संत पापा फ्रांसिस के गुरू फादर जेलिक्स का निधन
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
हंगरी, मंगलवार, 16 फरवरी 2021 (वीएनएस)- हंगरी के येसु समाजियों ने पुष्टि दी कि फादर जेलिक्स का निधन परेशानी किन्तु आध्यात्मिक परितृप्ति के साथ हुई। उन्होंने ख्रीस्तीय आध्यात्मिकता में कई किताबें लिखी हैं तथा चिंतन प्रार्थना स्कूल की भी स्थापना की है।
1927 में बुडापेस्ट में जन्में फादर ने द्वितीय विश्व युद्ध के अंत में सैन्य स्कूल में भाग लेने नूरेमबर्ग भेजे जाने पर युद्ध के प्रभाव को देखा था।
वे 1946 को हंगरी वापस लौटे जहाँ उन्होंने ख्रीस्त के लिए जीने का निश्चय किया तथा येसु समाज में प्रवेश किया। पर यह आसान नहीं था। हंगरी उस समय कम्यूनिस्ट शासन के अधिन था जो ख्रीस्तियों एवं अन्य धर्मों के खिलाफ थे।
जेसुईट पुरोहित को दो साल बाद 1948 में, कई अन्य युवा जेसुइट्स के साथ, अपने मूल देश हंगरी छोड़ने के लिए मजबूर किया गया था। हालाँकि, उन्होंने अपनी आध्यात्मिक यात्रा को नहीं छोड़ी। उन्होंने बेल्जियम में लुवेन के काथलिक विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र की पढ़ाई करने से पहले जर्मनी में अध्ययन किया। 1956 में, वे चिली भेजे गये और उसके एक साल बाद अर्जेंटीना गये, जहाँ 1959 में उनका पुरोहिताभिषेक हुआ।
वे वहाँ ईशशास्त्र के प्रोफेसर और कई युवा जेसुइट्स के आध्यात्मिक निदेशक बन गए। कुछ समय पहले हुए एक साक्षात्कार में फादर जेलिक्स ने प्रकट किया था कि जेस्विट फादर जॉर्ज मारियो बेर्गोलियो उनके विद्यार्थियों में से एक हैं। अब वे पोप फ्रांसिस बन गये हैं।
भावी पोप को शिक्षा देना
फादर जालिक्स ने कहा था, "मैं ईशशास्त्र में कुछ तकनीकी लघु पाठ्यक्रम पढ़ाया करता था क्योंकि हमारे पास लंबे और छोटे पाठ्यक्रम हैं।"उन्होंने पुष्टि दी थी कि उन कोर्सों में भाग लेनेवालों में संत पापा फ्राँसिस भी थे।
अर्जेंटीना में सन् 1976 में सामाजिक एवं शैक्षणिक कार्य करते समय फादर जेलिक्स का अन्य पुरोहितों के साथ अपहरण हो गया था। वामपंथी कार्यकर्ताओं, संघ नेताओं, और सामाजिक कार्यकर्ताओं के बड़े पैमाने पर दमन के दौरान उन्हें पांच महीनों के लिए कैद किया गया था, जिसे "नीच युद्ध" के रूप में जाना जाता है। किन्तु इन सब के बावजूद एक जेस्विट के रूप में उन्होंने अपने कार्यों को नहीं छोड़ा। 1977 में फादर जेलिक्स अमरीका गये और उसके एक साल बाद जर्मनी गये जहाँ उन्हें द्वितीय विश्व युद्ध का परिणाम झेलना पड़ा।
एकांत आध्यात्मिक साधना आश्रम
1984 में उन्होंने जर्मनी में एक आध्यात्मिक साधना आश्रम की स्थापना की। यह उन ख्रीस्तियों के लिए तीर्थस्थल बन गया जो एकांत में चिंतन करना चाहते हैं।
अंततः वे 2017 में हंगरी लौटे जो यूरोपीय संघ का सदस्य बन गया है और अब हंगरी अपने आध्यात्मिक गुरू को खोकर शोकित है।
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