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पोप बेनिफस 8वें जिन्होंने प्रथम जयन्ती की घोषणा की पोप बेनिफस 8वें जिन्होंने प्रथम जयन्ती की घोषणा की 

पोप बोनिफस 8वें और प्रथम जयन्ती का विचार

1300 में पवित्र वर्ष का "आविष्कार": एक यादगार वर्ष, 1 जनवरी 1300 की उत्पत्ति और कारण।

वाटिकन न्यूज

शाम का वक्त हैं। रोम की सड़कों पर हलचल तेज़ होती जा रही हैं। लोग दौड़ रहे हैं, कुछ लोग तेजी से चल रहे हैं: वे संत पेत्रुस महागिरजाघर की ओर बढ़ रहे हैं। आशा से उत्साहित पुरुष और महिलाएँ, जल्दी पहुंचने के लिए उत्सुक हैं। कुछ लोग वहाँ पहुँचकर, प्रतीक्षा कर रहे हैं। चर्चा कोलाहल बनती जा रही है। रोमवासियों का अनुरोध है कि पोप उन्हें पूर्ण दण्डमोचन प्रदान करें।

प्रत्यक्षदर्शी

जुबली की उत्पत्ति की एक असाधारण गवाही, कार्डिनल जैकोपो कैटानी देली स्टेफनेस्की कुछ इस प्रकार देते हैं। कार्डिनल जिन्होंने ख्रीस्तीय इतिहास के पहले पवित्र वर्ष को देखा और जीया, इसकी घोषणा पोप बोनिफस 8वें ने 1300 में की थी, जिसके बारे कार्डिनल अपने लेख, दी चेंत सेउ इयूबिलेयो अन्नो लिबेर में लिखते हैं। उस समय वे संत पेत्रुस महागिरजाघर के कैनन और वेलाब्रो के संत जॉर्ज के कार्डिनल डीकन थे। हम उनके चेहरे को भी जानते हैं, जिसे तस्वीर (पॉलीप्टिक) में चित्रित किया गया है, जिस पर उनका नाम अंकित है, जिसको उनके समय के सबसे महत्वपूर्ण कलाकार, जोतो ने प्रमाणित किया था। पॉलीप्टिक एक उत्कृष्ट कृति है जिसको संभवतः संत पेत्रुस महागिरजाघर की ऊंची वेदी के लिए बनाई गई है।

कार्डिनल एक उच्च सुसंस्कृत, धनी और शक्तिशाली व्यक्ति थे जिन्होंने पोप सेलेस्टीन पाँचवें की, फिर पोप बोनिफस 8वें की सेवा की।

उनका जीवन काल दो शताब्दियों के बीच रहा और उन्होंने कुछ ऐतिहासिक रचनाएँ लिखीं। और उन्हीं की कहानी का अनुसरण करके हम उस क्षण की असाधारण प्रकृति का पुनर्निर्माण कर पा रहे हैं और उन सामाजिक और सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को पारदर्शी रूप से समझा कर रहे हैं जिन्होंने इसकी शुरूआत को निर्धारित किया।

जुबली की घोषणा का इतिहास

इतिहासकार और सांस्कृतिक मानवविज्ञानी, प्रोफेसर अगोस्तिनो पैराविचिनी बग्लिआनी, हमें उस यादगार वर्ष की याद दिलाते हैं: कार्डिनल "स्टेफनेस्की का दस्तावेज बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वे एक प्रत्यक्षदर्शी थे। हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास उनकी रिपोर्ट है जिसमें कार्डिनल ने तारीख लिखी है: यह 1 जनवरी 1300 है।

