ईश्वर की खोज में 5000 किलो मीटर पैदल तीर्थयात्रा
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
यात्रा की शुरूआत पेरिस से हुई। 14 साल की कमिल देसभू के दिमाग में ये विचार उत्पन्न हुआ। यह विचार उसके मन में बंद पड़ा रहा और उसने इसके बारे किसी से कुछ नहीं कहा। तीन साल पहले उसने इस योजन के बारे अपने माता-पिता को बतलाना चाहा। उन्हें यकीन दिलाने में अधिक समय नहीं लगा किन्तु अब भी काफी समय था। इस दरमियान उसकी मुलाकात विश्वविद्यालय में गिलमेत दी नोर्तबेकोर्ट से हुई। दोनों लड़कियों के विचार एक जैसे थे, अतः उनके बीच दोस्ती हो गयी। कमिल ने अपनी योजना का जिक्र उससे तब तक नहीं किया, जब तक कि उनकी पढ़ाई समाप्त नहीं हो गयी। उन्होंने एक अपार्टमेंट लेने का निश्चय किया। जब कमिल ने गिलमेट को अपनी योजना के बारे बतलाया तथा कहा कि वह अपनी यात्रा शुरू करने वाली है तब गिलमेट को भी लगा कि उसे भी उसी चीज की खोज है, "उस दरमियान, मैं भी पूर्णता की खोज में थी। मैं ईश्वर की प्यासी थी, कमिल भाग्यशाली थी।" इस तरह पैदल तीर्थयात्रा ने साक्षात् रूप लिया। डॉन लुईस हार्वे गिनी जो कमिल के आध्यात्मिक सलाहकार थे उन्हें चिंतन करने की सलाह दी कि क्या यह योजना दोनों लड़कियों के लिए सही है? उन्होंने इस पर दो सप्ताह तक चिंतन किया। तब निर्णय लिया गया और दोनों ने तीर्थयात्रा हेतु प्रस्थान किया।
पेरिस का नोट्र डेम गिरजाघर
सोमवार 10 सितम्बर 2018 को, सुबह 8.00 बजे थे। पुरोहित जिनसे वे परिचित थे और जिन्होंने उन्हें तीर्थयात्रा पर विचार करने में मदद दी थी, उन्होंने प्रस्थान करने के पूर्व ख्रीस्तयाग अर्पित करने की याचना की। मिस्सा में कमिल की तीन बहनें और गिलमेट के दस में से चार भाइयों ने भाग लिया। मिस्सा के अंत में, परिवार वालों से विदा होकर उन्होंने यात्रा शुरू किया।
वे चार दिन यात्रा कर चुके थे किन्तु पेरिस से अधिक दूर नहीं जा पाये थे। उन्होंने ठहरने के लिए पहले ही अपने मित्रों एवं परिचितों के घर को निश्चित कर रखा था। उन्होंने अब तक महसूस नहीं किया था कि उन्हें किन जोखिमों से गुजरना होगा। पाँचवें दिन प्रातः वे अनजान स्थान की ओर बढ़े। उन्हें मालूम नहीं था कि वे रात में कहाँ सोयेंगे और उससे भी बढ़कर उनकी जेब में एक रूपया भी नहीं था। "इसका चुनाव उन्होंने जानबूझकर किया था" गिलमेट ने कहा, हम अपने को पूरी तरह खाली करना चाहते थे और अपने आपको पूरी तरह ईश्वर के हाथों सौंप देना चाहते थे क्योंकि उसी ने इस यात्रा के लिए प्रेरित किया था। लोईरेट प्रांत के एक छोटे गाँव पहुँचने पर उन्हें एक दुर्ग दिखाई दिया। "इसमें कई खाली कमरे हो सकते हैं", सोचकर वे उसके प्रवेश द्वार पर गये।
अपमान की शुरूआत
