनुष्यों के लिए अत्यधिक मूल्यवान होते हैं और प्रोटीन की एक महत्वपूर्ण स्रोत के रूप में विशेष रूप से नदियों के शुष्क मौसम के दौरान "रिबेरिन्होस" (नदी के किनारे रहने वाले लोग) के आहार का हिस्सा होते हैं।। खाने के लिए उनका उपभोग उतनी बड़ी समस्या नहीं है, बल्कि समस्या क्षेत्र के बड़े शहरों, जैसे मनौस, सैंटारेम, बेलेम और टेफे में अवैध व्यापार और बिक्री से है। कछुआ तस्करों द्वारा विकसित एक बर्बर और व्यवस्थित प्रथा के कारण प्रजातियाँ विलुप्त होने की कगार पर हैं।
अमाजोनास और पारा के राज्यों में विकसित एक पहल द्वारा इन प्रजातियों को शिकारियों से बचाने और संरक्षित करने की आवश्यकता के बारे में जागरूकता बढ़ायी जा रही है। पर्यावरण "पे-डी-पिंचा" परियोजना चेलोनियन कछुओं के लिए एक सामुदायिक प्रबंधन कार्यक्रम है, जो स्वयंसेवकों के काम पर आधारित है और ब्राजील के पर्यावरण और नवीकरणीय प्राकृतिक संसाधन संस्थान (आईबीएएमए) के सहयोग से फेडरल यूनिवर्सिटी ऑफ अमेज़ॅनस (यूएफएएम) द्वारा प्रबंधित किया जाता है। जिसने, 22 वर्षों की गतिविधि में, 18 नगर पालिकाओं में विभाजित पूरे क्षेत्र में 6 मिलियन छोटे कछुओं को पानी में वापस भेजा है। अमाजोनास के 15 राज्यों में और पारा के 3 राज्य में, 122 विभिन्न समुदाय बसे हुए हैं।
प्रजातियों का संरक्षण और सामुदायिक प्रबंधन
चेलोनियन कछुए सरीसृप परिवार का हिस्सा हैं, ये समुद्री और मीठे पानी दोनों में पाये जाते हैं। उनके शरीर पर एक प्रकार का कड़ा आवरण होता है, जो उन्हें शिकारियों से बचाता है। वर्तमान में, चेलोनियन की 250 से अधिक प्रजातियां हैं। हमारी कहानी के नायक "बिचोस डी कैस्को" हैं, उन्हें इस क्षेत्र में "ट्रेकाज" के नाम से जाना जाता है: कछुए जो 90 साल तक जीवित रह सकते हैं। वे अंडा देने वाले जानवर हैं और वे हर बार औसतन 15 से 30 अंडे देती हैं। वे आमतौर पर झीलों के किनारे गड्ढे खोदते हैं, अंडों को कीचड़ और पत्तियों से ढक देते हैं और यहीं पर "रिबेरिन्होस", स्वयंसेवक और "पे-डी-पिंचा" परियोजना के सदस्य चेलोनियन कछुओं की प्रजातियों को बचाने में शामिल होते हैं।
1999 में तेर्रा सांता और पारा शहर के पिराराका झील की बड़ी मछली पकड़ने वाले नावों के जाल से बचाने के लिए, "पे-डी-पिंचा" परियोजना शुरु की गई। इसमें यूएफएएम विश्वविद्यालय द्वारा प्रशिक्षण और अभ्यास प्रक्रिया के सभी चरणों में वहाँ के समुदायों को शामिल किया जाता है। प्रशिक्षक और समुदाय के सदस्य एक साथ गड्ढे की पहचान करते हैं, निगरानी करते हैं और अपने प्राकृतिक आवास में अंडे एकत्र करते हैं। अंडों को खतरे वाले क्षेत्रों से संरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित करते हैं। एक तरह की नर्सरी में, घरों के करीब रेत में चूजे काफी बड़े हो जाते हैं तो क्षेत्र के निवासी बड़े आनंद के साथ उन्हें झीलों में छोड़ देते हैं।
नीलसिन्हा डे येसुस अमाराल फरेरा एक स्वयंसेवी पर्यावरण एजेंट है। वे बताती हैं कि स्वयंसेवक अंडे की तलाश में स्टायरोफोम बक्से के साथ सुबह 3 बजे से ही निकल जाते हैं। लगभग 28,000 लोग "पे-दे-पिंचा" के सदस्य हैं। यह पिछले कुछ वर्षों में पूरे अमाज़ोनिया में सबसे बड़ी स्वयंसेवी परियोजना बन गई है। इन जगहों पर आप जो देख रहे हैं वह एक वास्तविक परिवर्तन है जो घर से शुरू होता है और दोस्तों, पल्लियों और स्कूलों तक फैलता है, जब तक कि यह शिकारियों के कानों तक नहीं पहुंच जाता। नीलसिंहा कहती हैं, "मेरे पति के साथ यही हुआ था: वह शिकारियों में से एक था और अब वह इस क्षेत्र का सबसे बड़े संरक्षकों में से एक है। उसने बहुत सारे लोगों को जागरुक किया। हमने महसूस किया है और समुदाय को दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि इसी तरह का संरक्षण और प्रबंधन मछली और पौधों के लिए भी किया जा सकता है और इसलिए, हमने वनों में आग लगाना बंद किया और साथ ही वनों की कटाई को कम कर दिया है। "
