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रोमा शिविर से बेकरी तक, अद्रियाना का नये जीवन में छलांग

परित्यक्त, तिरस्कृत, भेदभाव की शिकार, रोमा (बंजारा) शिविर में जीवन एवं अनअपेक्षित उपहार, जिस जीवन को पाने की हमेशा चाह रखी, उसको चुनने की आजादी मिलना। यही अद्रियाना की कहानी है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

जैसे ही बात शुरू करती है अद्रियाना भावुक हो उठती है। उसकी आवाज रूक जाती है, आँखें चमक जातीं हैं, हाथ एक-दूसरे से जुड़ जाते हैं मानो कि उसे साहस बंधा रहे हों। कुछ क्षण रुक जाने और सांस लेने के मेरे आग्रह पर वह मुझे यकीन दिलाती है कि ये "खुशी के आँसू" हैं। अद्रियाना 23 साल की है, उसका एक घर है, परिवार है, मित्र हैं और वह रोम में एक बेकरी में काम करती है। वह अपने काम को पसंद करती है किन्तु उससे अधिक वह अपने पड़ोस के लोगों से वार्तालाप करना पसंद करती है जिनके लिए अद्रियाना एक "जिप्सी" (बंजारी) नहीं है जिसपर संदेह किया जाए। वह दूसरी लड़कियों के समान अपने स्वप्नों को बांटना चाहती है।

उदगम

अद्रियाना का जीवन हमेशा ऐसा नहीं था। उसने बहुत आँसू बहायें हैं और उनमें से कोई भी खुशी के आँसू नहीं थे। वह रोमा है और उसका जन्म इटली में हुआ है। पिता क्रोएशियाई हैं और माता सेर्बियाई। उनके चर्म में बने गोदे (टट्टू) उसके उद्गम और उसकी पीड़ा के अमिट निशान हैं।

जब वह 2013 में डॉन बॉस्को बाल केंद्र पहुँची थी तब अद्रियाना के पास कुछ कपड़े और पैरों में जूते के अलावा कुछ नहीं था। उसका घर एक शिविर वैन था जिसको उसने विदेश में अपनी जमीन की बिक्री कर खरीदी थी। इसे शहर के पूर्वी इलाके में रोमा शिविर में पार्क किया गया था।

उसने कहा, "मैंने रोमा के रूप में जीना कभी पसंद नहीं किया। यह एक कठिन जीवन था और एक किशोरी के लिए तो ज्यादा ही मुश्किल। एक के बाद एक मुश्किलें आती गयीं।"

भेदभाव

अद्रियाना और उसके परिवार की कहानी एक परित्यक्त एवं तिरस्कृत व्यक्ति की कहानी है। एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर यात्रा करते रहना, इस उम्मीद से कि कोई कहीं स्वागत करने वाला मिल जाए।

घर छोड़ने वालों में पहले थे उसके पिताजी, उसके बाद दादा-दादी और उसकी बहन। उसकी माँ छः बच्चों की देखभाल करने में बहुत से मुश्किलों का सामना कर रही थी जैसा कि रोमा में किया जाता है, अर्थात् भीख मांगकर और पॉकेट मार के द्वारा।

"हम लाल बत्ती होने पर सड़क पर खड़ी गाडियों के शीशे साफ करते थे तथा सड़क किनारे ही सोते थे। कभी-कभी हमें पुलिस स्टेशन अथवा अस्पताल के आपातकालीन कक्ष में सोने का अवसर मिल जाता था, तब हम अपने आपको भाग्यशाली मानते थे। हम सोचते थे कि कम से कम हमारे ऊपर एक छत तो है। ऐसा मैंने 8-15 साल की उम्र तक किया। इस तरह रोमा में आपको लोग एक अपराधी, दूसरों को परेशान करने वाला के रूप मे देखते हैं चाहे आप दूसरो से अलग क्यों न हों।"

नया मोड़

ग्रीष्म काल के एक दिन उनके जीवन में नया मोड़ आया जब अद्रियाना की माँ का मन परिवर्तन हुआ। निराश और बीमार उसने एक एवंजेलिक कलीसिया में प्रवेश करने का निश्चय किया। वहाँ उसने ख्रीस्त के साथ मुलाकात की और समुदाय में उनका स्वागत किया गया, प्रार्थना के द्वारा शक्ति मिली। इन सभी चीजों ने उन्हें परिवर्तन करने की आवश्यकता महसूस करायी। इसके बाद उसने हमेशा के लिए रोमा छोड़ देने और दुनिया में लोगों के साथ एक होकर जीने का निश्चय किया।