यह पाँचवाँ ही दिन था और उन्हें अनजान लोगों के पास शरण मांगना पड़ा। उन्हें कई लोगों के तिरस्कार का सामना करना पड़ा। उन्होंने महसूस किया कि मांगना कितनी शर्म की बात है। फिर भी, वे इसके लिए तैयार थे और वे पीछे नहीं हटे। उन्होंने दूसरे दरवाजे पर दस्तक दी जहाँ उनकी मुलाकात एक खुले हृदय के व्यक्ति से हुई। उन्होंने कहा, "हम इस तरह की मुलाकातों से बहुत कुछ सीख चुके हैं। हम उन लोगों के अच्छे स्वभाव से बहुत प्रभावित हुए। हमने सोचा कि कभी-कभी ईश्वर उन लोगों को अपने हृदय की गहराई में छिपा लेते हैं और हमें उसका रास्ता खोजना पड़ता है।" यह वेरोनिका थी जिसने अपना दरवाजा खोला। सचमुच उसने उन लोगों लड़कियों के लिए अपना पूरा घर दे दिया था क्योंकि वह एक प्रदर्शनी में जाने की योजना बना चुकी थी। कमिल और गिलमेट उस रात वहीं ठहरीं। दूसरे दिन सुबह नास्ता के समय महिला के साथ परिचय बढ़ा। यह भविष्य में बनने वाले कई संबंधों में से पहला संबंध था। स्वीटजरलैंड, इटली, अल्पस, स्लोवेनिया और क्रोवेशिया पार करने के बाद वे बोस्निया और हेरजेगेविना पहुँचे, उस शाम को उनका स्वागत 80 वर्षीय पीटर ने किया। वह किसी विदेशी भाषा को नहीं जानता था। उसकी बेटी स्लाविका अंग्रेजी के कुछ शब्दों को समझती थी, इस तरह यह एक-दूसरे को समझने के लिए काफी था। "उन्होंने हमें एक ही पलंग दिया" कमिल ने कहा और बतलाया कि उन्हें सुबह उठने पर ही मालूम हुआ कि उस व्यक्ति ने सोफे पर रात बिताया और उनके लिए अपना पलंग छोड़ दिया था। उसने कहा, "मैं नहीं जानती हूँ कि शायद मैं ऐसा कर पाती।"
बाल्कान की ठंढ़क
गिलमेट के पिता जो एक सैनिक थे उन्होंने लड़कियों को बाल्कान में कड़ाके की ठंढ की चेतावनी दी थी। खासकर, नवम्बर 2018 और फरवरी 2019 की अवधि में, तापमान हल्का रहा और यह 12 डिग्री से कम नहीं हुआ। इसके बाद बुल्गारिया में उन्हें वर्फ के ऊपर किन्तु सिर पर सूर्य के सात चलना पड़ा। वहाँ का परिदृश्य इतना सुन्दर था कि वे उसपर मोहित होने और उसके लिए ईश्वर को धन्यवाद देने से अपने को नहीं रोक सके।
तुर्की
संस्कृति में फर्क होने के कारण इन लड़कियों को समस्या हो सकती थी जिनके पास केवल 10 पौंड का बैग एवं एक जोड़ा जूता था। फिर भी, वे अपनी सुरक्षा के लिए चिंतित नहीं थीं। उन्हें पुरुषों की टकटकी नजरों का सामना करना पड़ा। उन लड़कियों को गलत भी समझा गया। उन्होंने उन्हें वैश्य समझा। अतः उन्हें अपना व्यवहार बदलना पड़ा और वे सभी लोगों के साथ मुस्कुराना बंद कीं। यह उनके लिए सबसे अंधकारमय क्षण था लेकिन तुर्की में भी उन्होंने असाधारण उदारता देखी।
गिरजाघर स्वागत का स्थान
