संत पापाः क्रोध एक भयंकर बुराई है
वाटिकन सिटी
संत पापा फ्रांसिस ने अपने बुधवारीय आमदर्शन समारोह के अवसर पर संत पापा पौल षष्टम के सभागार में एकत्रित सभी विश्वासियों और तीर्थयात्रियों का अभिवादन करते हुए कहा, प्रिय भाइयो एवं बहनों, सुप्रभात।
आज हम क्रोध पर चिंतन करेंगे। हम अपनी धर्मशिक्षा माला में गुणों और अवगुणों पर चिंतन कर रहे हैं, आज क्रोध के विषय में बातें करेंगे। यह विशेष कर अंधेरेपन का अवगुण है जिसे हम शारीरिक दृष्टिकोण से सहज ही पता लगा सकते हैं। क्रोध से ग्रस्ति व्यक्ति इसे अपने में छुपाये नहीं रखा सकता है, हम इसे उसके शरीर की गतिविधियों से पहचान सकते हैं, यह उसकी आक्रामकता में, बेदम सांसों में, उसकी गंभीर और भौंहें चढ़ाने में अभिव्यक्त होता है।
क्रोध के भुक्तभोगी अन्य
यह अति तीक्ष्ण अभिव्यक्ति है, क्रोध वह अवगुण है जो हमें राहत प्रदान नहीं करती है। यदि यह अन्याय से उत्पन्न होता तो बहुधता यह अपराधी के विरुद्ध नहीं, बल्कि पहले दुर्भाग्यपूर्ण रुप में दूसरों पर प्रकट होता है। संत पापा ने कहा कि हम उन व्यक्तियों को देखते हैं जो कार्यस्थल में अपने क्रोध को धारण करते हैं, वहाँ वे अपने को शांत और व्यवस्थित दिखलाते, लेकिन घर में वे अपनी पत्नी और बच्चों के साथ असहनीय रुप में पेश आते हैं। क्रोध अपने में प्रसारित होने वाली बुराई है, इसमें हमारी नींद उड़ाने की क्षमता है, यह हमारे तर्क और वितर्क के मार्ग को अवरूद्ध कर देता है।
मानवीय संबंध में खटास का कारण
यह वह दुगुण है जो मानवीय संबंध को तोड़ देता है। यह दूसरों की विभिन्नता को स्वीकारने में असक्षम होता है विशेषकर जब उनके जीवन के विकल्प हमारे अपने जीवन से भिन्न होते हैं। यह किसी एक से बुराई में पेश आने में खत्म नहीं होता बल्कि हर चीज को अपना शिकार बनाता है। यह दूसरे व्यक्ति को अपने क्रोध और नाराजगी के कारण स्वरूप देखता है। इस भांति कोई भी उसके बात करने के लहज, उसके दैनिक हाव-भाव, उसके तर्क और विर्तक करने के तरीकों से नफरत करने लगता है।
क्रोध जितनी जल्द खत्म उतना अच्छा
संत पापा ने कहा कि जब हमारा संबंध ऐसे स्थिति तक पहुंच जाती है तो हम स्पष्टता को खो देते हैं। क्योंकि क्रोध का एक चरित्र अपने में वह है जो समय के साथ अपने में कम नहीं होता है। ऐसी परिस्थितियों में, भार कम करने के बदले यह अपने को शांत और दूर करते हुए और भी बड़ा कर लेता है। यही कारण है कि प्रेरित संत पौलुस हमें कहते हैं कि इसका सामना सीधे तौर पर करते हुए आपस में मेल-मिलाप करने की कोशिश करें, “सूरज के डूबने तक अपना क्रोध कायम नहीं रहने दें।” संत पापा ने कहा कि यह हमारे लिए महत्वपूर्ण है कि सारी चीजें शीघ्र ही, सूर्यास्त के पूर्व ही विखंडित हो जाती हों। यदि कोई नसमझी दिन के समय में दो लोगों के बीच उत्पन्न होती और वे एक दूसरे को नहीं समझते और अपने को दूर पाते हैं, तो ऐसी स्थिति में रात्रि को शैतान के हाथों में सुपुर्द नहीं किया जाना चाहिए। यदि ऐसा होता तो असहमति और गलती के कारणों पर चिंतन हमें रात भर जगायेगा, जिसके फलस्वरुप हम अपने को नहीं बल्कि दूसरे को दोष देते रहेंगे। क्रोध में व्यक्ति के साथ ऐसा ही होता है हम सदैव दूसरों के दोष देते है, हम अपनी गलती स्वीकरने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।
