खोज

37 दिनों की यात्रा तय कर स्वीटजरलैंड स्थित अपने घर पहुँचता विंसेन्ट पेर्रिटाज 37 दिनों की यात्रा तय कर स्वीटजरलैंड स्थित अपने घर पहुँचता विंसेन्ट पेर्रिटाज  कहानी

रोम को अलविदाः एक स्विस गार्ड का फ्राँचीजेना के रास्ते घर वापसी

विंसेन्ट पेर्रिटाज प्रेइबर्ग का एक 26 साल का युवक है। उसने वाटिकन में स्वीस गार्ड के रूप में 31 मई को तीन साल की सेवा पूरी की। वह एक तीर्थयात्री के रूप में रोम पहुँचा था और तीर्थयात्री के रूप में ही वापस घर लौटने का निश्चय किया। घर लौटने के लिए उसने फ्राँचीजेना (फ्राँस से रोम) का पुराना रास्ता चुना। यह एक ऐसी यात्रा थी जिसने उसे मानवीय एवं आध्यात्मिक दोनों रूप से बदल दिया। यही उसकी कहानी है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

लोग हवाई जहाज से कुछ घंटों में प्रेइबर्ग पहुँचते हैं। विंसेन्ट ने पैदल यात्रा की। इसमें उसे 37 दिन लगे। उसने 1 जून को रोम छोड़ा और 7 जुलाई को फ्रेइबर्ग के निकट अपने शहर ग्रेयेरे पहुँचा।

प्रस्थान  

उसने फ्राँचीजेना के पुराने तीर्थयात्रा मार्ग को चुना जो इंगलैंड के दक्षिण में कैन्टरबरी से जुड़ता है। संत पापा की सेवा में व्यतीत किया गया यह समय उनके जीवन का एक महत्वपूर्ण पड़ाव था। तीन साल पहले एक साधारण तीर्थयात्री का तरह वह इसी रास्ते से होकर रोम पहुँचा था। अब यह पूरा हो चुका है। विंसेन्ट ने कहा, "मैंने महसूस किया कि इस तरह से घर लौटना मेरे लिए एक चिकित्सा के समान था। रोम छोड़ना बहुत कठिन था, वाटिकन, स्वीस गार्ड और संत पापा सभी को छोड़ना पड़ा। मैं सोचता हूँ कि अचानक एक दिन में मैं ऐसा नहीं कर पाता। पैदल घर लौटने में काफी समय लगते जिसके कारण मैंने जो अनुभव किया है उसका मूल्यांकन कर सका।" संत पापा फ्राँसिस ने क्राकोव में विश्व युवा दिवस के दिन जो कहा था वह मुझे बहुत प्रभावित करता है, "येसु का अनुसरण करने के लिए साहस की आवश्यकता है, सोफा के बदले जूतों को अपनाने का निर्णय लेना पड़ता है। इस तरह पैदल चलकर मैंने संत पापा के शब्दों का अक्षरशः पालन किया," विंसेन्ट ने कहा।

  [ Photo Embed: लात्सियो में विंसेन्ट अपने डंडे के साथ अक्वापेंदेंते की ओर बढ़ते हुए।]

गरमी के दिन में रोम छोड़ते हुए विंसेन्ट ने बहुत अधिक थकान महसूस किया। "मैं निश्चय ही उदास था क्योंकि मैं अपने पीछे उस जीवन को छोड़ रहा था जिसको मैं बहुत पसंद करता था किन्तु खुश भी था क्योंकि मैं घर लौटने के रास्ते पर था। इस रास्ते ने स्वीस गार्ड के रूप में उसके अनुभव को अधिक गहरा बना दिया और उसे अपना घर ले चला। यद्यपि उसने तीर्थयात्राएँ पहले भी की थीं, वे संतियागो दी कम्पोस्तेला जा चुके हैं, फिर भी विन्सेन्ट अपने इस नयी तीर्थयात्रा में हिचकिचाहट महसूस कर रहे थे। "मैं चिंतित था। मुझे लगा कि मैं कोई बहुत बड़ा काम करने जा रहा हूँ।" फिर भी यात्रा के लिए निकल पड़ा, अकेले में भी खुश था और अपने आपको ईश्वर के हाथों समर्पित कर दिया। 

