राजस्थान के आदिवासी राजस्थान के आदिवासी 

आदिवासियों पर राज्य की चाल से कलीसिया के धर्मगुरु परेशान

आदिवासी जो अन्य धर्मों को अपनाते हैं उन्हें आदिवासी प्रतिष्ठा और मिलने वाले लाभ को हटाने की योजना झारखंड सरकार बना रही है।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

राँची, सोमवार 10 दिसम्बर 2018 (उकान) : भारत के काथलिक आदिवासी धर्मगुरु झारखंड सरकार की उस योजना से परेशान हैं जिसके तहत जो आदिवासी अपने पारंपरिक सरना धर्म को छोड़ कर अन्य धर्म को स्वीकार किये हैं उनसे उनकी पहचान और मिलने वाले लाभ से बरी कर देगी। सरकार की इस योजना से हजारों आदिवासियों को उनकी उन्नति के लिए मिलने वाले सामाजिक लाभ से वंचित होना पड़ेगा।

आदिवासियों को विभाजित करने का प्रयास

आदिवासी ख्रीस्तीय बहुल धर्मप्रांत सिमडेगा के धर्माध्यक्ष विन्सेंट बरवा ने कहा, "यह आदिवासी लोगों को अगले वर्ष राज्य और राष्ट्रीय चुनावों से पहले धर्म के आधार पर विभाजित करने का एक जानबूझकर किया गया प्रयास है।"

राज्य चुनाव अगले वर्ष 2019 के अंत में है, जबकि राष्ट्रीय चुनाव अप्रैल में हैं।

मीडिया रिपोर्टों में कहा गया है कि हिंदू भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) द्वारा संचालित झारखंड राज्य सरकार चाहती है कि भाजपा की नेतृत्व वाली संघीय सरकार के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी उन आदिवासियों को ‘आदिवासी प्रतिष्ठा’ और मिलने वाले लाभ को हटाने की घोषणा करे, जिन्होंने अन्य धर्मों को अपनाया है।

भारतीय धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के आदिवासी कार्यालय के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष बरवा ने उका न्यूज को बताया कि सरकार की चाल विनाशकारी है और हम सभी उनके कृत्यों पर नजर रख रहे हैं।

 सरना धर्म को मानने वाले आदिवासियों के अखिल भारतीय समूह की अगुवाई में देव कुमार धान जैसे धर्मनिरपेक्ष नेता ने उका न्यूज को बताया कि सरकार राजनीतिक लाभ की तलाश में है।

3 दिसंबर को, उन्होंने संघीय सरकार के प्रतिनिधि,  झारखंड राज्य की गवर्नर द्रौपदी मुर्मू को एक ज्ञापन दिया, जिसमें उन्होंने "धर्म के आधार पर आदिवासी लोगों का विभाजन करने की चाल" को रोकने के लिए कहा।

आदिवासी मतदाताओं की आबादी के आधार पर राज्य में आदिवासी उम्मीदवारों के लिए 28 निर्वाचन क्षेत्र आरक्षित हैं। यदि आदिवासी प्रतिष्ठा समाप्त करने का प्रस्ताव पास होता है, तो सीटों की संख्या 10 हो जाएगी और रात भर में ही गैर-आदिवासी लोग अन्य 18 सीटों के हकदार हो जाएंगे।

श्री धान ने कहा कि आधिकारिक तौर पर, झारखंड की आबादी के 26 प्रतिशत लोग याने 32 मिलियन आदिवासी लोग हैं, लेकिन आदिवासी प्रतिष्ठा समाप्ति की घोषणा होने पर आदिवासियों की जनसंख्या 12 प्रतिशत तक कम हो जाएगी।

जनगणना के रिकॉर्ड के अनुसार झारखंड में 8.6 मिलियन आदिवासी लोग हैं, जिनमें से 3.24 मिलियन हिंदू बने हैं और 1.33 मिलियन ख्रीस्तीय बने हैं। छोटी संख्या में मुस्लिम, बौद्ध, सिख और जैन बने हैं।

श्री धान ने कहा कि सरकार के इस कदम से दूरगामी प्रभाव पड़ेगा, क्योंकि यह न केवल लोगों के सामाजिक लाभों को प्रभावित करेगा बल्कि प्राकृतिक संसाधनों जैसे भूमि, जल और जंगलों के उपयोग में सरकारों के नीतिगत निर्णयों को भी प्रभावित करेगा।

इस कदम के समर्थक अदूरदर्शी

श्री धान ने कहा कि इस कदम के समर्थक अदूरदर्शी हैं।

सरना विकास समिति (सरना विकास मंच) की अगुआई करने वाली मेघा उराँव ने सरकार की योजना का समर्थन किया और कहा कि यह धर्मपरिवर्तन को समाप्त कर देगा और उन लोगों को वापस लाएगा जिन्होंने सरना धर्म छोड़ दिया था।

आदिवासी नेता बाबूलाल मुंडा इस बात पर सहमत हुए कि सरकारी लाभ जैसे नौकरी में आरक्षण और शिक्षा के लिए वित्तीय सहायता अन्य धर्मों को स्वीकार करने वाले आदिवासी लोगों को नहीं दी जानी चाहिए।

हालांकि, आदिवासी नेताओं का कहना है कि हिंदू धर्म में परिवर्तित होने वाले लोगों को लाभ से वंचित नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि सरना धर्म व्यापक रूप से हिंदू धर्म का हिस्सा है।

काथलिक पुरोहित और वकील फादर पीटर मार्टिन ने कहा कि आदिवासी लोगों का विघटन संवैधानिक शर्त का उल्लंघन करेगा कि नागरिकों को धर्म के आधार पर भेदभाव नहीं किया जाना चाहिए। इस कदम से राज्य में भारी विद्रोह होगा क्योंकि इससे लाखों लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।

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10 December 2018, 17:22