उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
मध्यपूर्व, बुधवार, 25 नवम्बर 2020 (वीएन)- मध्यपूर्व के लिए कलीसियाओं की परिषद ने वक्तव्य में कहा है कि 10 नवम्बर का समझौता जिसने नागोर्नो काराबाख में खूनी सशस्त्र संघर्ष को विराम दिया, क्षेत्र में स्पष्ट, सतत एवं दीर्घकालिन शांति सुनिश्चित नहीं किया है।
मध्यपूर्व के लिए कलीसियाओं की परिषद (एमएसीसी) की स्थापना 1974 में हुई है जिसका उद्देश है- सामान्य हित के मुद्दों एवं समुदायों के बीच तनाव से ऊपर उठने में मदद करते हुए मध्यपूर्व में ख्रीस्तीय समुदायों की एकता को बढ़ावा देना। संगठन में करीब 30 कलीसियाएँ और ख्रीस्तीय समुदाय हैं। जिनका प्रतिनिधित्व काथलिक, ऑर्थोडॉक्स, पूर्वी ऑर्थोडॉक्स (जिसमें अर्मेनियाई प्रेरितिक कलीसिया भी शामिल है) और एवंजेलिकल कलीसियाएँ करते हैं।
काकेशस में संत पापा की शांति की अपील
मध्यपूर्व के लिए कलीसियाओं के परिषद ने रूस-ब्रोकेड सौदे का वर्णन किया जो "अधिक टिकाऊ शांति स्थापित करने के लिए कोई विश्वसनीय आधार के बिना, तनाव पूर्ण स्थिति बनाए रखने के लिए काफी ढीली व्यवस्था है।"
मेल-मिलाप का मिशन
विश्वास आधारित संगठन के रूप में अपनी पहचान को पुष्ट करते हुए मेल-मिलाप के मिशन के साथ एमएसीसी ने युद्धरत लोगों, दलों एवं अंतरराष्ट्रीय हितधारकों का आह्वान किया है कि वे वार्ता के द्वारा एक साथ आयें और सबसे पहले युद्धविराम की गारांटी सुनिश्चित करें ताकि खतरा से हजारों लोगों की जान बचायी जा सके।
एमएसीसी ने अर्मेनियाई प्रेरितिक कलीसिया की धार्मिक स्वतंत्रता एवं विश्वास की अभिव्यक्ति तथा लोगों के भाग्य के लिए सहानुभूति व्यक्त की है जो हर प्रकार के प्रतिकार के शिकार बनते हैं।
एमएसीसी ने बयान में अंतरराष्ट्रीय समुदाय के कर्तव्य की ओर इशारा करते हुए कहा है कि वह कलीसिया और मठों के भाग्य की निगरानी करें जो इस प्रांत की आत्मा और चट्टान है एवं अर्मेनियाई ख्रीस्तियों के लिए ऐतिहासिक समझौता का स्थान है।