श्री लंका, धर्माध्यक्षों द्वारा 20 वें संवैधानिक संशोधन का विरोध
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर, वाटिकन सिटी
श्री लंका, शुक्रवार, 16 अक्टूबर 2020 (वाटिकन न्यूज़): श्रीलंका के धर्माध्यक्षों तथा अन्य धार्मिक और नागरिक नेताओं ने, संविधान के एक प्रस्तावित संशोधन का बहिष्कार करते हुए, कहा है कि यह देश के लोकतंत्र के लिये महान ख़तरा है।
श्रीलंका में धार्मिक नेताओं के साथ-साथ नागर समाज के प्रतिनिधियों ने संविधान में 20 वें संशोधन के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की है। उनकी आशंका है कि इससे राष्ट्रपति के हाथों में सत्ता मजबूत होगी और राष्ट्र में लोकतंत्र कमज़ोर हो जायेगा।
20 वाँ संशोधन
1978 में लागू होने के बाद से अब तक, श्रीलंका के संविधान में, उन्नीस बार संशोधन किया गया है। सितंबर माह में सरकार ने संविधान में बीसवें संशोधन का प्रस्ताव किया था। संशोधन के पारित हो जाने पर, पूर्ण कानूनी प्रतिरक्षा सहित कार्यकारी राष्ट्रपति को और अधिक अधिकार प्रदान करेगा। यह संसद, प्रधान मंत्री और मंत्रियों को भी कमजोर करेगा, तथा न्यायपालिका और अन्य स्वतंत्र निकायों की स्वतंत्रता को कम कर देगा।
अब तक संशोधन के खिलाफ कम से कम 38 याचिकाएं, व्यक्तियों और समूहों द्वारा, सर्वोच्च न्यायालय में प्रस्तुत कर दी गई हैं।
नवीन संविधान का आह्वान
श्री लंका के काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन ने इस सप्ताह एक वकतव्य जारी कर इस बात पर बल दिया कि "बिना किसी नियंत्रण के एक व्यक्ति में शक्ति की एकाग्रता एक लोकतांत्रिक, गणराज्य के लिए अच्छी बात नहीं होगी।"
उन्होंने इस तथ्य की ओर ध्यान आकर्षित कराया कि नागरिकों की सेवा के लिये संविधान में अधिक स्पष्टता की आवश्यकता है, इसीलिये 20 वें संशोधन को आगे नहीं बढ़ाया जाना चाहिए।" इसके बजाय, "एक नया संविधान इस समय राष्ट्रीय प्राथमिकता होनी चाहिए।"
धर्माध्यक्षों ने यह भी स्मरण दिलाया कि 1994 के बाद से सभी निर्वाचित राष्ट्रपतियों ने कार्यकारी राष्ट्रपति पद को समाप्त करने तथा लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राष्ट्रपति को सत्ता हस्तांतरित करने की प्रतिज्ञा की थी, किन्तु किन्हीं अज्ञात कारणों से किसी भी राष्ट्रपति के पास इतना "राजनैतिक संकल्प नहीं था कि वह इस काम को कर सके।"
संशोधन का विरोध
श्री लंका के काथलिक धर्माध्यक्षों के अतिरिक्त, अनेक ख्रीस्तीय सम्प्रदायों, बौद्ध मठों के धर्मगुरुओं एवं अन्य धर्मों के नेताओं ने संशोधन के विरुद्ध अपनी आवाज़ बुलन्द की है तथा सरकार से निवेदन किया है कि वह प्रमुख सरकारी संस्थानों और उत्तरदायी शासन की स्वतंत्रता को प्रोत्साहन दे तथा 20 वें संशोधन को तुरन्त वापस ले।
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