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पावेल मिकसू 9 वर्ष, 19 वर्ष और आज अपने परिवार के साथ पावेल मिकसू 9 वर्ष, 19 वर्ष और आज अपने परिवार के साथ  कहानी

सिर पर एक दीवार

तीस साल पहले, 9 नवंबर 1989 को, बर्लिन की दीवार पूरी दुनिया की आंखों के नीचे ढह गई थी। यह घटना सैकड़ों लाखों लोगों के जीवन को बदल दी। पावेल मिकसू दक्षिण में 600 कि.मी. आगे चेकोस्लोवाकिया में प्रेरोव में रहता था। 9 नवंबर को वह 14 साल का किशोर था।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

50 वर्षीय पावेल मिकसू एक खुशहाल परिवार के पिता हैं। वे चेक गणराज्य के ब्रनो में रहते हैं, जहाँ वे एक पत्रकार के रूप में काम करते हैं। कम्युनिस्ट शासन के तहत अपनी किशोरावस्था की याद करते हुए कहते हैं "वे बुरी यादें हैं।" मध्य मोरविया के औद्योगिक शहर पेरेव में, जहां वे अपने माता-पिता के साथ रहते थे, कम्युनिस्ट पार्टी को लोगों का समर्थन प्राप्त था। उनके माता-पिता काथलिक थे और अपने बच्चों को भी काथलिक विश्वास में जीना प्रार्थना करना सिखाया। उस समय काथलिक होना कठिनाईयों को पालना था क्योंकि सरकार किसी भी धर्म और उसके मानने वाले को सहन नहीं करती थी। उदाहरण के लिए, पावेल की बहन का विश्वविद्यालय में दाखिला नहीं हुआ। उनके पिता, एक इंजीनियर थे। उनको वैज्ञानिक उपलब्धि का श्रेय दिया गया, परंतु उन्हें अपने करियर में कभी भी पदोन्नति नहीं मिली। 40 वर्षों तक उन्होंने हमेशा एक ही डेस्क पर काम किया। "हर कंपनी में, हर स्कूल में, दूसरों को नियंत्रित करने के प्रभारी राजनेता, कर्मचारी होते थे। उन्हें पार्टी के विचारों की प्रबलता की गारंटी देनी थी। जैसे ही किसी ने एक अलग विचार व्यक्त किया, वह समस्याओं से घिर जाता था ये प्रभारी राजनेता पार्टी के विचारों को स्वीकार कराने के लिए उसे मजबूर कर देते थे। इन प्रभारी राजनेताओं ने कई श्रेणियों के लोगों को "विशेष रूप से बुद्धिजीवियों" और पुरोहितों को सामान्य जीवन जीने से रोका था।

गुप्त पुलिस के सदस्य लगातार खुले रहने वाले कुछ गिरजाघरों की निगरानी रखते थे। किसी के लिए, पूजा स्थल में प्रवेश करना समस्याओं को न्योता देना था। प्रार्थना को मुश्किल से सहन किया जाता था। लेकिन सार्वजनिक रूप से अपने विश्वास को व्यक्त करना सख्त मना था। पावेल याद करते हैं कि कुछ अधिकृत तीर्थयात्राओं में हिम्मत के साथ अपने विश्वास को प्रकट करने वालों का गुप्त पुलिस फोटो खींचती थी और उन्हें काम के स्थान में छोटी-छोटी गलतियाँ निकालकर हर तरह से प्रताड़ित करती थी।

आज बर्लिन की दीवार के टुकड़े
आज बर्लिन की दीवार के टुकड़े

9 नवंबर, 1989 को बर्लिन की दीवार ढह गई। अधिकांश आबादी के लिए, यह एक बहुत बड़ा आश्चर्य था। लेकिन जो लोग कुछ सूचना पाने में सक्षम थे वे इस बात को जानते थे। कम्युनिस्ट पार्टी के प्रधान कुछ घबराये हुए दिखते नजर आये। वास्तव में  पार्टी के अधिकारी स्थिति के बारे में अच्छी तरह से वाकिफ होने के कारण पहले ही संकेत दे चुके थे कि वे लंबे समय तक नहीं टिकेंगे। पावेल को बताया गया था कि उसे राजनीति के बारे में बात नहीं करनी है। लेकिन उसे यह नहीं बताया गया था कि उसे क्यों नहीं बात करनी चाहिए। पावेल ने कहा, “मेरा परिवार उन लोगों में से नहीं था जिन्हें विरोधी के रूप में परिभाषित किया जा सके। हालांकि, उनके पास अवैध प्रकाशनों तक पहुंच थी और वे उन्हें वितरित करने में मदद कर रहे थे। आप फ़ाइलों की छपाई करने के लिए बड़ी मात्रा में कागज खरीदते हुए देखे गया तो वह गुप्त पुलिस का ध्यान आकर्षित करने के लिए पर्याप्त था।”

