अफगानिस्तान में तालिबान के विरोध में एक रैली में भाग लेती एक महिला अफगानिस्तान में तालिबान के विरोध में एक रैली में भाग लेती एक महिला 

अफगानिस्तान में हमलों की आशंका से भयभीत ख्रीस्तीय

अफगानिस्तान के ख्रीस्तीय देश में तालिबान के उत्पीड़न के एक नए दौर के लिए भयभीत हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वॉशिंगटन, मंगलवार, 24 अगस्त 2021 (मैटर्स इंडिया)- एक अफगानी ख्रीस्तीय नेता ने सहायता संगठन इंटरनेशनल क्रिश्चियन कंसर्न (आईसीसी) को बताया, "हम लोगों को अपने घरों में रहने के लिए कह रहे हैं क्योंकि अभी बाहर जाना बहुत खतरनाक है।"

उन्हें डर है कि हमले होने में कुछ ही समय बाकी है। ख्रीस्तीय नेता ने कहा, "यह (हमला) माफिया शैली में किया जाएगा। तालिबान कभी भी इन हत्याओं की जिम्मेदारी नहीं लेगा।"

उन्होंने कहा, "कुछ परिचित ख्रीस्तियों को फोन के द्वारा धमकी मिल चुकी है। फोन में अज्ञात लोगों ने कहा है, 'हम आपके पास आ रहे हैं।"'

अफगानिस्तान में मुसलमानों की संख्या 99 प्रतिशत से भी अधिक है जिनमें से अधिकांश सुन्नी हैं। ख्रीस्तियों की संख्या बहुत कम है और उसमें काथलिकों की संख्या करीब 200 है। वहाँ बौद्ध, हिन्दू और बाहाई धर्मों को मानने वाले कुछ लोग भी रहते हैं।   

अफगानिस्तान में ख्रीस्तियों की कुल संख्या करीब 10,000 से 12,000 के बीच है जिन्होंने ईस्लाम से ख्रीस्तीय धर्म को अपनाया है। उत्पीड़न के कारण ख्रीस्तीय समुदाय सार्वजनिक रूप से अपना आपको प्रकट नहीं करता तथा लोगों की नजरों से बचता है।  

शरिया कानून के अनुसार इस्लाम धर्म का त्याग करने पर मौत की सजा मिल सकती है। ख्रीस्तीय धर्म अपनाने वाले अक्सर मुस्लिम चरमपंथी समूह के शिकार होते हैं।

अफगानिस्तान की राजधानी काबुल पर तालिबान ने 15 अगस्त को कब्जा कर लिया और अफगानिस्तान के राष्ट्रपति असरफ घनी उसी दिन देश छोड़कर भाग गये।

तालिबान में इससे पहले 1996 से 2001 तक अफगानिस्तान में कब्जा किया था। उस समय शरिया लागू था। कई तरह की पबंदियों के अलावा, संगीत वाद्ययंत्र बजाने पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था, और लड़कियों को स्कूल जाने की अनुमति नहीं थी।

ख्रीस्तीय नेता ने कहा, "तालिबान शासन ख्रीस्तियों के लिए कठिन होगा। जब किसी गाँव में तालिबान का कब्जा हो जाता है तो सभी लोगों को प्रार्थना करने के लिए मस्जिद जाना पड़ता है।"  

आईसीसी की रिपोर्ट में कहा गया है कि अफगानिस्तान के कुछ उत्तरी हिस्सों में तालिबान ने पहले ही शरिया का सख्त कानून लागू कर दिया है जिसके तहत पुरूषों को दाढ़ी बढ़ाना और महिलाओं को किसी पुरूष रिश्तेदार के बिना बाहर नहीं निकलना है, इस तरह जीवन बिलकुल खतरनाक हो चुका है।

"ख्रीस्तियों को डर है कि तालिबान उनके बच्चों को ले जायेंगे जैसा कि नाईजीरिया और सीरिया में होता है। बालिकाओं को तालिबान लड़ाकूओं के साथ शादी करने के लिए मजबूर किया जाएगा एवं लड़कों को सैनिक बनने के लिए मजबूर किया जाएगा।"  

सताए गए ख्रीस्तियों का समर्थन करनेवाले एशिया में गैर-सांप्रदायिक मिशन ओपन डोर्स के फील्ड डायरेक्टर ने एक बयान में कहा, "यह अफगानिस्तान के नागरिकों के लिए हृदय विदारक है और एक ख्रीस्तीय होना खतरा है।"

उन्होंने कहा, "यह पूरे देश के लिए एक अनिश्चित स्थिति है न कि केवल विश्वासियों के लिए।"

मानवीय मामलों के समन्वय के लिए संयुक्त राष्ट्र कार्यालय के अनुसार, 21 मई तक, इस वर्ष अफगानिस्तान में संघर्ष से लगभग 100,000 लोग विस्थापित हुए हैं। तब से यह आंकड़ा दोगुने से भी ज्यादा हो गया है।

काथलिक कलीसिया के उदार संगठन एड टू द चर्च इन नीड ने अंतरराष्ट्रीय समुदाय को प्रोत्साहन दिया है कि वह अफगानिस्तान के नागरिकों के मानव अधिकार की रक्षा हेतु आवाज उठाये।

हेन-गेल्डर्न ने "अफगानिस्तान के इतिहास में इस गंभीर परेशान के समय में" लोगों से प्रार्थना करने का आह्वान किया है।

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24 August 2021, 15:22