हम क्षमा करें
संत पापा फ्रांसिस ने कहा कि येसु हे पिता हमारे की प्रार्थना में मानवीय संबंधों के लिए विन्ती करने को कहते हैं जहाँ हम अपने संबंधों को श्रेष्ट नहीं बल्कि सदैव टूटा पाते हैं। हमें जीवन में, अपने गलती करने वालों के दोषों को क्षमा करने की जरुरत है वैसे ही जैसे कि हमने सबों के संग कभी भी उचित रूप में प्रेम नहीं किया है। किसी को हमने उनके प्रेम के बदले में उचित रुप में प्रेम नहीं किया है। हम सभी अपने में पापी हैं, हरएक जन, हम इस बात को न भूलें, हम दोषीदार हैं और हमें अपना हिसाब चुकाना है और इसीलिए हमें चाहिए कि हम यह सीखें कि हमें कैसे एक दूसरे को क्षमा करना है जिससे हमें भी क्षमा मिल सकें। संत पापा ने कहा कि मानव अपने में एक साथ नहीं रहता यदि वह क्षमा करने की कला का अभ्यास नहीं कहता है, जहाँ तक यह मानवीय रुप में संभव है। क्रोध का सामना हम भलाई के द्वारा करते हैं, हृदय के खुलेपन में, अपनी नम्रता और धैर्य में।
क्रोध एक भयंकर बुराई
क्रोध के बारे में एक अंतिम बात जिसे कहा जाना है। यह अपने में एक भयंकर बुराई है, जिसके कारण हिंसा और युद्ध की उत्पत्ति होती है। इलियड अपने पद्ध में अकिलिस के क्रोध का वर्णन करते हुए कहते हैं कि यह “अनंत बुराइयों का कारण” होगा। लेकि हर चीज को क्रोध से उत्पन्न होती अपने में गल नहीं है। प्राचीन समझ के अनुरूप हम सबों में एक चिड़चिड़े स्वभाव का अस्तित्व है जिसे हम अपने में नकार नहीं सकते हैं। हमारे आवेश कुछ हद कर हमारी अचेतन मन के अंग हैं, वे होती हैं क्योंकि वे हमारे जीवन के अनुभव हैं। हम क्रोध की उत्पत्ति के उत्तरदायी नहीं है लेकिन सदैव इसे विकास के जिम्मेदार है। कभी-कभी सही चीजों के लिए क्रोधित होना अपने में अच्छा है। यदि मनुष्य अपने में कभी क्रोधित न हो, यदि वह अन्याय के प्रति चिड़चिड़ा न हो, यदि वे कमजोरों के प्रति हो रहे अन्याय के प्रति अपने हृदय के अंदर कंपन महसूस न करें, तो इसके अर्थ है कि वह मानव नहीं है, और न ही एक ख्रीस्तीय।
पवित्र चिड़चिड़ापन
संत पापा ने कहा कि पवित्र चिड़चिड़ापन का अस्तित्व है, यह क्रोध नहीं बल्कि आंतरिक हलचल है। येसु ख्रीस्त ने कई बार इसका अनुभव अपने जीवन में किया। उन्होंने बुराई का उत्तर बुराई से नहीं दिया, लेकिन अपने हृदय में वे इस मनोभाव का अनुभव करते और हम इसे येरुसालेम मंदिर के दृश्य में पाते हैं। उन्होंने एक सक्त और प्रेरितिक कदम उठाया, क्रोध में नहीं बल्कि अपने पिता के निवास स्थल के संबंध में अपने उत्साह के कारण। हमें इसे अच्छी तरह समझने की जरुरत है, एक उत्साह, एक पवित्र चिड़चिड़ापन एक अलग चीज है, वहीं क्रोध अपने में एक बुराई है।
यह हमारे ऊपर निर्भर करता है, पवित्र आत्मा की सहायता से हम अपने आवेश को सही रूप में समझ सकें। हम उसके बारे में अच्छी तरह जानें जिससे वह हमारी भलाई के लिए हो सके न कि बुराई हेतु।
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