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छुट्टियाँ मनाते हुए सिमोना और मुस्तफा छुट्टियाँ मनाते हुए सिमोना और मुस्तफा  कहानी

सिमोना और मुस्तफा : संघर्षपूर्ण प्रेम, अब एक खुशहाल जोड़ी

सिमोना और मुस्तफा के दस साल की प्रतीक्षा, एक ईश्वर में अटूट विश्वास और लगातार प्रार्थना और एक दूसरे के प्रति ईमानदार बने रहने की भावना ने उनके जीवन में खुशी लाई और उनका जीवन सफल हुआ।

माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी

प्रेम किसी भी धार्मिक और सांस्कृतिक संबद्धता से परे है। सिमोना एक ईसाई,  मुस्तफा एक मुसलमान। सिमोना रोम की है तो मुस्तफा लेबनानी । पहली नजर में प्यार हो गया। दस साल की प्रतीक्षा, भय, एक ईश्वर में अटूट विश्वास और लगातार प्रार्थना और एक दूसरे के प्रति ईमानदार बने रहने की भावना ने उनके जीवन में खुशी लाई और उनका जीवन सफल हुआ।  

वे दोनों अगस्त 1992 के अंत में बेरूत-रोम उड़ान पर मिले थे। मुस्तफा के पास इटली का छात्र वीजा था। समोना ‘एक्विप नोट्रे डेम’ आंदोलन के एक समूह में भाग ले रही थी, जिसका नेतृत्व लेबनान के एक फादर ने किया था, जो गुफाओं की भूमि में यात्रा की अगुवाई करता था। दोनों करीब बीस वर्ष की उम्र के थे और आशा के साथ इस प्यार को आगे बढ़ाने के लिए मिलने लगे।

पूर्वाग्रह की जाल में

त्रिपोली में मुस्तफा हुसैन मुसलमानों और ख्रीस्तियों के मिश्रित पड़ोस में रहते थे। एक खुले मुस्लिम परिवार में उनकी परवरिश हुई। बचपन से ही हर किसी के साथ दोस्ती करने के आदी थे। सिमोना को स्वीकार करना उसके साथियों और उसके माता-पिता के लिए कोई दिक्कत न थी। सिमोना को मुस्तफा की दोस्ती को स्वीकार करने के लिए बहुत अधिक परेशानी उठानी पड़ी। उनका परिवार मुसलमानों से डरता था, और उनसे अपने को सदा दूर रखा। यह पूर्वाग्रह पीढ़ियों से चली आ रही थी। युवक के अच्छे इरादों के बावजूद सिमोना के करीबी एक आध्यात्मिक मार्गदर्शक भी उनकी मां को आश्वस्त नहीं कर पाया था। सिमोना और उनकी माँ के बीच की लड़ाई बहुत दर्दनाक थी जो एक दूसरे से दूर ले गई। इस लड़ाई में बहुत समय और शक्ति की बर्बादी हुई। उनका सबसे बड़ा डर यह था कि सिमोना को अपना धर्म और यहां तक ​​कि उसकी पढ़ाई छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है। सिमोना की माँ का इस तरह सोचना वाजिफ था क्योंकि जब उनकी शादी हुई तो उसे दक्षिणी इटली से रोम में आकर बसना पड़ा था। अपने लोगों, अपनी संस्कृति, रीति रिवाजों से दूर उन्हें इतने बड़े शहर में अकेलेपन की सामना करना पड़ा था। अतः वे इस रिश्ते के विरोध में थी।

मंगनी के बाद वेनिस में
मंगनी के बाद वेनिस में

एक साथ प्रार्थना करना संभव है

मुस्तफा ने हमेशा सिमोना के साथ विनम्रता और विश्वास के साथ जीवन जीया। सिमोना जब पहली बार मुस्तफा के घर गई तो उसे असहज महसूस हुआ, पर उनकी ताकत एक दूसरे के लिए उनका प्यार था। सिमोना ने महसूस किया कि मुस्तफा का विश्वास अपनी तुलना में अधिक मजबूत, अधिक परिपक्व था, उनके माध्यम से मैंने येसु को देखा। आश्चर्य की बात यह थी कि वह "मुझसे ज्यादा काथलिक थे।" सिमोना ने बताया कि लेबनान में, सगाई के दौरान, मुस्तफा के चाचा का निधन हो गया। अंतिम संस्कार में उन्होंने खुद को अकेला ख्रीस्तीय पाया। उसे मालूम न था कि वह किस तरह से उन्हें सांत्वना दे और अपनी निकटता दिखाये। वह माला निकाल कर प्रार्थना करने लगी। मुस्तफा कहते हैं, "मेरी दादी अभी भी उस दृश्य को याद करती है और वह खुश है।"

