प्रदर्शन में भाग लेते दलित प्रदर्शन में भाग लेते दलित  

दलितों के लिए न्याय की मांग पर दिल्ली में प्रदर्शन

भारत के हजारों ख्रीस्तियों एवं मुसलमानों ने 12 मार्च को नई दिल्ली में राष्ट्रीय स्तर पर एक बड़े प्रदर्शन में भाग लेकर, भेदभाव को समाप्त किये जाने एवं दलितों तथा बहिष्कृत लोगों के वैधानिक अधिकारों की मांग की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

राष्ट्रीय दलित ख्रीस्तीय समिति के अध्यक्ष मेरी जोन ने कहा, "ख्रीस्तीय और मुस्लिम दलितों को 'मान्यता प्राप्त जातियों' का दर्जा दिए जाने का समय आ गया है।"

प्रदर्शन में राजनीतिक नेताओं, सांसदों, धर्माध्यक्षों, कलीसिया के धर्मगुरू, दलित नेता और मानव अधिकार कार्यकर्ताओं ने भाग लिया।

यह मामला 1935 का है

मेरी जोन ने कहा कि इस बात को याद किया जाना चाहिए कि सन् 1935 में जब भारत में अंग्रेजों का शासन था, उन्होंने भारतीय समाज में भेदभाव की बड़ी समस्या को दूर करने का प्रयास किया तथा निम्न जाति के लोगों को भी समान नागरिक का दर्जा दिया। यह लाभ किसी धर्म विशेष पर आधारित नहीं था, अतः सभी धर्मों (हिन्दू, मुस्लिम, ख्रीस्तीय, बौद्ध एवं सिक्ख) के लोग इसका लाभ उठा सकते हैं।   

सन् 1950 में एक राष्ट्रपति के आदेश ने उन अधिकारों को संशोधित किया और "अनुसूचित जाति" का दर्जा केवल हिंदू धर्म के दलितों को दिया, यह कहते हुए कि हिंदू धर्म के अलावा किसी अन्य धर्म को मानने वाले व्यक्ति को "मान्यता प्राप्त जाति का सदस्य" नहीं माना जाएगा। उस आदेश को बाद में दो बार संशोधित किया गया था (1956 और 1990 में)।

कलीसिया की अपील

अल्पसंख्यकों के राष्ट्रीय आयोग के एक सरकारी ईकाई ने भारत में ख्रीस्तीय एवं मुसलमान समुदाय का राष्ट्रीय स्तर पर, सामाजिक-आर्थिक और शैक्षणिक पिछड़ेपन के आधार पर एक अध्ययन किया, जिसमें पाया गया कि ख्रीस्तीय और मुसलमान अधिकतर पिछड़ी जाति के हैं। आयोग ने "मान्यता प्राप्त मामलों" की स्थिति का विस्तार करते हुए उन्हें उन अधिकारों और लाभों तक पहुंच प्रदान करने की सिफारिश की जो उनके विकास और सामाजिक संवर्धन में योगदान करते हैं।  इन सब के बावजूद सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया। इसके लिए भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन, भारत में कलीसियाओं की राष्ट्रीय परिषद तथा अन्य संगठनों ने भी कई बार रिपोर्ट किया है।    

25 प्रतिशत दलित

मेरी जोन ने कहा कि इस आधार पर तथा 2019 में होने वाले आगामी चुनाव के आलोक में, हमने इस सार्वजनिक प्रदर्शन का आयोजन किया तथा केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप करने की मांग की है। आधिकारिक आँकड़ों के अनुसार भारत के करीब 300 मिलियन से अधिक लोग (करीब 1.3 बिलियन भारतीयों का 25 प्रतिशत) दलित हैं। वे सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक दृष्टिकोण से पिछड़े हैं अथवा हाशिये पर जीवन यापन कर रहे हैं।

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12 March 2019, 17:13