तोस्काना क्षेत्र
तोस्काना क्षेत्र

दिव्य कृपा

फ्राँचीजेना का रास्ता कैंटरबरी के महाधर्माध्यक्ष सिगरिक द्वारा स्थापित पांडुलिपि में पाए गए विवरण पर आधारित है। जिन्होंने साल 990 में संत पापा जॉन पंद्रहवें से पालियुम ग्रहण करने रोम की यात्रा की थी। रास्ते पर दिशासूचक लगाया गया है तथा तीर्थयात्रियों के लिए कई गाईड हैं जो यात्रा के बारे विस्तार से जानकारी देते हैं किन्तु विंसेन्ट के लिए दैनिक गंतव्य को बिना जाने यात्रा करना महत्वपूर्ण था। वह उतना ही यात्रा करता था जितना दिन भर में कर सकता था। उसने महसूस किया कि अपने ठहरने के लिए पहले से स्थान बुक नहीं करने में, गरीबी और कृतज्ञता के भाव थे। "आपको कुछ भी मालूम नहीं कि आप कहाँ पहुँचने वाले हैं। अतः आप सब कुछ का आनन्द लेते हैं और सब कुछ को सकारात्मक रूप से देखते हैं क्योंकि हो सकता है कि आप अपने अगले पड़ाव में उन चीजों को फिर नहीं देख पायेंगे।" विंसेन्ट ने कहा। उसने कई यादगार मुलाकातों की याद की। "उसकी मुलाकात एक ऐसी दम्पति से हुई जिनसे उसने तीन साल पहले रोम आते समय मिला था। उसने कहा, "मैं कह सकता हूँ कि उल्टी दिशा में चलना उनकी जिज्ञासा का कारण था।"  

तोस्काना की पहाड़ियाँ
तोस्काना की पहाड़ियाँ

तोस्काना से पो घाटी तक

प्राँचीजेना का रास्ता इटली के सात प्रांतों को पार करता है। करीब 1000 किलोमीटर तक विंसेन्ट तोस्काना के खेतों से होकर गुजरे, खासकर, रादिकोफानी और संत मिनियातों गाँवों के बीच। यह इटली का ही भाग है जहाँ के परिदृश्य अत्यन्त सुन्दर हैं। पर स्वर्ग जैसे इस परिदृश्य के थोड़ा-सा आगे उत्तर में यह शोधकाग्नि के समान लगता है क्योंकि सड़क पो घाटी की ओर बढ़ती है। पाविया और संथाइया के बीच धान के बड़े-बड़े खेत हैं जो देखने में काफी उबाऊ लगते हैं। धान के खेतों में गरम और स्थिर जल के ठहराव के कारण मच्छर भी बहुत पाये जाते हैं। इसके कारण धीरज का सहारा लेना पड़ता है। उसके बाद रास्ते पर फिर से पहाड़ी मिलती है जो भाले द अओस्ता तक जाती है। पहाड़ी पार करने के बाद मार्ग के उच्चतम बिंदु, स्विट्जरलैंड में ग्रेट सेंट बर्नार्ड मार्ग मिलता है। (जो समुद्र के स्तर से 2467 मीटर ऊँचा है।) कुछ दिनों के बाद विंसेन्ट फ्रेइबर्ग के कैंट पहुँचा। वहाँ पहुँचने पर उसे नाक्शा की जरूरत नहीं पड़ी क्योंकि अब वह घर के निकट पहुँच चुका था।  

पो घाटी के धान खेत
पो घाटी के धान खेत

पीठ में एक बैग और साथ में एक बाईबिल

हम कल्पना कर सकते हैं कि एक तीर्थयात्री का बैग दूरी के अनुसार कितना बड़ा हो सकता है। विंसेन्ट का मानना है कि यह सभी के लिए एक समान नहीं होता। वह अपने साथ कुछ कपड़े, भोजन और पानी लेकर चल रहा था। उसने कहा, "उस थोड़े सामान के साथ आप दुनिया के एक छोर से दूसरे छोर तक जा सकते हैं। यदि आप ऊब जाने से डरते हैं तो अपनी रोजरी अपने साथ रखें अथवा एक छोटा बाईबल ले लें।" जब आप चल रहे हैं तो रोजरी विन्ती करना सबसे आसान है, खासकर, फसलों के खेत से पार होते समय। आप संत रोको और संत मार्टिन द्वारा प्रार्थना कर सकते हैं जो तीर्थयात्रियों के संत हैं तथा संत सेबास्तियन जो परमधर्मपीठीय स्वीस गार्ड के संरक्षक हैं। यद्यपि उसे अपने बैग से कोई शिकायत नहीं थी परन्तु एक दूसरी चीज उसके पैर में तकलीफ दे रही थी। बारी-बारी से दोनों पैरों में दर्द हो रहे थे मानो कि एक पैर स्वीटजरलैंड लौटना चाहता हो, पर दूसरा रोम की ओर खींच रहा हो।

