कैलाश सत्यार्थी 2014 नोवेल पुस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी 2014 नोवेल पुस्कार विजेता 

बाल अधिकार की प्राप्ति के रास्ते पर महामारी बाधक

बाल दासता और बाल तस्करी के खिलाफ भारत के प्रमुख योद्धा कैलाश सत्यार्थी को डर है कि कोवेद -19 महामारी के कारण इन संकटों में वृद्धि हो सकती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, बुधवार, 23 सितम्बर 2020 (वीएन) – कैलाश सत्यार्थी विगत चार दशकों से बच्चों को दासता एवं मानव तस्करी से बचा रहे हैं। वे महामारी के कारण डरे हुए है जो भारतीय अर्थव्यवस्था पर कहर ढा रही है, लाखों लोगों को गरीबी में धकेल रही है, परिवारों को अपने बच्चों को काम पर रखने हेतु मजबूर होना पड़ रहा है।

सत्यार्थी ने रॉयटर्स न्यूज़ एजेंसी को बतलाया कि "सबसे बड़ा खतरा यह है कि लाखों बच्चे गुलामी, तस्करी, बाल श्रम और बाल विवाह में वापस आ सकते हैं।"

"बच्चों और युवाओं के शोषण के खिलाफ उनके संघर्ष के लिए और सभी बच्चों को शिक्षा के अधिकार के लिए" सत्यार्थी और पाकिस्तान की मलाला यूसुफजई को संयुक्त रूप से 2014 के नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

बाल मजदूरी

संयुक्त राष्ट्र के बालनिधि विभाग, यूनिसेफ, का अनुमान है कि 152 मिलियन बच्चे बाल श्रम के लिए मजबूर हैं जिनमें से 64 मिलियन लड़कियां और 88 मिलियन लड़के हैं जो विश्व स्तर पर बाल श्रम में, हर दस बच्चों में से एक बाल श्रमिक है।  

जबकि पिछले कुछ वर्षों में बाल श्रम की दरों में गिरावट आई है, भारत में लगभग 10.1 मिलियन बच्चे अभी भी किसी न किसी रूप में गुलामी में हैं।

भारत भर में, बाल श्रमिकों को विभिन्न प्रकार के उद्योगों जैसे ईंट भट्टों, कालीन-बुनाई, वस्त्र-निर्माण, घरेलू सेवा, भोजन और जलपान सेवाओं (जैसे चाय और खाद्य पदार्थों की दुकानों), कृषि, मत्स्य पालन और खनन में पाया जा सकता है।

सत्यार्थी ने कहा, "एक बार जब बच्चे उस जाल में गिर जाते हैं तो उन्हें वेश्यावृत्ति में खींचा जा सकता है और आसानी से तस्करी की जा सकती है ... यह एक और खतरा है, जिसे सरकारों को दूर करना होगा।" उनका मानना है कि महामारी के कारण बच्चों का यौन शोषण भी बढ़ रहा है।

बचपन बचाओ आंदोलन, जिसे सत्यार्थी ने 1980 में स्थापित किया था, अब तक 90,000 से अधिक बच्चों को दासता से बचाया जा चुका है, जिसमें बंधुआ मजदूर भी शामिल हैं, जिन्हें सफल एकीकरण, पुनर्वास और शिक्षा में मदद की गई है।

बाल विवाह

यूनिसेफ का अनुमान है कि 18 वर्ष से कम आयु की 1.5 मिलियन लड़कियों का विवाह भारत में होता है, जो इसे दुनिया में सबसे अधिक संख्या में बाल वधुओं का घर बनाती है, जो कि विश्वभर में कुल संख्या का एक तिहाई है। 15-19 वर्ष की आयु की लगभग 16 प्रतिशत किशोरियाँ वर्तमान में विवाहित हैं।

जबकि 2005-2006 और 2015-2016 के बीच 18 वर्ष की आयु से पहले लड़कियों की शादी का प्रचलन 47 प्रतिशत से घटकर 27 प्रतिशत हो गया है, यूनिसेफ का मानना है कि यह अभी भी बहुत अधिक है।

सरकारी अनुमानों के अनुसार, अनौपचारिक और असुरक्षित श्रम बाजार में लगे 10 मिलियन से अधिक श्रमिकों ने मार्च के अंत से जून की शुरुआत तक लंबे समय के लॉकडाउन के दौरान अपनी नौकरी खो दी, जिससे उन्हें गरीबी का गहरा धक्का लगा।

खिलाने के लिए अधिक मुंह और आवश्यकताओं की पूर्ति में असमर्थता के साथ, कई परिवार अपनी लड़कियों की शादी कराने के दबाव में पड़ रहे हैं।

गरीब परिवारों की मदद

सत्यार्थी के अनुसार, महामारी ने सबसे गरीब परिवारों के सामने आनेवाली गहरी असमानताओं को उजागर किया है, जो वैश्विक संकट के समय खुद को बचाने के लिए असमर्थ हैं।

"हालांकि, राष्ट्रीय हितों और वैश्विक अर्थव्यवस्था की रक्षा करने के लिए अभूतपूर्व सरकारी खर्च के बावजूद," उन्होंने चेतावनी दी कि "5 में से 1 बच्चे को बचाने के लिए बहुत कम आवंटित किया गया है जो प्रतिदिन 2 डॉलर या उससे कम पर जीते हैं।" उन्होंने कहा, "तत्काल कार्रवाई के बिना,  हम एक पूरी पीढ़ी को खोने की जोखिम उठा रहे हैं"।

हाल ही में एक बयान में, लॉरेटेस एंड लीडर्स फॉर चिल्ड्रन, जिसे सत्यार्थी ने 2016 में स्थापित किया था, ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 बाल श्रम, शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दों पर प्रगति को एक दशक या उससे अधिक समय पीछे ले सकता है, जिसमें लाखों बच्चे है।

सत्यार्थी ने कहा, "अगर एक भी बच्चा ग़ुलाम नहीं है तो भी मैं संतुष्ट नहीं हो सकता।" इसका मतलब है कि हमारी नीति में, हमारी अर्थव्यवस्था में, हमारे समाज में कुछ गड़बड़ी है। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि एक भी बच्चा न छूटे।"

 

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23 September 2020, 15:14