सात या आठ साल की उम्र से ही पावेल को यह डर हो गया था कि जब वह वयस्क हो जाएगा, तो उसे अपने विचारों या अपने विश्वास के लिए जेल में बंद होना पड़ेगा। लेकिन 9 नवंबर 1989 को पलक झपकते ही उनका डर गायब हो गया। 600 किलोमीटर दूर ढहते शासन के समर्थकों के अलावा, अधिकांश आबादी एक सामूहिक उत्साह और आनंद से भर गई जो लगभग चार साल तक चला। यह एक ऐसा समय था जो न कभी पहले आया और न बाद में।

इन चार वर्षों के उत्साह में चेकोस्लोवाकिया के कम्युनिस्ट नेताओं की नाकाबंदी, कम्युनिस्ट पार्टी के प्रभुत्व को खत्म करने के लिए संविधान संशोधन, देश के राष्ट्रपति के रूप में विरोधी लेखक वैक्लेव हवेल का चुनाव और "मखमली क्रांति," दो गणराज्य- चेक और स्लोवाकिया का जन्म शामिल थे।

हालांकि, चार साल के उत्साह के बाद, एक अलग परिस्थिति सामने आई। लोगों ने महसूस किया कि स्वतंत्रता इतनी आसान नहीं थी। एक केंद्रीकृत नियोजित अर्थव्यवस्था से बाजार अर्थव्यवस्था में जाना बहुत जटिल हो गया। राजनीतिक शक्ति आर्थिक शक्ति में बदल गई:

मध्य मोराविया में प्रोरोव शहर का दृश्य
मध्य मोराविया में प्रोरोव शहर का दृश्य

पश्चिम की ओर पहला कदम

यह अवधि पावेल की किशोरावस्था और उसका स्कूल करियर का था, साथ ही यह उसकी पहली विदेश यात्रा का अवसर भी था। अपने जीवन में पहली बार, वह बस से आस्ट्रिया को पार करके इटली पहुँचा। नए परिवेश में सब कुछ नया था और उसकी आँखे "पश्चिमी" जीवन शैली की खोज कर रही था। पावेल ने कहा, "आप हँसेंगे, लेकिन पहली बार मैंने सार्वजनिक शौचालय को राजमार्ग पर देखा। यह हमारे देश में अकल्पनीय था, यह सब गंदा, बदसूरत था। उदाहरण के लिए यह समग्र देशों के पहलुओं में से एक है: सौंदर्य सार्वजनिक स्थान पर मौजूद नहीं है।”

15 साल की उम्र में, पावेल रोम आया और पहले शहीदों की कब्रों पर गया। पावेल ने कहा, "मैंने अपने शहीदों के साथ शुरुआती कलीसिया के इन शहीदों के बीच संबंध महसूस किया। यह बेहद मजबूत था।" संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय की खिड़कियों के नीचे खड़े होकर हम उनकी बातों को सुना करते थे। उन्होंने स्वतंत्रता के लिए बहुत कुछ किया था। घर पर  रेडियो में कुछ अंतरराष्ट्रीय समाचार सुनते थे। वाटिकन रेडियो के माध्यम से हम संत पापा की आवाज सनते थे। उसने दुनिया को नया दृष्टिकोण दिया। "वे चेक टेलीविज़न से भी समाचार प्रसारण कार्यक्रम देखते थे। वे पश्चिमी रेडियो भी सुनते थे। इसलिए वे जान सकते थे कि चीजें वास्तव में कैसी थीं और चूंकि वे इस अभ्यास में बहुत अच्छी तरह से प्रशिक्षित थे, इसलिए बाद में सिर्फ चेक गणराज्य टीवी को सुनकर वे समझ सकते थे कि वास्तविकता क्या हो सकती थी।”