कलीसिया, परियोजना का ऐतिहासिक भागीदार
"पे-डी-पिंचा" के समन्वयक और अमेज़ॅन के संघीय विश्वविद्यालय के प्रोफेसर पावलो सीज़र मचाडो बताते हैं कि संस्था के साथ साझेदारी के अलावा वे हर साल नए छात्रों को कार्यक्रम में काम करने के लिए प्रशिक्षित करते हैं। कलीसिया की इसमें एक मौलिक, ऐतिहासिक भूमिका है। यह 1990 के दशक की शुरुआत से ही संरक्षण के प्रयासों में सबसे आगे रही है। यह अधिक से अधिक समुदायों तक पहुंचने में कामयाब है और उनके साथ जुड़कर उन्हें ट्रेकेज की रक्षा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करती है।
प्रोफेसर पावलो बताते हैं कि परियोजना में उन क्षेत्रों की सभी पर्यावरणीय समस्याओं पर चर्चा करने के साथ-साथ, आय उत्पन्न करने के स्थायी विकल्पों की तलाश की जाती है। "पे-दे-पिंचा" परियोजना प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और पर्यावरण जागरूकता पर भी कार्य करता है, एक सतत विकास के लिए "जो न केवल पारिस्थितिक रूप से सही है, बल्कि आर्थिक रूप से टिकाऊ और सामाजिक रूप से न्यायसंगत भी है।" इसके अलावा, "पे-दे-पिंचा" पर्यावरण शिक्षा के क्षेत्र में "एक सहयोगी निगरानी अनुसंधान और सामुदायिक कार्रवाई परियोजना" के माध्यम से शिक्षकों को भी प्रशिक्षित करता है।
"पे-दे-पिंचा" के अभिन्न पारिस्थितिकी दृष्टिकोण और संत पापा फ्राँसिस ने विश्वपत्र लौडातो सी में व्यक्त किए गए दृष्टिकोण में गहरा संबंध है। प्रकृति के भीतर न केवल जानवर, नदी, पेड़ को अलग तत्वों के रूप में देखना, लेकिन सबसे बढ़कर एक बहुत बड़ी श्रृंखला के हिस्से के रूप में देखना जो इस समग्र दृष्टि की बदौलत ग्रह पर जीवन को बनाए रखना संभव बनाती है।"
अमेज़ोनिया में दैनिक जीवन की पारिस्थितिकी
नीलसिन्हा कहती हैं, "यह पर्यावरण के लिए हमारा योगदान है।" वे उस वातावरण के माध्यम से "मानव जीवन की गुणवत्ता में एक अभिन्न सुधार लाने के लिए" तत्काल प्रयासों की आवश्यकता के बारे में संत पापा के विचारों के साथ अपनी सहमति व्यक्त करती है जिसमें हम रहते हैं "जिस तरह से हम सोचते हैं, महसूस करते हैं और कार्य करते हैं" (लौदातो सी ' 147)। नीलसिन्हा का यह भी मानना है कि महामारी ने पर्यावरण के साथ हमारे संबंधों को बेहतर बनाने की आवश्यकता पर चिंतन को उजागर किया है।
अंत में, प्रोफेसर पावलो कहते हैं, "परियोजना अमेज़ॅन के एक छिपे हुए कोने में शुरू हुई और धीरे-धीरे इसके बढ़ने के लिए रास्ते मिल गए। समुदाय के सदस्य और कार्यकर्ता खुद को समर्पित करने में प्रसन्न थे। छात्र खुशी से परियोजना को समृद्ध करते थे यहां तक कि पर्यावरण के संबंध में इतनी सारी परस्पर विरोधी स्थितियों का सामना किया। 'पे-दे-पिंचा' ने हमेशा हमारे सामान्य घर और सृष्टिकर्ता के लिए उत्साह के साथ काम करने की कोशिश की है। यही हमें प्रेरित करता है! जो हमारी ओर मुड़ते हैं, हम उनकी जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते यह हमारा मिशन है, न केवल 'संरक्षण' कार्यक्रम, बल्कि 'रिबेरिन्होस' समुदायों की सहायता करना, जो हमारे पास आते हैं और हमारी भूमि की मदद करना चाहते हैं, ताकि हम इसकी सुंदरता को पुनः प्राप्त कर सकें।"
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