उड़ीसा, सात ख्रीस्तीय कैदियों में से दूसरा जमानत पर रिहा
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
नई दिल्ली, बुधवार 24 जुलाई 2019 (एशिया न्यूज) : भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने हिन्दू स्वामी लक्ष्मण सरस्वती की हत्या करने के आरोप में आजीवन कारावास की सजा पाए सात ख्रीस्तियों में से एक बिजय सानासेथ को जमानत पर रिहा कर दिया है। हालांकि माओवादी छापामारों ने उस हत्या का दावा किया था, लेकिन हिंदू कट्टरपंथियों द्वारा ख्रीस्तियों को जिम्मेदार ठहराए जाने के बाद, "उड़ीसा पोग्रोम" नामक सांप्रदायिक हिंसा भड़क उठी।
बिजय सानासेथ 2008 से जेल में बंद था, जिसे 2013 में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। वे "सात निर्दोष ख्रीस्तियों" में से दूसरे हैं, जिसे भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 10 से अधिक वर्षों तक सलाखों के पीछे जीवन बिताने के बाद जेल छोड़ने के अधिकार को मान्यता दी है। उनसे पहले, मई में इसी अदालत ने गोरनाथ चालानसेथ को मुक्त किया था, जो अपने परिवार के साथ हैं।
फिलहाल यह निश्चित नहीं किया गया है कि बिजय को कब जेल से छोड़ा जाएगा। गोरनाथ को लिए वास्तविक मुक्ति से लेकर दो सप्ताह बाद छोड़ा गया था। भास्कर सुनामाझी, बुद्धदेव नायक, दुरजो सुनामाझी, सनातन बादामांझी और मुंडा बादामांझी (मानसिक विकलांग) सलाखों के पीछे हैं।
उड़ीसा में अगस्त 2008 में हिंदू कट्टरपंथियों ने भारत में ख्रीस्तियों के खिलाफ सबसे क्रूर उत्पीड़न किया। जिसमें 120 मौतें, लगभग 56 हजार ख्रीस्तीय भाग जाने को मजबूर हुए। 415 गांवों में 8 हजार घर जलाए गए या लूटे गए। 300 गिरजाघर जलाये या ध्वस्त किये गये। 40 महिलाओं के साथ बलात्कार (जिनमें सिस्टर मीना बरवा, महाधर्माध्यक्ष बरवा की भतीजी भी शामिल है)। 12,000 विस्थापित बच्चे और अपनी पढ़ाई बाधित करने के लिए मजबूर हुए।
उड़ीसा की कलीसिया ने हमेशा से सात आरोपियों की बेगुनाही का दावा किया है और उनके खिलाफ परीक्षणों की निंदा की है। इस बीच, कंधमाल में ख्रीस्तियों की आस्था, उन शहीदों की याद से प्रबल हो रही है, जिन्होंने येसु मसीह को नकारने के बजाय अपने प्राणों का बलिदान दिया। हालांकि, राज्य शांति की एक नाजुक प्रक्रिया से गुजर रहा है पर अभी भी ख्रीस्तियों के खिलाफ हिंसा की घटनाएं होती रहती हैं, यह एक संकेत है कि नफरत की लौ पूरी तरह से बुझ नहीं पाई है।
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