ख्रीस्तीय विरोधी हिंसा के 11 साल बाद भी विश्वास में वृद्धि
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
25 अगस्त 2008 को कंधमाल के ख्रीस्तियों के लिए सबसे बुरा दिन था जब हिन्दू नेता स्वामी लक्ष्मानन्द सरस्वती की 23 अगस्त को हत्या हो जाने के बाद, हत्या का आरोप ख्रीस्तियों पर लगाते हुए उनपर हिंसक हमले किये गये थे। हिंदु चरमपंथियों द्वारा दंग जो महीनों तक बेरोक-टोक चला, करीब 100 लोग मारे गये, हजारों घायल हुए, 300 गिरजाघर और 6,000 घरों को ध्वस्त कर दिया गया। करीब 50,000 लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए, जिनमें से अधिकांश लोगों को जंगलों में शरण लेनी पड़ी, जहाँ कुछ लोग भूख, प्यास और सांप काटने से भी मृत्यु के शिकार हो गये थे।
कटक-भुनेश्वर के महाधर्माध्यक्ष जॉन बरवा जिनके अधिकार - क्षेत्र में कंधमाल भी आता है, कंधमाल कांड की 11वीं वर्षगाँठ पर कहा कि "ख्रीस्तियों का विश्वास बढ़ रहा है, लोग नहीं डरते हैं और वे किसी भी चुनौती का सामना ईश्वर पर विश्वास एवं भरोसा के साथ कर सकते हैं।
महाधर्माध्यक्ष बारवा ने कहा, "उन्होंने हमारे लोगों और गिरजाघरों को जलाया किन्तु पवित्र आत्मा की आग हमारे लोगों में येसु एवं कलीसिया के प्रति प्रेम की ज्वाला से भर देता है।"
सिस्टर मीना ईश्वर को धन्यवाद देने के लिए जीवित
अत्याचार की शिकार सिस्टर मीना ललिता बारवा कंधमाल में अपने ख्रीस्तीय भाई-बहनों की याद करती हैं जो अभी भी पीड़ित हैं किन्तु विश्वास करते हैं। हैंडमेडर्स ऑफ मेरी धर्मसमाज की सदस्य एवं महाधर्माध्यक्ष बारवा की भतीजी सिस्टर मीना ने कहा, "जी हाँ हमारा विश्वास और हमारी आशा मजबूत है, यह जानते हुए कि ईश्वर हमें कभी गिरने नहीं देंगे।"
अत्याचार के दौरान उनके साथ बलत्कार हुआ और एक पुरोहित के साथ, उन्हें नंगा घुमाया गया था। उत्तेजित भीड़ ने उनका कत्ल करने और उन्हें जला डालने की योजना बनायी थी किन्तु एक पुलिस अधिकारी के हस्तक्षेप से भीषण अग्निकांड को रोका गया। हमला के दौरान अपना अनुभव बतलाते हुए उन्होंने क्रूक्स से कहा कि उन्हें मानसिक और शारीरिक रूप से पूर्ण एवं सच्ची गरीबी का सामना करना पड़ा। कपड़ों के छोटे टुकड़ों के अलावा उनके पास तन ढकने के लिए कुछ नहीं था।
उन्होंने कहा, "मेरी शुद्धता को भ्रष्ट करने का प्रयास किया गया, मैंने आज्ञापालन में सबकुछ को ईश्वर को समर्पित कर दिया। ईश्वर ने मुझे चंगा किया, शुद्ध किया, उनमें मैंने अपनी सुरक्षा पायी, मैंने अनुभव किया कि मैं उनकी प्यारी पुत्री हूँ, मैंने दुःख और प्रेम का अर्थ समझा, मैंने मेरे लिए ईश्वर के प्रेम और उनके लिए मेरे प्यार को समझा।"
सिस्टर मीना के लिए कंधमाल दिवस ईश्वर से कृपा प्राप्त करने और उनसे जुड़े रहने का अवसर है। यद्यपि यह घटना उनके शरीर में एक कांटा के समान है किन्तु वे उसके लिए रोना अथवा चिंता करते रहना नहीं चाहती हैं बल्कि हर दिन ईश्वर को याद करतीं हैं। उन्होंने इस जीवन को सार्थक और खुशी से जीने एवं ईश्वर को धन्यवाद देने का निश्चय किया है। उन्होंने कहा, "मैं ऐसा कहती हूँ क्योंकि उन्होंने मुझे जीवित रखा है ताकि मैं उन्हें धन्यवाद देती रहूँ। मैं जानती हूँ कि पीड़ा में ईश्वर की कृपा मेरे साथ है।"
बुलाहट के लिए बसंत ऋतु
कंधमाल में करीब 7,30,000 लोगों के बीच ख्रीस्तियों की संख्या 20 प्रतिशत है। जिनमें से करीब 80 प्रतिशत आदिवासियों की संख्या है और 20 प्रतिशत दलितों की संख्या। समाज में दोनों ही प्रकार के लोगों को गरीबी, अशिक्षा, भेदभाव एवं उत्पीड़न का सामना लम्बे समय से करना पड़ा है।
हालांकि, महाधर्माध्यक्ष बरवा ने कहा कि कंधमाल के निवासी होने में काथलिक गर्व महसूस करते हैं। उनके बीच बुलाहट की संख्या में भी वृद्धि हुई है। उन्होंने बतलाया कि भारत के करीब सभी धर्मसमाजों में कंधमाल के कम से कम एक पुरोहित अथवा धर्मबहन जरूर हैं।
यह दिखलाता है कि कंधमाल में विश्वास बढ़ रहा है तथा विश्वास का यह बीज कंधमाल से पूरे भारत की कलीसिया में बुलाहट के एक नए वसंत को जन्म दे रहा है।
कंधमाल में अत्याचार के शिकार लोग अभी भी न्याय की आस में हैं। महाधर्माध्यक्ष बरवा ने हाल ही में उन लोगों के लिए एक समीक्षा याचिका दायर किया, जिन्हें कोई मुआवजा नहीं मिला है।
शहादत
महाधर्माध्यक्ष ने ईसाई विरोधी हिंसा कंधमाल में अपने विश्वास के लिए मरने वालों पर शोध करने के लिए एक पुरोहित को भी नियुक्त किया है, जो औपचारिक रूप से धर्मप्रांतीय स्तर पर शहादत के कारणों और उन्हें संत घोषित किये जाने की पहली प्रक्रिया पर कार्य करेंगे। धर्मप्रांतीय स्तर पर शोध प्रक्रिया पूरी हो जाने पर आगे की जाँच के लिए मुद्दे को वाटिकन को समर्पित किया जाएगा।
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