अद्रियाना ने कहा, "मेरी मां ने हमें अपने जीवन का चुनाव करने की आजादी दी और हमने चुनाव किया किन्तु हम लोगों की नजरों में बुरे थे। हमारे साथ दुर्व्यवहार किया जाता था और भेदभाव किये जाते थे। कई लोगों ने कहा कि तुम एक अपराधी हो और अभी तुम हमारे सामने ईश्वर की बातें कर रहे हो, क्या तुम हमारा मजाक कर रहे हो? जो तुम कह रहे हो वह सच नहीं है किन्तु अद्रियाना के लिए यह एक नया जीवन था एक अज्ञात में छलांग लगाना था एक सुन्दर बात थी किन्तु एक सामान्य चीज जो उसके साथ होनी चाहिए थी। उसने उस समुदाय से जो मदद पाया उसका जिक्र करती है कि उनकी नजरों में पूर्वाग्रह नहीं होना एक असाधारण बात थी।

"मैं आपके लिए मूर्ख लग सकती हूँ किन्तु उन्होंने मेरे साथ स्नेहपूर्ण बर्ताव किया। एक दिन किसी ने मुझसे कहा, "हम सब ईश्वर की नजरों में एक समान हैं क्योंकि हम सब उनके बच्चे हैं और उनके बच्चे होने के नाते सभी एक-दूसरे के भाई-बहन हैं। पिता ईश्वर ने मुझे कभी नहीं छोड़ा। वे एक मित्र के समान हैं जिनको हम अपने डर किन्तु सफलता एवं आशा भी साझा कर सकते हैं।  

चलते-फिरते

उनकी मां का मन-परिवर्तन एवं बेहतर के लिए बदलाव उस समय हुआ जब अद्रियाना के पिता बाहर थे। वे वास्तव में जेल में थे। जैसे ही वे जेल से बाहर हुए उसने परिवार को नेपल्स ले गया उसके बाद स्पेन जहाँ वे 8 महिनों तक रहे। वहाँ बच्चे जीवन में पहली बार स्कूल जाने लगे। स्पेन में रहना जल्द ही समाप्त हुआ क्योंकि माता-पिता के बीच बहुत सारी समस्याएँ और झगड़े उत्पन्न हो गये। वे वापस इटली लौटे, फिर फ्राँस चले गये।

एड्रियाना के साथ एक दुर्घटना के बाद उन्हें बीमा राशि मिली जिसे परिवार ने घर बनाने के लिए एक छोटा जमीन खरीदा। समस्याएँ कुछ दूर हो गयीं। बच्चे फिर से स्कूल जाने लगे किन्तु उनके सहपाठी उनका मजाक उड़ाया करते थे क्योंकि उनपर टट्टू से "रोमा" लिखा हुआ था। वे भाषा नहीं जानते थे, उनके कोई मित्र भी नहीं थे। यहाँ तक कि शिक्षक भी उनके साथ अलग व्यवहार करते थे। अद्रियाना की दीदी ने इस बदलावपूर्ण जीवनशैली को स्वीकार नहीं किया तथा रोम के एक युवक से चुपचाप शादी करने के लिए भाग गयी।  

जब वे अपनी स्थिति को वैध करने के लिए स्थानीय अधिकारियों से मिलने गये, तब उन अधिकारियों ने परिवार को अलग करने का निश्चय किया। वैध कागजात न होने के कारण उन्होंने उसकी मां को सेर्विया लौटने का आदेश दिया अन्यथा धमकी दी गयी कि पूरे परिवार को तुरन्त विस्थापित किया जाएगा। अद्रियाना के माता-पिता ने इटली लौटने का निश्चय किया किन्तु रूपया न होने के कारण उन्हें जमीन बेचना पड़ा।

ईश्वर का हाथ

जैसे ही वे इटली पहुँचे, अद्रियाना के पिताजी फिर से परिवार को छोड़कर चले गये। वे तब तक बाहर सोते रहे जब तक उनकी माँ ने एक गाड़ी नहीं खरीद लिया जिसको पुलिस ने अवैध होने के कारण जब्त किया था।