पराविचिनी कहते हैं, “एक सदी से दूसरी सदी में प्रवेश का सफर लोगों में इस विचार को जन्म दिया कि पोप उन्हें एक पूर्ण दण्डमोचन प्रदान कर सकते थे, अतः रोमवासी शाम के समय संत पेत्रुस महागिरजाघर की ओर दौड़े और पूर्ण दण्डमोचन का इंतजार करने लगे। यही शुरूआती बिन्दु था। पोप बोनिफस 8वें संत पेत्रुस महागिरजाघर में नहीं थे बल्कि पोप के आवास में थे जो उस समय लातेरन में था। उस दिन कुछ नहीं हो सका।” उन्हें बड़ी अपेक्षा थी। कुछ दिनों बाद 17 जनवरी को रोमवासियों का एक और महत्वपूर्ण प्रदर्शन हुआ। वेरोनिका के रूमाल का जुलूस, अर्थात्, कलवारी पहाड़ की ओर क्रूस यात्रा के दौरान येसु को दिये रूमाल पर अंकित ईसा मसीह के चेहरे की तस्वीर का एक अवशेष, जो संत पेत्रुस महागिरजाघर में प्रतिष्ठित था।

प्रोफेसर पराविचिनी ने बतलाया कि कार्डिनल स्टेफनेस्की अपने संस्मरण में लिखते हैं, “उस जुलूस के दौरान, पोप की उपस्थिति में, पूर्ण दण्डमोचन का अनुरोध करने के लिए एक बड़ा लोकप्रिय उत्साह फिर जा उठा। पोप बोनिफस 8वें यह पता लगाने की कोशिश करने लगे कि क्या 1300 से पहले कोई और जयंती मनायी गई थी? कार्डिनल स्टेफनेस्की इसके बारे सटीक जानकारी देते हुए बताते हैं: पोप ने जांच की और अभिलेखागार में कुछ भी नहीं मिला, लेकिन फिर भी एक निश्चित बिंदु पर निर्णय लिया गया।"

एक भावनात्मक अनुभूति एक धर्मवैधानिक साधन बन गई

इतिहासकार ने कहा, “यह बोनिफस 8वें का महान संचालन है: यह समझना कि एक अपेक्षा थी, एक लोकप्रिय उत्साह था जिसके लिए पूर्ण दण्डमोचन की आवश्यकता थी। पोप इस भावनात्मक अनुभूति को वास्तव में कानूनी साधन में बदल दिये: जुबली की घोषणा पहली बार लातेरन में की गई और दूसरी बार, अधिक आधिकारिक तरीके से, 22 फरवरी को, संत पेत्रुस के सिंहासन के पर्व के दिन की गई। इस तरह ख्रीस्तीयों की पहली जयंती, 22 फरवरी 1300 से अगले वर्ष की शुरुआत तक मनायी गई। यह एक महान आध्यात्मिक और कलीसियाई कार्य है जो पोप बोनिफस 8वें की एक उपकरण प्रदान करने में, सक्षम होने की महान क्षमता की गवाही देता है, लोकप्रिय उम्मीदों को एक बहुत ही सटीक अवधारणा मिली है जो जुबली में सटीक रूप से परिवर्तित हुई। सदी का हर परिवर्तन भय, आशा, अपेक्षाएँ जगाता है और सबसे बढ़कर परिवर्तन की इच्छा, खुद को नवीनीकृत करने, शुद्ध करने, शून्य से शुरू करने की इच्छा पैदा होती है। 1300 की सुबह में यह सब इस "आविष्कार" में तब्दील हो गया।

प्रेरित संत पेत्रुस और पौलुस की भूमिका

22 फरवरी के जुबली घोषणापत्र (बुल), अंतिकोरूम हाबेत फिदा रिलेशियो के साथ, श्रद्धालु अब संत पेत्रुस और संत पौलुस के दो महागिरजाओं का दौरा करने के बाद पूर्ण दण्डमोचन प्राप्त कर सकते थे।

प्रोफेसर पराविचिनी कहते हैं कि यह रोचक है क्योंकि पेत्रुस और पौलुस दो उत्कृष्ट रोमन प्रेरित हैं, जिन पर परमधर्मपीठीय प्राधिकार, पोप का पद भी आधारित है, और इसलिए इसका एक गहरा प्रतीकात्मक विशेषता भी है। पोप बोनिफस 8वें की पहली जयंती में पेत्रुस और पौलुस की यह दोहरी उपस्थिति, हर चीज़ से बढ़कर है। शुरुआत में विश्वासियों को केवल इन दो महागिरजाओं में जाना पड़ता था और इसका अर्थ कम नहीं है बल्कि इसके विपरीत दो प्रेरितों; पेत्रुस और पौलुस के महान अधिकार पर प्रकाश डालता है।”