विश्वासी साथी  

अततः जब विंसेन्ट फ्रेइबर्ग पहुँचा उसने एक अजीब तरह का अकेलापन महसूस किया, मानो कि वह मित्रों के दल के साथ यात्रा कर रहा था और अंत में सभी अपने घर चले गये। फ्राँचीजेना रास्ते पर पाँच सप्ताह तक चलने के बाद विंसेन्ट ने ईश्वर के साथ विशेष रूप से करीबी महसूस किया था। उसे लगा कि वह अपने मित्र के साथ यात्रा कर रहा था। इस संबंध ने उसे अपने आपको दिव्य कृपा की सहायता पर छोड़ने हेतु प्रेरित किया था।  

विंसेन्ट ने कहा, "मुझे यात्रा कार्यक्रम के बिना, हिसाब किये बिना और चिंतामुक्त होकर चलने सीखना था। अनुभव ने ईश्वर पर विश्वास करने और उन्हीं पर भरोसा रखने सिखलाया।" वे सलाह देते हैं, "आप जो कुछ भी करते हैं ईश्वर पर भरोसा रखकर हर कीमत पर पूरी करें। उन्हें अपनी सुरक्षित रस्सी की तरह पकड़ लें। हम एक ऐसे रास्ते पर उनसे मुलाकात कर सकते हैं जहाँ हमारी योजनाएँ बिखर जाती हैं। विंसेन्ट ने दृढ़ आशा से अपने आप को खो देने तक का साहस किया। वे कहते हैं कि ईश्वर हमें खो जाने से हमेशा बचाते हैं।     

इटली और स्वीटजरलैंड के बीच की सीमा, महान संत बर्नार्ड मार्ग
इटली और स्वीटजरलैंड के बीच की सीमा, महान संत बर्नार्ड मार्ग

यात्रा जारी रखने की कृपा

"रे अल्पविश्वासी तुम्हें संदेह कैसे हुआ?" (मती. 14:31) यह विंसेन्ट का पसंदीदा वाक्य है। रोम और फ्रेइबर्ग की यात्रा में उसने इससे बल प्राप्त किया। वापसी की यात्रा में उसने कई स्थलों को याद किया, जहाँ से होकर वह पहले गुजर चुका था। चौकियाँ, पेड़-पौधे, सड़क वे किनारे जहाँ उसे संदेह और निराशा हुई। तब वे सब कुछ को जमीन पर फेंककर, सिर पर हाथ रखे थे। कई ऐसे समय आये जब वह अपनी तीर्थयात्रा को रोकना और घर लौटना चाहा किन्तु उसने हमेशा आगे बढ़ने की कृपा प्राप्त की। उन स्थलों से गुजरते हुए उसने अपने अंतःकरण को टटोला और विश्वास को सुदृढ़ किया। इस अनुभव के द्वारा वह भविष्य में सही दिशा में देख पायेगा और भरोसा रख पायेगा, चाहे ऐसा लगे कि मैं बिल्कुल डूबता महसूस करूँ। "अब मुझे पूर्ण विश्वास है कि हमारी सारी आशा केवल ईश्वर में है।"

द्वार खुला रखना  

"धन्य हैं वे जिनकी शक्ति आप में है, जिनका हृदय तीर्थयात्रा में है।"(स्तोत्र 84,6) ये शब्द विंसेन्ट की योजना में गूँजता है। फ्राँचीजेना में उसकी तीर्थयात्रा समाप्त हो चुकी है किन्तु यह यात्रा उनके लिए ईश्वर के साथ और ईश्वर में जीवन जीने का एक क्षितिज खोल दिया है। यह प्रकाशना उन्हें सोफा में विश्राम करने नहीं बल्कि स्विस गार्ड के हथियार को पकड़े रहने हेतु प्रेरित करता है। एक आध्यात्मिक संघर्ष के लिए तैयार करता है।

