लीबिया: लगातार लड़ाई से बच्चे 'भयंकर व असहनीय' स्थिति में
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
न्यूयॉर्क, शनिवार,18 जनवरी 2020 (यूएन न्यूज) : संयुक्त राष्ट्र बाल कोष – यूनीसेफ की कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फ़ोर ने शुक्रवार 17 जनवरी को जारी एक वक्तव्य में कहा, “लीबिया में कई वर्षों से जारी गृहयुद्ध में लगातार हिंसा व उथल-पुथल के कारण बच्चों को बहुत गंभीर तकलीफ़ों का सामना करना पड़ है, जिनमें शरणार्थी और प्रवासी बच्चे भी शामिल हैं।”
अप्रैल 2019 में राजधानी त्रिपोली के बाहरी इलाक़ों और पश्चिमी क्षेत्र में लड़ाई फिर से भड़कने के बाद हज़ारों बच्चों व आम लोगों के लिए परिस्थितियाँ बहुत ख़राब हो गई हैं। विशेष रूप में घनी आबादी वाले इलाक़ों पर अंधाधुंध हमले होने के कारण सैक़ड़ों लोगों की मौतें हुई हैं।
कार्यकारी निदेशक हेनरीटा फ़ोर ने कहा कि यूनीसेफ को ऐसी ख़बरें मिली हैं कि बहुत से बच्चे अपंग हो गए हैं, बहुत से बच्चों की मौत हो गई और बहुत से बच्चों को लड़ाई में हिस्सा लेने के लिए भर्ती किया जा रहा है।
वर्ष 2011 में तत्कालीन शासक शासक मुअम्मार गद्दाफी को सत्ता से हटाए जाने के बाद से ही लीबिया में गहरी अस्थिरता रही है और अर्थव्यवस्था तो लगभग ढ़ह ही गई है, हालाँकि देश के पास तेल के विशाल भंडार मौजूद हैं।
ख़लीफ हफ्तार के नेतृत्व वाली लीबियन नेशनल आर्मी (एलएनए) के कुछ गुटों और त्रिपोली सरकार के बीच लड़ाई में हज़ारों लोगों की मौत हुई है।
लीबियन नेशनल आर्मी विशेष रूप से देश के पूर्वी हिस्से में सक्रिय है जबकि पश्चिमी हिस्से में स्थित त्रिपोली सरकार को संयुक्त राष्ट्र द्वारा मान्यता प्राप्त है।
जर्मनी में सम्मेलन
रविवार, 19 जनवरी को जर्मनी के बर्लिन शहर में लीबिया की स्थिति पर हो रहे एक सम्मेलन में संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंतोनियो गुटेरेस भाग लेंगे।
इस सम्मेलन में यूएन द्वारा मान्यता प्राप्त लीबिया सरकार के प्रधानमंत्री फ़ैय्याज़ अल सराज व लीबियन नेशलन आर्मी के नेता ख़लीफ़ा हफ़्तार के भी आने की संभावना है। इस सम्मेलन में लीबिया में एक स्थाई युद्धविराम पर सहमति होने की उम्मीद की जा रही है।
रविवार को होने वाले सम्मेलन के सन्दर्भ में हेनरीटा फ़ोर ने युद्ध में शामिल पक्षों और उन पर निर्णायक प्रभाव रखने वाले सभी पक्षों से, लीबिया में हर एक बच्चे की बेहतरी की ख़ातिर, एक टिकाऊ शांति समझौते पर, बिना देरी किए, राज़ी होने का आग्रह किया।
इस बीच, पिछले आठ महीनों के दौरान कम से कम 1 लाख 50 हज़ार लोगों को अपने घर छोड़ने को मजबूर होना पड़ा है जिनमें लगभग 90 हज़ार बच्चे हैं। ये सभी अब देश के भीतर ही विस्थापित हैं।
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