धर्मपत्र कहता है, “...वे उपरोक्त बेसिलिका में श्रद्धा के साथ प्रवेश करेंगे और सचमुच पश्चाताप और पापस्वीकार करेंगे, और जो लोग इस वर्तमान सौवें वर्ष और किसी भी भविष्य के सौवें वर्ष में सच्चा पश्चाताप करेंगे, उन्हें न केवल पूर्ण और बहुत बड़ी, बल्कि वास्तव में उनके पापों की पूरी क्षमा मिलेगी।

हम स्थापित करते हैं कि जो लोग हमारे द्वारा दिए गए समान दण्मोचन में भाग लेना चाहते हैं, उन्हें उपरोक्त महागिरजाघर में प्रवेश करना चाहिए, यदि वे रोमन हैं, तो कम से कम 30 बार, निरंतर या एक दिन छोड़ एक दिन और दिन में कम से कम एक बार; यदि वे तीर्थयात्री या विदेशी हैं, तो उन्हें 15 दिनों तक ऐसा ही करना चाहिए।"

प्रतीकात्मक आंकड़ा

पोप बोनिफस 8वें एक ऐसे पोप हैं जिन्होंने एक सदी से दूसरी सदी को पार किया के अंत का पोप है। उनके मन में 100 का अंक था, जो एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रतीकात्मक आंकड़ा है। इसके अलावा, जयंती को तकनीकी रूप से "सौवें वर्ष की जयंती" के रूप में परिभाषित किया गया है।

पुराने नियम के अनुसार, यहूदी जयंती हर 50 साल में पड़ती थी, लेकिन बोनिफेस 8वें इसे एक मॉडल के रूप में नहीं लेता और एक शताब्दी का प्रस्ताव करते हैं। लेकिन उनके इस निर्णय को बरकरार नहीं रखा गया क्योंकि 1300 के केवल पचास साल बाद यहूदी जयंती के पुराने नियम के अनुसार 1350 में, दूसरी ख्रीस्तीय जयंती मनाई गई। 1350 की जयंती की घोषणा करनेवाले पोप क्लेमेंट 6वें थे और उन्होंने रोमवासियों के एक आग्रह के जवाब में ऐसा किया था।

प्रथम जयन्ती वर्ष की मुख्य बातें

प्रोफेसर पराविचिनी प्रथम जयन्ती वर्ष की विशेषताओं पर प्रकाश डालते हैं : “प्रथम जयन्ती वर्ष के दौरान, पोप बोनिफस 8वें ने 4 सार्वजनिक उत्सव का आयोजन किया : 1 जनवरी को प्रथम, 22 फरवरी को दूसरा, 18 नवम्बर को तीसरा और चौथा 1301 के शुरू में। अपेक्षाकृत कम सार्वजनिक समारोह मनाये गये क्योंकि वर्ष 1300, शायद पोप बोनिफेस 8वें के स्वास्थ्य से जुड़े कारणों से, एक ऐसा वर्ष था जिसमें पोप रोम के बाहर अपने गृहनगर अनान्यी में अधिक समय बिता रहे थे। यह अजीब है लेकिन तथ्य यही है : 1300 ई. पोप बोनिफेस 8वें के लिए 'कम रोमन' वर्ष रहा। पवित्र बृहस्पतिवार के तुरंत बाद वे निकले और अनान्यी तथा अर्गोनी राजदूत के पास गये, जिन्होंने हमारे लिए उस समय के कई महत्वपूर्ण जानकारी छोड़ दी क्योंकि वे एक प्रत्यक्षदर्शी थे।