घर पहुँचने पर विंसेन्ट के लिए ईश्वर की ओर से अपना हृदय बंद कर लेने के समान था जिसको उसने यात्रा करते समय उनके लिए खोला था। दैनिक जीवन के अनेक प्रलोभन हमें तुरन्त वापस लौटने के लिए मजबूर कर देते हैं किन्तु हमें अपने द्वार को खुला रखकर संघर्ष जारी रखना चाहिए। हम इसे खुला रखते हैं जब हम एक सच्चे ख्रीस्तीय की तरह जीते हैं और पिता पर पूर्ण भरोसा के साथ आगे बढ़ते हैं। विंसेन्ट महसूस करते हैं कि भय किस तरह हमें रोक देता है। सर्वशक्तिमान के प्रति प्रेमी सम्मान हमारे जीवन को पूरी तरह बदल सकता है।

स्वीटजरलैंड के ग्रूयेरे क्षेत्र का दृश्य
स्वीटजरलैंड के ग्रूयेरे क्षेत्र का दृश्य

योजना में प्रगति

सितम्बर माह में जब वंसेन्ट ने फ्रेइबर्ग के विश्वविद्यालय के ईशशास्त्र विभाग में दाखिला लिया तब उनकी इच्छा है कि वे ठोस नींव स्थापित कर सकें और ईश्वर के बारे बातें कर सकें। उनका मानना है कि लोग ईश्वर को अस्वीकार करते हैं क्योंकि वे उन्हें नहीं जानते। अध्ययन करने का यह चुनाव उन्हें उनकी तीर्थयात्रा पर फिर से चिंतन करने का अवसर प्रदान करेगा। ईश्वर के साथ मुलाकात एक व्यक्तिगत कृपा है किन्तु हम उसे अपने आप में सीमित नहीं रख सकते किन्तु हम अपना हृदय खोलते हैं। ईश्वर केवल तीर्थयात्रा के रास्ते तक सिमटे हुए नहीं हैं। अतः विंसेन्ट का एक नया सपना है। वे पवित्र भूमि येरूसालेम की तीर्थयात्रा करना चाहते हैं। "मैं नहीं जानता कि कब लेकिन समय और अवसर खुद बतलायेंगे। मुझे जाने का साहस होना चाहिए," विंसेन्ट ने कहा। यह मेरे जीवन की सबसे बड़ी यात्रा होगी।

स्विस परिसंघ के तत्कालीन राष्ट्रपति एलेन बेर्सेट ने 12 नवंबर 2018 को वाटिकन की यात्रा के दौरान, विंसेंट पेरिटाज़ से मुलाकात की थी।
स्विस परिसंघ के तत्कालीन राष्ट्रपति एलेन बेर्सेट ने 12 नवंबर 2018 को वाटिकन की यात्रा के दौरान, विंसेंट पेरिटाज़ से मुलाकात की थी।

यात्रियों को सलाह

विंसेंट के पास अपने स्विस गार्ड के साथियों के लिए प्रोत्साहन के कुछ शब्द हैं जो रोम से पैदल घर लौटने की सोच रहे होंगे। "यदि आप ऐसी योजना बना रहे हैं और थोड़ा भी इसके बारे सोच रहे हैं तो इसे पूरा करें। यह आसान है। यदि आप वाटिकन के संत अन्ना गेट से प्रस्थान कर रहे हैं, बायें मुड़े और चलते रहें। आपको कदम बढ़ाते जाना है। सबसे कठिन चुनौती है नियंत्रण खोने सीखना। जब चीजें योजना अनुसार नहीं चलती हैं और आप सही दिशा में नहीं जा रहे हैं। तभी ईश्वर रास्ता दिखलाते हैं। दूसरे शब्दों में अपने अभिमान को पीछे छोड़ें, तभी जीवनदायक यात्रा शुरू होगी, दीनता की यात्रा।  

तीर्थयात्रा में आगे बढ़ें, अपनी खोज जारी रखें, अपनी राह पर आगे बढ़ें, आपको कोई न रोक सके। सूर्य की धूप और धूल का अपना हिस्सा लें, जगे हृदय से क्षणभंगुरता को त्यागते हुए आगे बढ़ें। सब कुछ व्यर्थ है और केवल प्रेम ही सच्चा है।

तोस्काना में फ्राँचीजेना का रास्ता
तोस्काना में फ्राँचीजेना का रास्ता

 

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

30 October 2019, 15:30