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कोविड-19: गलत जानकारी शेयर करने से पहले ज़रा ठहरें और सोचें!

संयुक्त राष्ट्र ने तमाम लोगों से आग्रह किया है कि उन्होंने कोविड-19 महामारी से बचने के लिए जो सामाजिक दूरी जैसे उपाय अपनाए हैं, उसी तरह के उपाय सोशल मीडिया के इस्तेमाल पर भी अपनाएँ और कोई भी सामग्री आगे बढ़ाने यानि शेयर करने से पहले ठहरकर उसके बारे में सावधानी से सोचें।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

जिनेवा, बुधवार 1 जुलाई 2020 (यूएन न्यूज) : संयुक्त राष्ट्र के सूचना अभियान – वैरीफ़ाइड इनीशिएटिव की तरफ़ से ये नया सन्देश है जिसमें दुनिया भर के लोगों से कहा गया है कि वो भावनात्मक रूप से भड़काऊ या गम्भीर सामग्री को सोशल मीडिया को शेयर करने से पहले गहराई से सोचें।

संयुक्त राष्ट्र के विश्व संचार विभाग द्वारा चलाए गए इस अभियान की प्रभारी उप-महासचिव मेलिसा फ्लेमिन्ग का कहना है, “झूठी जानकारी व दुष्प्रचार जिन तरीक़ों से फैल रहा है, उनमें एक ये भी है कि लोग किस तरह इसे आगे बढ़ा रहे हैं यानि शेयर कर रहे हैं।”

‘पॉज़ यानि ठहराव अभियान’

‘पॉज़ यानि ठहराव अभियान’ सोशल मीडिया दिवस के मौक़े पर जारी किया गया है।

मेलिसा फ्लेमिन्ग का कहना था, “पॉज़ अभियान’ के पीछे ये विचार है कि कोई सामग्री या सन्देश शेयर करने से पहले ख़ूब सोच-विचार करें। हमें उम्मीद है कि लोग सोशल मीडिया का इस्तेमाल करते समय इस सन्देश को अपने दिमाग़ में रखें और इससे लोगों के निजी बर्ताव में बदलाव आएगा।”

इस ‘ठहराव अभियान’ में ऐसे वीडियो, ग्राफ़िक्स और रंगीन तस्वीरों के ज़रिये ये सन्देश फैलाने की कोशिश की जा रही है कि सोशल मीडिया पर भरोसेमन्द और वैज्ञानिक आधार पर प्रामाणिक सामग्री ही शेयर करें या आगे बढ़ाएँ।

उप-महासचिव मेलिसा फ्लेमिन्ग का कहना है कि इस अभियान का उद्देश्य लोगों को दुष्प्रचार व ग़लत जानकारी के बारे में सोच-विचार करने के लिये प्रोत्साहित करना है। ये अक्सर ऐसी सामग्री होती है जिसके बारे में सटीक होने का दावा करते हुए उसे आगे बढ़ाने यानि शेयर करने के लिए उकसाया जाता है।

“ऐसी सामग्री में अक्सर ठोस व सही लगने वाले वक्तव्य भी शामिल किये जाते हैं जबकि ज़िम्मेदार व वैज्ञानिक तथ्यों पर भरोसा करने वाले लोग ऐसी भाषा या वक्तव्यों का इस्तेमाल नहीं करेंगे क्योंकि हम सभी को सार्थक संचार करना है।”

उनका कहना था, उदाहरणस्वरूप वैक्सीन विरोधी गुट भविष्य में बनने वाली कोविड-19 की वैक्सीन के ख़िलाफ़ अभी से विरोध जताने लगे हैं।

संयुक्त राष्ट्र के वैश्विक सूचना विभाग के अनुसार वैरीफ़ाइड अभियान के तहत दुष्प्रचार व ग़लत जानकारी का मुक़ाबला करने के लिये डिजिटल फ़र्स्ट रैस्पाँडर्स भर्ती किये गए हैं।

इनमें कोलम्बिया में तथ्यों की जाँच-पड़ताल करने वालों से लेकर, ब्रिटेन में युवा पत्रकार तक शामिल हैं। अभी तक दस हज़ार से ज़्यादा ऐसे लोग इस अभियान में शामिल हो चुके हैं और ये संख्या 10 प्रतिशत प्रति सप्ताह की दर से बढ़ रही है।

सभी मिलाएँ हाथ

इस अभियान को यूएन के ज़्यादातर देशों का भी समर्थन हासिल है. 12 जून को कुल 193 सदस्य देशों में से लगभग दो तिहाई ने लातविया के नेतृत्व में एक वक्तव्य जारी किया था जिसमें कोविड-19 के सन्दर्भ में बड़े पैमाने पर फैलाई जा रही ग़लत जानकारी का मुक़ाबला करने का आहवान किया गया था।

उस वक्तव्य में कहा गया था, “महामारी के बारे में झूठी या भ्रामक जानकारी फैलाने वाली सामग्री के वितरण से होने वाले नुक़सान को लेकर हम बहुत चिन्तित हैं। हम तमाम देशों का आहवान करते हैं कि वो ऐसी जानकारी को रोकने के लिए हर सम्भव क़दम उठाएँ।”

दुनिया भर में विशाल मीडिया कम्पनियाँ भी पॉज़ अभियान सामग्री अपने चैनलों, ऑनलाइन और टैक्स्ट सन्देशों के ज़रिए वितरित कर रही हैं।

मेलिसा फ्लेमिन्ग का कहना है कि इस अभियान का मक़सद कोविड-19 के बारे में सोशल मीडिया पर ग़लत जानकारी फैलने से रोकना है। साथ ही उन्होंने ज़ोर देकर ये भी कहा कि फ़ेसबुक और ट्विटर जैसे प्लैटफ़ॉर्म झूठी ख़बरें – फ़ेक न्यूज़ को तेज़ी से फैलने से रोकने में बहुत अहम भूमिका निभा सकते हैं।

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01 July 2020, 14:35