वहाँ उन्होंने एक से अधिक तालों को पाया किन्तु स्वागत किये जाने के अनुपात में यह एक छोटी बात थी। उन्हें फ्राँस और इटली के काथलिक गिरजाघरों, स्वीटजरलैंड के प्रोटेस्टंट गिरजाघर और बाद में ऑर्थोडॉक्स गिरजाघरों में ठहरने का स्थान मिला। पल्लियों में हर जगह उन्होंने आतिथ्य सात्कार देखी। सेर्विया से ग्रीस तक भाषा एक बड़ी समस्या हो गयी थी। उन्हें व्यक्तिगत घरों में स्थान नहीं मिलने लगा। तब कुछ ऑर्थोडॉक्स लोगों ने उनका परिचय एवं उनके उद्देश्य के बारे में लिखा दिया, जो उनके आगे जाने के लिए सचमुच एक अनुमति पत्र बन गया था।
मुस्लिम गाँवों में भी उनका स्वागत किया गया। उन्होंने सबसे पहले गाँव के प्रमुख के द्वार पर दस्तक दिया जिन्होंने गाँव में उनके रहने और खाने का प्रबंध किया। अपनी तीर्थयात्रा की 248 रातों को उन्होंने कभी छत के बिना नहीं बिताया।
गाँवों में मानवता
सौभाग्य से कमिल एवं गिलमेट के पास एक स्मार्ट फोन था, जिसमें वे अपने माता-पिता को मेसेज भेज कर, अपनी कुशलता की जानकारी दे सकते थे। जैसे जैसे वे लोगों से मिलते गये उनके फोन में सम्पर्क करने वालों की संख्या भी बढ़ती गयी। गिलमेट ने कहा, "संदेशों की बमबारी होने लगी।" लोग मेसेज भेजकर उनका स्वागत करने लगे, जिनका उत्तर उन्हें देना था। उत्तर देने में जरूर समय लगा किन्तु उन्होंने सभी का उत्तर दिया। उन्होंने महसूस किया कि जब वे निराश होने लगते थे तो उन संदेशों के द्वारा उन्हें आगे बढ़ने का बल प्राप्त हुआ। हर शाम को वे अपनी योजना के बारे लोगों को बतलाते थे और दूसरे दिन सुबह उन्हें अपने निर्धारित समय से आगे बढ़ने में देर हो जाती थी क्योंकि नये मित्रों से घुल-मिल जाने के बाद, उनसे बात करते-करते समय का पता भी नहीं चलता था। उनकी मुलाकात कुछ असाधारण लोगों से भी हुई जिनकी याद भुलायी नहीं जा सकती। विभिन्न लोगों के साथ मुलाकात के सैंकड़ों तस्वीर उनके पास हैं और वे उन्हें नहीं भूल सकतीं।
आत्म-खोज
एक ही मित्र के साथ यात्रा आरम्भ करने और 7 महीनों तक 24 घंटे साथ रहने का अर्थ है संबंध टूटने की जोखिम में पड़ना। 10 सितम्बर को जब उन्होंने यात्रा की शुरूआत की तब से ही उन्होंने एक-दूसरे को जानने का प्रयास किया। गिलमेट ने अपने आपको स्वीकार करते हुए कहा, "मैंने महसूस किया कि मैं घमंडी थी।" जिसके कारण दोनों के बीच तनाव हुए। उन्होंने कहा, "हमने झगड़ा किया किन्तु हरेक बार छोटी चीज के लिए ही।" कमिल ने याद किया कि उनके बीच सबसे बड़ा विवाद तब हुआ था जब वे इटली में थे। "हमें निश्चय करना था कि क्या हम नदी में चल कर जाए अथवा पुल से होकर नदी पार करें।" नदी गहरी नहीं थी किन्तु यह सच था कि उसका तल नहीं दिखाई पड़ रहा था। सिवाय इसके कि पुल दो किलोमीटर आगे था और कमिल घुमावदार रास्ते पर जाना नहीं चाहती थी; जबकि गिलमेट ने इसे पार करने पर जोर दिया क्योंकि यही अधिक बुद्धिमता पूर्ण निर्णय लग रहा था। इस घटना को बतलाते हुए दोनों हंस पड़ते हैं और महसूस करते है कि वास्तव में, उनका बहस अर्थहीन था। वे आपस में कई बार बहस में उलझे, बहुधा थकान और कमजोर मनोबल के कारण। उन्होंने इन परीक्षाओं को पार किया और अब वे एक साथ हैं।