2 नवंबर को, फॉक्स के मठाधीश ने आरागॉन के राजा फ्रेडरिक तृतीया को लिखा: “पोप और सभी कार्डिनल सही सलामत हैं; दरअसल, तीन साल तक पोप का स्वास्थ्य इतना अच्छा कभी नहीं रहा, जितना अब है।" इन शब्दों से, प्रोफेसर पैराविसिनी कहते हैं, "हम समझते हैं कि पोप बोनिफेस 8वें संभवतः कई महीनों के लिए रोम से बाहर थे, शायद स्वास्थ्य कारणों से अपने गृहनगर के महल में रह रहे थे। उनकी वापसी 18 नवंबर को संत पेत्रुस और संत पौलुस महागिरजाघर के समर्पण समारोह के अवसर पर हुई। यह हमें रोमन प्रेरितों के दो पर्वों के महान महत्व के बारे में भी बताता है।"

एक अनियोजित कार्यक्रम

जयंती के दौरान हमेशा तीर्थयात्रियों का भारी तांता लगा रहा। जुबली के दौरान का इतिहास हमें इमारतों और विशेष रूप से महागिरजाघर के निर्माण या विस्तार की आवश्यकता दिखाता है। हम जानते हैं कि सड़क व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है। हालाँकि, पोप बोनिफेस 8वें की जयंती के दौरान, ऐसा प्रतीत नहीं होता है कि कोई निर्माण कार्य हुआ हो। प्रोफेसर पराविचिनी के अनुसार, अपेक्षाकृत प्राचीन युग से जुड़े दस्तावेजी कारणों से, "यह कहा जा सकता है कि जुबली वर्ष ने पूरे यूरोप से कई विश्वासियों को आकर्षित किया। रोम में आनेवाले विश्वासियों की संख्या, कल्पना के माध्यम से भी, निर्धारित करना संभव नहीं है। यह निश्चित रूप से शहर के लिए एक महान घटना थी, लेकिन कोई निर्माण कार्य नहीं हुआ क्योंकि यह एक अनियोजित घटना थी। पोप बोनिफेस 8वें लगभग आश्चर्यचकित रह गये। उन्हें अभी भी नहीं पता था कि 1 जनवरी और 22 फरवरी को जयंती होगी या नहीं, इसलिए बड़े शहरी कार्य संभव नहीं थे। केवल एक उदाहरण है, लेकिन यह पूरी तरह से निश्चित नहीं है, वाटिकन आवास पर बना प्रसिद्ध बरामदा है जिसे बोनिफेस 8वें ने वाटिकन पैलेस पर बनाया था, जिसमें एक 'शिलालेख था जिसे 17वीं शताब्दी की शुरुआत में रोमन विद्वानों ने पढ़ा, जिसके अनुसार इसे वर्ष 1300 में बनाया गया होगा। और यह एक कारण है कि इसे जुबली से जोड़ा गया, लेकिन पैराविचिनी कहते हैं कि वस्तुनिष्ठ रूप से इसे पूरी तरह निश्चित नहीं कहा जा सकता।"

रोम में आनेवाली भारी भीड़ के संचलन को सुविधाजनक बनाने के लिए किए गए कुछ उपायों का पता चलता है। संत पेत्रुस महागिरजाघर की दिशा में सड़कों पर भीड़ होती थी, जो एक प्रतिष्ठित महाकवि दांते अलीगेरी से मिलती है, जो पवित्र वर्ष के तीर्थयात्री के रूप में रोम आये थे। इन्फेर्नो (नरक) (18. 28-33) में वे शापितों की यात्रा की दोहरी दिशा की तुलना उन तीर्थयात्रियों की यात्रा से करते हैं जो या तो कस्तेल संत अंजेलो के पास पुल को पार करके संत पेत्रुस महागिरजाघर गए या वापस लौट जाते थे:

"...रोमियों की तरह, बहुत सारे सैनिकों के लिए,

जयन्ती का वर्ष, पुल के ऊपर

लोगों के सुसंस्कृत तरीके से पार होने का आदी;