परिवार ने एक सप्ताह तक अतिथि के रूप में रोम के अस्पताल के आपातकालीन कमरा में बिताया। उसके बाद उसकी दादी ने उन्हें रोमा के एक शिविर में रहने के लिए निमंत्रण दिया। इसके लिए उन्हें अपनी स्वतंत्रता छोड़कर शिविर की जीवनशैली अपनानी थी। शिविर के नियम अनुसार लड़की के विवाह की व्यवस्था करना एवं अन्य बच्चों को पॉकेट मार के लिए भेजना भी शामिल था। अद्रियाना की मां ने इसे अस्वीकार किया।  

उसके बाद एक अनअपेक्षित घटना घटी। अद्रियाना इसमें ईश्वर का हाथ देखती है। डॉन बॉस्को केंद्र के कर्मचारियों ने परिवार के लिए एक अस्थायी घर पाया। उपकारकों ने  उनकी मौलिक आवश्यकताओं के लिए आर्थिक रूप से उनकी मदद करने का जिम्मा अपने ऊपर लिया।    

अनोखा कार्य

अद्रियाना उस समय 17 साल की थी। उन्होंने उसके लिए एक काम खोज दिया और डॉन बॉस्को बाल स्वागत केंद्र में रखा। समर्थन और अभिविन्यास साक्षात्कार शुरू हुए। अद्रियाना एक रसोईया बनना और दूसरों के लिए खाना बनाना चाहती थी।

2014 में उसने मिडल स्कूल पास किया और उसे रोम के एक कॉफी दुकान में पहली बार नौकरी मिली। जहाँ उसने एक छोटा रसोई चलाना (दुकान चलाना) सीखा। उसने उस जगत से सहयोग करना भी सीखा जो नियम–कानून और जिम्मेदारी से संचालित है। वह कभी-कभी परेशान हो जाती है क्योंकि उसे लगता है कि वह बहुत धीमी और उद्दंड है। वह गलती करने और नियम भंग करने से हमेशा डरती है किन्तु हर सुबह जब उसकी घड़ी में अलार्म बजता है तब वह खुशी से उठ जाती और काम करने जाती है। यह उसके लिए स्वप्न के समान है कि महीना के अंत में उसे वेतन मिलता है।

कॉफी दुकान में काम करने के बाद वह अपने विश्वास से बल पाकर आगे बढ़ रही है। वह कहती है ऐसे भी दिन आये जब मैं सब कुछ छोड़ देना चाहती थी। उसने रोमा के लोगों को अपना आँसू नहीं दिखाया और उसने लगातार भेदभाव का सामना किया। इटली वालों के लिए वह अब भी रोमा है और कुछ स्थलों में प्रवेश नहीं कर पाती है। उसे अपने छोटे भाइयों की चिंता करनी पड़ती है। उसकी माँ जो बीमार है, अभी भी कागजात के बिना है। उसके पिताजी आते और जाते हैं किन्तु वह अकेली नहीं है। ईश्वर उसके साथ हैं। उनका आशीर्वाद उसके ऊपर है।

एक सच्चा घर

अंततः मई 2015 में एक परिवार ने उन्हें नियमित पट्टा पर एक अपार्टमेंट दिया है जो रोम के निकट है। अब अद्रियाना का अपना पलंग है, रसोई और शौचालय है। इसने मानो उन्हें चांद दे दिया है। जिसके द्वारा उसे आवासीय अनुमति भी मिल गयी है और वह अपने आवश्यक जरूरतों को प्राप्त कर सकती है। उसने कहा, "मैं डॉक्टर के पास जा सकती हूँ, चिकित्सा पा सकती हूँ जो एक रोमा के लिए असंभव है।"

अद्रियाना के पास काम करने का अनुभव है। वह एक घरेलू कामकाजी के रूप में और बेबी सिटर के रूप में भी काम कर चुकी है। उनके परिवार के एक पुरोहित मित्र ने उनके लिए एक बेकरी में काम खोज दिया है। आज भी वह उसी में काम करती है। "मैं इस काम को सचमुच पसंद करती हूँ। मैं बातचीत करना पसंद करती हूँ उन लोगों के साथ जो ब्रेड खरीदने आते हैं। वे अपनी कहानियाँ मुझे सुनाते हैं कभी-कभी मैं अपनी कहानी भी उन्हें सुनाती हूँ। मैं उन्हें बतलाती हूँ कि ईश्वर ने मुझे बचा लिया है, मैं उनके द्वारा प्यार की गयी महसूस करती हूँ और बतलाती हूँ कि दुनिया में यही सबसे सुन्दर चीज है। मैंने एक छलांग लगायी है और मैं खुश हूँ।

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18 September 2019, 14:05