पवित्र भूमि के करीब
सेर्बिया से प्रस्थान करते तथा तुर्की में प्रवेश करते हुए उन्होंने बुल्गारिया पार किया। उन्हें मालूम था कि जब से उन्होंने पेरिस छोड़ा था सीरिया में युद्ध चल रहा था और उसमें प्रवेश पाना नामुमकिन था। अतः उन्हें अपनी यात्रा को रोककर हवाई जहाज से यात्रा करनी पड़ी। वे अंताल्या से उत्तरी साईप्रस पहुँचे जिसपर तुर्की लोगों का कब्जा है। उन्होंने उस द्वीप को पार किया और पुनः अपनी तीर्थयात्रा को जारी रखा। दूसरों के दरवाजों पर दस्तक देकर वहाँ ठहरने हेतु जगह की मांग की। लारनाका से हवाई जहाज सीधे तेल अबीब जाती है। जो येरूसालेम से 40 किलो मीटर की दूरी पर है। वह यात्रा जिसके लिए उन्हें सात महीनों तक चलना पड़ा, अब वे उसके करीब आ चुके थे। उन्हें सलाह दी गयी थी कि वे पूर्व से, जैतून के पहाड़ से होकर पवित्र भूमि पहुँचें। कुछ दिन और यात्रा करने से वे नहीं हिचके तथा येरूसालेम के आस-पास घूमने का निश्चय किया। वे बेतलेहेम पहुँचे और अपनी यात्रा का सच्चा अर्थ पाया। येसु के जीवन को अनुभव करने का प्रयास किया क्योंकि येसु से मुलाकात करने के लिए ही उन्होंने पेरिस छोड़ा था।
कमिल और गिलमेट ने 215 दिनों की यात्रा करीब 25 और 35 किलो मीटर प्रतिदिन के हिसाब से तय करने के बाद कुछ विश्राम किया, ताकि पुनः ऊर्जा प्राप्त किया जा सकें। पूर्व की ओर से जैतून की पहाड़ी तक पहुँचना वहाँ से अधिक दूर नहीं है किन्तु ढलान थकानदेह है। वे अब भी येरूसालेम को नहीं देख सकते थे, पर इसके प्रथम दर्शन के लिए उन्होंने कई सप्ताह तक तैयारी की थी। दोनों में से किसी ने इससे पहले पवित्र भूमि का दर्शन नहीं किया था। वे स्वर्गारोहन गिरजाघर की ओर से आये, फिर जैतून पहाड़ पर गये, मस्जिद को पार किया, उसके बाद हे पिता हमारे गिरजाघर को भी, इस तरह वे उसके सामने थे जिसके लिए उन्होंने सात महीनों तक इंतजार किया था। येरूसालेम के दृश्य अत्यन्त गौरवपूर्ण है। सामने की धरती पर ओमार के मकबरे पर बना सुन्दर मंदिर, एक विशाल हरे-भरे मैदान पर है जो पुराने शहर का छटवां हिस्सा है। वे दोनों कुछ क्षण के लिए रूक गये और एक दूसरे से कहा, "अंततः"! फिर वे येरूसालेम की ओर बढ़ने लगे, वे गेतसेमनी बारी में थोड़ी देर के लिए रूके। माता मरियम की कब्र देखी उसके बाद गेतसेमनी बारी पार कर उस स्थान पर गये जहाँ येसु अपने शिष्यों के साथ प्रार्थना करने गये थे और जहाँ उन्हें धोखा देकर गिरफ्तार किया गया था।
तब वे पुराने शहर की ओर गये, नाले को पार कर, वे दु˸खों के रास्ते (विया दोलोरोसा) पर चलते हुए पवित्र कब्रस्थान गये। राजा हेरोद के फाटक से निकलते हुए बाईबिल स्कूल में अपना समान रखा। वहाँ दोमेनिकन समुदाय ने उनका स्वागत किया। यह 13 अप्रैल 2019 था। वे करीब 5,000 किलो मीटर चले थे और ईश्वर को शुक्रिया कि वे विश्राम कर सकते थे।