कि सभी का चेहरा एक तरफ

महल की ओर, और वे संत पेत्रुस के पास जाते हैं,

दूसरे किनारे से वे पहाड़ की ओर जाते हैं।"

वेरोनिका का रूमाल

जयंती के दौरान, पवित्र अवशेषों ने एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और वेरोनिका का रूमाल निश्चित रूप से सबसे प्रसिद्ध रहा, जिसने तीर्थयात्रियों को संत पेत्रुस की ओर आकर्षित किया, जिसको परंपरा ने शहादत के स्थान और ख्रीस्त के उत्साही प्रेरित पेत्रुस को दफ़नाने स्थान के रूप में पहचाना। पराविसिनी के अनुसार, 1300 में,  वेरोनिका का रूमाल, पोप बोनिफेस 8वें को जुबली और पूर्ण दण्डमोचन की अवधारणा के निर्माण का सुझाव देने में विशेष भूमिका निभाई। चौदहवीं शताब्दी के दौरान और स्वाभाविक रूप से पंद्रहवीं शताब्दी के दौरान, वेरोनिका की छवि का व्यापक प्रसार हुआ, चर्मपत्र पर और फिर प्रिंट दोनें के माध्यम से पुन: प्रस्तुत किया गया।

मध्य युग की पिछली शताब्दियों और आधुनिक युग में वेरोनिका के रूमाल का प्रसार निस्संदेह जुबली से जुड़ा है, लेकिन 1300 की जुबली में खास नहीं। क्योंकि इस जयन्ती में संत पेत्रुस और पौलुस के दो महागिरजा प्रमुख थे। विशेष रूप से, अंतिम का अत्यधिक लोकप्रिय अवशेषों के साथ कोई सटीक संबंध नहीं है। सबसे महत्वपूर्ण कार्यक्रम संत पेत्रुस महागिरजाघर में और वेरोनिका में हुए। पैराविचिनी ने कहा कि “स्वभाविक रूप से, सदियों से और विशेष रूप से बाद की जुबली में, यह स्पष्ट है कि रोमन अवशेषों ने बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।"

रोम नया येरूसालेम

"पोप बोनिफेस 8वें को ख्रीस्तीय जयंती के इस महान आध्यात्मिक साधन को बनाने के लिए प्रेरित किया गया था, शायद इसलिए भी क्योंकि कुछ साल पहले, 1291 में आक्रे के संत जॉन के पतन के साथ, धर्मयुद्ध का महान सपना कम से कम उस अवधि के लिए समाप्त हो गया था और एक निश्चित अर्थ में जयंती के साथ, रोम एक नया येरूशलेम बन गया, आध्यात्मिक क्षेत्र में एक नई केंद्रीयता प्राप्त की।

अगोस्तिनो पराविचिनी कहते हैं, “मेरा मानना है कि आक्रे के संत जॉन के पतन के साथ मध्ययुगीन धर्मयुद्ध के अंत और येरूशलेम साम्राज्य के अंत के बीच का संयोग एक अत्यंत महत्वपूर्ण मार्ग है।"

मध्यकालीन विश्व में संख्याओं का महत्व

प्रोफेसर चिंतन करते हैं, पोप बोनिफेस 8वें दो शताब्दियों के पोप थे और शायद संख्याओं का यह प्रतीकवाद जिसमें एक ओर, शताब्दी वर्ष, दूसरी ओर दो सौवें पोप होने के तथ्य ने बहुत योगदान दिया, इसलिए भी कि मध्य युग में प्रतीकवाद और प्रतीकात्मक संख्याएँ बहुत मायने रखती थीं और इसलिए यह निर्णय लिया गया कि भविष्य की जयंती की अवधि एक शताब्दी होनी चाहिए, शायद यह इस तथ्य से भी जुड़ा है कि उन्होंने रोमन पोप की वैध श्रृंखला में प्रेरितिक उत्तराधिकार में 200 की संख्या पर कब्जा कर लिया था।

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15 May 2024, 16:25