“सिमोना ने मुझे विश्वास के प्रति अपने लगाव को दिखाया। वह हमेशा मुझसे कहा करती थी : ईश्वर प्रेम है। मुझे यह बात और अधिक आकर्षक और सुंदर लगती है। मैंने ख्रीस्तीय धर्म की नींव और सिद्धांतो का अध्ययन किया। मैं पवित्र मिस्सा में भाग लेने उसके साथ गिरजाघर जाता हूँ। सब कुछ के बावजूद, मुझे उस पर अपना विश्वास महसूस होता है।" सिमोना अपनी सहज प्रार्थनाओं या स्तोत्रों को पढ़ती और साझा करती हैं :"एक विशेष बात उनके दिल को छू लेता है वह यह कि पवित्र आत्मा जहां चाहता है वह जा सकता है उसके सामने कोई अवरोध नहीं है। पवित्र आत्मा ही येसु की शिक्षाओं पर चलने के लिए सामर्थ्य देते हैं। प्रेम की कोई सीमा नहीं है, मैं इससे आश्वस्त हूँ। जिस चीज ने हमारी मदद की, वह थी उनकी अत्यधिक जिज्ञासा।”

सुलह का समय, मुस्तफा और उनकी सास
सुलह का समय, मुस्तफा और उनकी सास

भेदभाव से परे एकता

मुस्तफा कहते हैं, "मुझे एहसास हुआ कि जो लोग शांति चाहते हैं वे वास्तव में इसे पा लेते हैं। सालों से मैंने इग्नासियुस आध्यात्मिक पथ संगठन में भाग लिया, जहां सिमोना पहले से ही उसकी सदस्य थी, जिसने मेरा स्वागत किया और मुझे हमेशा सहज महसूस कराया।" "वास्तव में मेरे लिए खुद को एकीकृत करना इतना मुश्किल नहीं था, जितना कि नौकरशाही दृष्टिकोण को स्वीकार करना। मैं रोम के  अंतरराष्ट्रीय कॉलेज के येसु समाजियों के साथ बास्केटबॉल खेलने गया था। मैंने देखा कि वे सही तरह से और वफादारी के साथ खेल रहे थे। इससे हमें लगा कि हम रोजमर्रा की जिंदगी में भी वफादार हो सकते हैं, चाहे हम किसी भी देश या संस्कृति से क्यों न आते हों।" फिर भी मैं अपने कड़वे अनुभवों को याद करता हूँ जहाँ मेरे साथ अच्छा व्यवहार नहीं किया गया। काम करने के स्थान पर भी मुझे भेदभाव का सामना करना पड़ा, क्योंकि मैं विदेशी होकर एक ख्रीस्तीय महिला से शादी की थी जो उनके लिए अस्वीकार्य था।  

रोम में उनकी शादी की शुभ घड़ी
रोम में उनकी शादी की शुभ घड़ी
संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए
संत पेत्रुस महागिरजाघर के प्रांगण में संत पापा जॉन पॉल द्वितीय से आशीर्वाद ग्रहण करते हुए

दृढ़ता, आपत्ति  के बिना

मुस्तफा कहते हैं, “मैंने सब कुछ ईश्वर के हाथ में रख दिया। हमने दो अलग धर्मों के बावजूद, आपसी सम्मान में शादी करने का निर्णय लिया। शादी की तैयारी के दौरान मुझे साक्षात्कार देना था। जिसमें मुझे लगा कि उन्हें डर था कि मैं शादी के बाद जल्दी या बाद में इस रिश्ते को तोड़ दूँगा। पर ऐसा नहीं हुआ। अंत में बेटी देने के बजाय, सिमोना की माँ ग्राज़िया ने मुझे दत्तक बेटे के रुप में स्वीकार किया। कोई इसकी कल्पना भी नहीं कर सकता था। मैंने कभी कोई आपत्ति नहीं की और यही अंतिम निर्णय था।"

सिमोना और मुस्तफा

वीडियो प्रतिलेखन

मुस्तफा: - मैं लेबनान के त्रिपोली से आता हूँ। मैं 1992 में सिमोन से बेरूत-रोम उड़ान पर मिला। पहली नजर में मुझे एसा लगा कि वो मेरे लिए है। कुछ दिनों के मुलाकात के बाद मैंने उससे कबूल किया कि मैं उससे शादी करूंगा।

