शुक्रवार की नमाज़ के बाद दिल्ली के जामा मस्जिद के बाहर नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर विरोध प्रदर्शन शुक्रवार की नमाज़ के बाद दिल्ली के जामा मस्जिद के बाहर नागरिकता कानून में संशोधन को लेकर विरोध प्रदर्शन 

भारतीय ईसाई नेताओं ने की भेदभावपूर्ण नागरिकता कानून की निंदा

ईसाई नेताओं एक बयान जारी कर नागरिकता कानून में नवीनतम संशोधन सहित विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार की हिंसक कार्रवाई की भी कड़ी निन्दा की है। इन नेताओं में दार्शनिक, पुरोहित, ईशशास्त्री, भूतपूर्व सरकारी अधिकारी, अकादमी विशेषज्ञ तथा वकील शामिल हैं।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

बैंगलोर, शुक्रवार, 27 दिसम्बर 2019 (रेई,वाटिकन रेडियो): भारत में बैंगलोर के  लगभग 200 ईसाई नेताओं ने भारतीय नागरिकता कानून में लाये गये नवीनतन संशोधन 2019 की कड़ी निन्दा की है जिसने देश भर में विरोध प्रदर्शनों तथा हिंसा को भड़काया है।

पुलिस की क्रूर कार्रवाई की निन्दा

ईसाई नेताओं एक बयान जारी कर नागरिकता कानून में नवीनतम संशोधन सहित विरोध प्रदर्शनों के प्रति सरकार की हिंसक कार्रवाई की भी कड़ी निन्दा की है। इन नेताओं में दार्शनिक, पुरोहित, ईशशास्त्री, भूतपूर्व सरकारी अधिकारी, अकादमी विशेषज्ञ तथा वकील शामिल हैं। विगत दो सप्ताहों से जारी विरोध प्रदर्शनों एवं हिंसा में भारत में कम से कम 25 लोगों के प्राण चले गये हैं।

ख्रीस्तीय नेताओं के बयान में शहरों में शांतिपूर्ण प्रदर्शन करनेवाले विश्वविद्यालयीन छात्रों पर पुलिस एवं अर्द्धसैन्य दलों की क्रूर कार्रवाई की निन्दा की गई है। विरोध प्रदर्शनों में नई दिल्ली के जामिया मिल्लीया इस्लामिया विश्वविद्यालय तथा उत्तर प्रदेश स्थित अलीगढ़ मुस्लिम यूनीवरसिटी के छात्र शामिल थे।   

एकात्मता

ख्रीस्तीय नेताओं ने अपने बयान में कहा, “हम उन छात्रों और अन्य लोगों के प्रति एकात्मता व्यक्त करते हैं जो गंभीर रूप से घायल हुए हैं तथा शीघ्रातिशीघ्र उनके स्वास्थ्य लाभ की कामना करते हैं।'' उन्होंने इस तथ्य पर गहन क्षोभ व्यक्ति किया कि 2019 के आम चुनावों में सरकार की पुनर्नियुक्ति के उपरान्त कई विवादास्पद विधेयक संसद में पारित हुए हैं जिससे भारत की प्रजातांत्रिक संस्थाओं पर कुठाराघात हुआ है।  

नवीनतम संशोधन के बाद नागरिकता कानून में बांग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान और पाकिस्तान के हिंदू, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई और सिख धर्मानुयायों को भारतीय नागरिकता देने का प्रावधान किया गया है किन्तु इस्लाम धर्म के अनुयायियों को इस अधिकार से वंचित कर दिया गया है।

आलोचकों का कहना है कि उक्त संशोधन देश के 20 करोड़ मुस्लिम अल्पसंख्यकों के विरुद्ध भेदभाव करता है और भारत की धर्मनिरपेक्ष नींव का उल्लंघन करता है।

सरकार विरोधी तत्वों ने यह आरोप भी लगाया है कि नवीनतम संशोधन भारत को एक हिन्दू राज्य में परिणत करने का प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी एवं उनकी सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी का प्रयास है।

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27 December 2019, 11:39