एक साथ इकट्ठा करने के लिए पवित्र मिस्सा

घर लौटने के कुछ महीनों बाद, एक दोस्त ने पावेल को बताया कि स्लोवाक अलग होना चाहता है। "वह रोने लगा क्योंकि 16 साल की उम्र में हमें समझ में नहीं आया, कि  वे देश को दो भागों में क्यों काटना चाहते थे।" उस समय स्लोवाकिया में कई चेकी रहते थे और चेक में कई स्लोवाकी रहते थे। "उसने बहुत प्रार्थना की कि यह अलगाव बिना हिंसा के हो। पावेल ने याद किया  कि 31 दिसंबर,1992 और 1 जनवरी, 1993 के बीच की रात, अलग होने की आधिकारिक तारीख थी और पावेल उस रात ऑस्ट्रिया के वियना शहर में थे। वे ‘तेजे’ की वार्षिक बैठक में भाग लेने आये हुए थे। वियना में प्रार्थना के दौरान वे भी अलग हो गए थे, "एक ओर चेकी और दूसरी ओर स्लोवाकी। कई प्रतिभागियों ने आयोजकों को उन्हें साथ रखने के लिए कहा। उन्होंने कहा कि वे वहाँ युद्ध नहीं करेंगे!

मध्यरात्रि को तेजे के पुरोहितों के साथ, चेकोस्लोवाकिया के विभाजन के सटीक क्षण में, एक पवित्र मिस्सा का आयोजन किया गया। मिस्सा के दौरान एक मजबूत संदेश सामने आया," भले ही राजनीतिक रूप से अलग हो जाएं, हम दोस्त बने रहेंगे।"

पावेल मिकसू
पावेल मिकसू

आखिरी दीवार को गिराने के लिए

जब आप अधिनायकवादी शासन में बड़े होते हैं, तो शायद सबसे कठिन चीजों में से एक दूसरों के सामने अपने आप को खोलना। परिवार में, कुछ करीबी दोस्तों और रिश्तेदारों के बीच वे हँस बोल लेते थे। लेकिन, बाहर वे डरे हुए और चुप रहते थे। बचपन से ही उसे ऐसा लगता था जैसे उसके सिर पर बड़ी दीवार थी और 1989 में बर्लिन दीवार गिरने के बाद भी, वह अदृश्य दीवार अभी भी वहाँ थी। सड़कों पर, या दुकानों में गुप्त पुलिस के पूर्व सदस्यों का आना आम था। सड़क पर कम्युनिस्ट शासन के पूर्व स्थानीय नेताओं को देखना भी आम था।
सिर पर दीवार लिये पावेल बढ़ता गया। वह इस विकृत धारणा से छुटकारा पाने में असमर्थ था। वह 9 नवंबर 1989 से स्वतंत्र था लेकिन अभी भी वह आंतरिक जेल में था जहां से वह स्वयं को मुक्त करना चाहता था। एक दिन वह 13 वीं शताब्दी पुराने मठ में प्रार्थना करने गया था। वह अकेला था और प्रार्थना करते समय अचानक रोना शुरू कर दिया। उसे लगा कि उसकी आंतरिक आवाज कह रही हो, खुद को क्षमा कर दो, उन सभी को क्षमा करो जिसने तुम्हें और परिवार को दुख पहुँचाया है। पावेल ने अपना सिर नीचा किया और अपनी छाती पीटते हुए कहने लगा, क्षमा, क्षमा, क्षमा। उसने खुद को माफ किया और दूसरों को भी माफ करना शुरु किया। धीरे धीरे उसे एहसास होने लगा कि उसने खुद को माफ कर दिया है। उसे शांति और हलकापन का एहसास हुआ।
उस दिन आखिरकार, उसके सिर की दीवार गिर गई।

बर्लिन में, जहाँ अब कोई दीवार नहीं है, सड़कों पर स्मारक सजीले टुकड़े अपने पिछले अस्तित्व को याद करते हैं।
बर्लिन में, जहाँ अब कोई दीवार नहीं है, सड़कों पर स्मारक सजीले टुकड़े अपने पिछले अस्तित्व को याद करते हैं।

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12 November 2019, 16:08