तामारा किकुनोवा तामारा किकुनोवा   कहानी

पुत्र के नाम में

तामारा किकुनोवा के साथ एक साक्षात्कार, जिन्होंने "मृत्युदण्ड एवं अत्याचार के खिलाफ माताओं" के एक संगठन की स्थापना की है। "करुणा के सिवाय सब कुछ की सीमा है।" उजबेकिस्तान की तामारा किकुनोवा ने बतलाया कि अपने 28 वर्षीय एकलौटे बेटे दमित्री किकूनोव को किस तरह मृत्युदण्ड दी गयी और उसके बाद उसने "मृत्युदण्ड एवं अत्याचार के खिलाफ माताओं" के एक संगठन की स्थापना की। उनके पुत्र को 10 जुलाई 2000 को मृत्युदण्ड की सजा दी गयी। वह इस बात को बतलाने के लिए विश्व के विभिन्न जगहों का भ्रमण करती है। वह मानव अधिकार की रक्षा एवं जेल प्रणाली के मानवीयकरण पर जोर देती है। वह विशेषकर उन देशों की यात्रा करती है जहाँ मृत्युदण्ड की सजा दी जाती है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

तामारा ने कहा, "हम ताशकंत में रहते और काम करते थे। 17 अप्रैल 1999 को तीन लोग पुलिस वर्दी में मेरे बेटे के कार्यालय में दाखिल हुए। उस समय मैं वहाँ उपस्थित थी।" तामारा कहती है कि उसे तुरन्त लगा कि कुछ गलत हो रहा है। उसे बतलाया गया कि यह एक औपचारिकता है किन्तु उस दिन के बाद दमित्री जेल से कभी वापस नहीं लौटा। कुछ घंटों बाद उन्होंने तामारा को भी लिया और उनसे करीब 12 घंटों तक पूछताछ की। उन्होंने उसकी पिटाई भी की क्योंकि वह अपने पुत्र के बारे पूछती रही। उसके बाद उसने अपने बेटे को छः महीने बाद देखा। उस समय तक उसे इतना अधिक प्रताड़ित किया गया था कि उसे पहचाना भी मुश्किल था। 

तामारा किकुनोवा
तामारा किकुनोवा

स्वीकृति

तामारा के बेटे पर दो लोगों की हत्या का आरोप था जिसको अस्वीकार करने पर उसे प्रताड़ित और अपमानित किया गया। तामारा बतलाती है कि "उसे अपराध स्थल पर लाया गया, घुटनों के बल खड़ा कर, हाथ पीछे बांधकर और बंदुक की नोक सिर पर रखकर, हत्या के आरोप को स्वीकार करने को कहा गया। किन्तु दमित्री ने फिर अस्वीकार किया। तब उन्होंने पूछताछ करते हुए तामारा के दर्द से चीखने की आवाज सुनायी। जिसको सुनकर दमित्री हिम्मत हार गया और अपने माँ को बचाने के लिए स्वीकृति पत्र पर हस्ताक्षर कर दिया।

सात महीनों बाद तामारा ने अपने बेटे से मुलाकात की, जब वह मरने वालों की कतार में खड़ा था।   

इच्छापत्र

10 जुलाई 2000 को ताशकंत जेल में उन्हें चुपचाप गोली मार दी गयी। तामारा तब भी अपने बेटे के बारे पूछना नहीं छोड़ी। वह पूछती रही, उन्हें क्यों पकड़ा गया? क्यों उन्हें बड़ी क्रूरता के साथ प्रताड़ित किया गया? चालीस दिनों बाद उसे एक चिट्ठी मिली जिसको दमित्री ने मरने से पहले इच्छापत्र के रूप में लिखा था। "मेरी प्यारी माँ, मैं आपसे क्षमा याचना करता हूँ यदि हमारा भाग्य हमें फिर से मिलने न दे। याद रखिये कि मैंने कोई गलती नहीं की है। मैंने किसी की हत्या नहीं की है। मैंने मौत स्वीकार किया क्योंकि मैं नहीं चाहता था कि कोई आपको किसी प्रकार का दुःख दे। मैं आपको प्यार करता हूँ। सिर्फ आप ही हैं जिनसे मैंने अपने जीवन में प्यार किया है। कृपया मुझे कभी मत भूलिए।"  