बाईबिल स्कूल की वाटिका में वे एक तम्बू में विश्राम करने वाले थे जिसको दोमेनिकन धर्मसमाजियों ने उनके लिए तैयार किया था। वे मुस्कुराये...पेरिस से प्रस्थान करने के बाद वे एक बार भी बाहर नहीं सोये थे। दोमिनिकन लोगों के पास वे 10 दिन रहे। वे अत्यन्त खुश थे।
जीवन का अनुभव
वे पेरिस से येरूसालेम की यात्रा के लिए कभी चिंतित नहीं हुए क्योंकि उन्होंने ईश्वर की कृपा पर भरोसा रखा। वे अपने दैनिक जीवन में ईश्वर के सामीप्य का अनुभव करना चाहते थे। पेरिस में कॉलेज की पढ़ाई करते समय वे काम भी करते थे। कमिल फ्राँसीसी कम्पनी द्वारा परियोजनाओं का समर्थन करने के लिए यूरोपीय धन जुटाने हेतु प्रतिबद्ध थी जबकि गिलमेट पार्च नेईग संगठन में एक नर्स का काम करती थी जहाँ विकलांग लोगों की देखभाल की जाती है।
इस यात्रा को साकार करने के लिए उन्होंने अपनी नौकरी त्याग दी और वे नहीं जानती थीं कि फ्राँस वापस लौटने पर वे क्या करेंगी, किन्तु एक चीज वे अच्छी तरह जानती थीं कि उनका जीवन ईश्वर रहित नहीं होगा। क्या तीर्थयात्रा ने उनमें बुलाहट उत्पन्न की थी? वे इस यात्रा के दौरान मिले किसी को नहीं छोड़तीं हैं। कमिल ने कहा, "मैं अकसर पीयेर को याद करती हूँ जो 80 साल का सेर्वियाई था जिसने हमें अपना पलंग प्रदान किया। मैं कुछ दिनों तक अपने आपको देखने का प्रय़ास करूँगी और मुझे बड़ी खुशी होगी यदि मैं इस महान उदारता से अपने आपको दे पाऊँगी।"
वीडियो प्रतिलेखन
कमिल, आपने तीर्थयात्रा में क्या पाया?
- मैं कहना चाहूँगी कि त्याग एवं ईश्वर का ज्ञान ऐसी चीजें हैं जो व्यक्ति के जीवन को प्रकाश प्रदान करती हैं एवं हमें जीवन की पूर्णता तक पहुँचने में मदद देती है, जो इसके सच्चे अर्थ को प्रदान करती है। वह अर्थ जो एक व्यक्ति के जीवन से ऊपर जाती तथा हमारे जीवन जीने को सचमुच सार्थक बनाती है।
गिलमेट?
- मैं इन प्राकृतिक दृश्यों को देखकर अत्यन्त प्रभावित हुई, जो ईश्वर की सृष्टि का कार्य हैं। तीर्थयात्रा के दौरान वे सचमुच मेरे लिए विस्मय के स्रोत थे और सभी प्रकार के लोगों से भी मैं प्रभावित थी क्योंकि वे भी ईश्वर की रचना हैं।
- जिनपर हम विश्वास करते। हम अपने आपसे नहीं आते बल्कि ईश्वर से आते हैं। और हम इन पर ध्यान देकर ईश्वर के अनुठे कार्यों को देखते हैं।
कमिल, गिलमेट, क्या आपने 5,000 किलो मीटर की दूरी पैदल तय की...
-जी हाँ करीब-करीब, हमने ठीक-ठीक हिसाब नहीं किया...
करीब-करीब, क्या आप फिर ऐसा करना चाहेंगी?
- जरूर!
एक साथ?
- हाँ, हाँ जरूर।
- हम एक साथ पुनः यात्रा करना चाहेंगी।
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