सिमोना: - मैंने अपने पहले प्यार को पाया है और इस प्यार को मैं जी रही हूँ जिसके लिए मुझे धैर्य के साथ इन्तजार करना पड़ा था। दो अलग देश वासियों के बीच, अनेक विविधताओं के साथ हमने साथ जीने का साहस किया। इन विविधताओं में धर्म भी था जो हमारे लिए एक बड़ी चुनौती थी। विविधता के संपर्क के बिंदुओं को देखने के लिए, मानवता हमें, सिद्धांतों, मूल्यों को एकजुट करती है। दुर्भाग्य से यह सब समझ में नहीं आया, हमारे इतिहास के पहले दस वर्षों तक, मेरे परिवार के लोग विशेषकर मेरी मां इसे समझ नहीं पा रही थी और हमारे रिश्ते को साफ इनकार कर दी थी। पर बाद में जब वह समझ गई तो उन्होंने इस नुकसान के लिए माफी मांगी। उसे हम पर बहुत गर्व था ... पर अब माँ यहाँ मौजूद नहीं है, लेकिन वह वास्तव में बहुत खुश थीं।

मुस्तफाः मैं मेरे परिवार को धन्यवाद देना चाहता हूँ क्योंकि वास्तव में एक खुला परिवार है, यह बिल्कुल भी कट्टरपंथी नहीं है। उन्होंने हमेशा मुझे स्वतंत्र छोड़ दिया, यहां तक कि जब हम दोस्तों के साथ खेलते थे, तो उन्होंने यह नहीं कहा: यह ख्रीस्तीय है, यह मुस्लिम है, बिल्कुल भी नहीं। हम लगभग सभी समान थे और इसी वजह से मैं सिमोना से मिल पाया और जब मैं उसे लेबनान ले गया, तो मेरे परिवार वालों ने उसे जाना और स्वीकार कर लिया और जब हमने शादी करने का फैसला किया, तो उन्होंने हमें पूरी आजादी दी।

सिमोना : - क्या आप हमारी यात्रा के दौरान आयी अनेक समस्याओं के बारे याद करते हैं?

मुस्तफाः बहुत, बहुत

सिमोनाः सभी तरह की समस्यायें...

मुस्तफा : - बहुत सारी समस्याएं लेकिन, हम ईश्वर को धन्यवाद देते हैं उन्होंने हमें हमेशा सही समय पर सही व्यक्ति को दिया। मैं हमेशा ईश्वर का शुक्रिया अदा करता हूँ, उन्होंने मुझे उपहार के रुप में मेरी पत्नी को दिया। हम दोनों ने हमेशा प्यार और धैर्य के साथ सारी समस्याओं को दूर किया है।

सिमोना: - मैं इस तथ्य को केंद्र में रखना चाहती हूँ कि हमारे विवाह में ईश्वर उपस्थित है, वे ही हमें एकजुट करते हैं और हमने एक मिश्रित विवाह करना ठीक समझा क्योंकि हमारा मानना है कि ईश्वर एक है और हम ईश्वर के सामने एक दूसरे के प्रति विश्वसनीय बने रहने की प्रतिज्ञा करना चाहते थे।

मुस्तफा: - मैंने मिश्रित विवाह स्वीकार किया क्योंकि यहां तक कि हमारे मुस्लिम धर्म, इस्लाम के केंद्र में करुणा है। यह सच नहीं है कि केवल नफरत ही मौजूद है।

सिमोना: - एक अनुभव जिसे हम अभी भी याद करते हैं वह था मुस्तफा के चाचा का अंतिम संस्कार। व्यावहारिक रूप से घर में शोक के समय, पुरुषों और महिलाओं को अलग कर दिया गया। जहां सभी महिलाएं थीं मैंने कमरे में अपने आप को एकमात्र पश्चिम देश से और अकेला ख्रीस्तीय पाया।  महिलाओं ने प्रार्थना की और न जाने कैसे अपनी एकजुटता व्यक्त करने के लिए मैंने अपने हाथ में माला लिया और रोजरी प्रार्थना करने लगी।

मुस्तफा : - मेरी दादी, आज भी, जब मैं उसे फोन करता हूँ, तो वह हमेशा मुझसे कहती है कि वह सिमोना को इतना चाहती है, क्योंकि उसे अभी भी 2010 के अंतिम संस्कार की याद है, नौ साल बीत चुके हैं, लेकिन वह सिमोना को माला के साथ कभी नहीं भूलती और उससे बहुत ही प्यार करती है

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25 June 2019, 17:05