तामारा ने कहा कि इन शब्दों को पढ़कर कोई भी माता अपने दुःख को बयां नहीं कर सकती। तामारा दो साल के लिए अनिद्रा की बीमारी से पीड़ित रही। उसके बाद उसने उसपर प्रतिक्रिया व्यक्त करने का विचार किया। उसे लगा कि मृत्यु-दण्ड के अमानवीय एवं क्रूर सजा द्वारा इस तरह के व्यर्थ की मौतों को रोका जाना चाहिए। विश्व के कई हिस्सों में आज भी मृत्यु-दण्ड को अपराध कम करने के उपाय के रूप में अपनाया जाता है।

इस तरह, मृत्यु दण्ड पाने वाला व्यक्ति, कानून के नाम पर किए गए अपराध के लिए बंधक के रूप में एक सामाजिक समस्या का शिकार हो जाता है। तामारा के अनुसार, मौत की सजा समाज द्वारा केवल उससे बदला लेना है।

तामारा किकुनोवा वाटिकन रेडियो में
तामारा किकुनोवा वाटिकन रेडियो में

संगठन

तामारा का उद्देश्य है कि वह दमित्री के बलिदान की याद को जीवित रखे, उनके दुःख को ठोस साक्ष्य में बदल दे। यही कारण है कि उन्होंने एक संगठन की स्थापना की है जिसको संत इजिदियो समुदाय का समर्थन प्राप्त है।  

संगठन के सदस्यों के साथ तामारा कैदियों के रिश्तेदारों की बात सुनती, उनको सलाह देती तथा चिट्ठी एवं आवेदन तैयार करने में उनकी मदद करती है। उन्होंने कहा, "जो माताएँ मृत्यु-दण्ड की कतार में खड़े अपने बच्चों, पतियों अथवा भाईयों को देखने जाते हैं वे उनसे कहती हैं, "रोओ मत, उन्हें संघर्ष करने और आगे बढ़ने हेतु प्रोत्साहन दो। यह जीवन का संघर्ष है और प्रतिशोध की बात मत करो।"   

जीवन की रक्षा

1 जनवरी 2008 को उजबेकिस्तान ने मृत्यु-दण्ड समाप्त कर दिया। इस तरह वह विश्व का 134वां देश बन गया जहाँ मृत्यु-दण्ड को समाप्त कर दिया गया है। तामारा विभिन्न देशों में जाकर अपनी और उन लोगों की कहानी बतलाती है जो मृत्यु-दण्ड से बच गये हैं।

उन्होंने जिन लोगों की जान बचायी है उनमें एवजेन्सी गुगनिन है। उन्हें मृत्यु-दण्ड की सजा सुनायी गयी थी। जब वह मौत की कतार में था तभी बपतिस्मा लिया और कहा कि यदि मैं किसी तरह इस नरक से बच गया तो मैं पुरोहित बनूँगा। एवजेन्सी को माफ कर दिया गया और 2011 में वह जेल से रिहा हो गया। आज वह ताशकंत के एक सेमिनरी में पढ़ रहा है।

तामारा की लिखी कहानियाँ

तामारा अपनी कहानियों को जमा करके रखती हैं जिनमें कुछ पेपर और तस्वीर हैं। इसमें अपने बेटे का एक बड़ा तस्वीर भी है। मार्च 2005 को दमित्री के मृत्यु-दण्ड के पाँच साल बाद केस को फिर खोला गया। कई अन्य लोगों की तरह उनकी जाँच को अनुचित घोषित किया गया और उनकी बेगुनाही को पहचाना गया। जब वह जेल में प्रवेश किया तो उसका द्वार चौड़ा खुला था किन्तु जब वह बाहर आने की कोशिश करने लगा तो वह संकरा हो गया।  

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तामारा की कहानी
17 July 2019, 15:08