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फ्राँस के काथलिक धर्माध्यक्षों के साथ हाथ मिलाते राष्ट्रपति माक्रोन फ्राँस के काथलिक धर्माध्यक्षों के साथ हाथ मिलाते राष्ट्रपति माक्रोन 

पेरिस प्रदर्शन, फ्राँसीसी धर्माध्यक्षों द्वारा वार्ता का आह्वान

फ्राँस के काथलिक धर्माध्यक्षों की उम्मीद है कि वे कलीसिया की शिक्षा द्वारा फ्राँसीसी सरकार एवं "येलो वेस्ट" (पीले वस्त्रधारी) प्रदर्शनकारियों के बीच सेतु का निर्माण कर पायेंगे।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

फ्राँस, मंगलवार, 11 दिसम्बर 2018 (वाटिकन न्यूज)˸ फ्राँस के नोर्मंडी के धर्माध्यक्षों ने फ्राँस की सरकार एवं सरकार के विरूद्ध प्रदर्शनकारी "येलो वेस्ट" का आह्वान किया है कि वे एक-दूसरे से मुलाकात करें तथा वार्ता एवं शांति के व्यक्ति बनें।

धर्माध्यक्षों ने संत मती, मारकुस एवं लूकस रचित सुसमाचारों से लिए गये वाक्य, "क्या हम कैसर को कर दें" की शीर्षक से एक वक्तव्य जारी किया है। सुसमाचार में यहूदी येसु से पूछते हैं कि हम गैर-यहूदी रोमी सम्राट को कर दें अथवा नहीं।

फ्राँस में "येलो वेस्ट" प्रदर्शनकारी, सरकार द्वारा पेट्रोल एवं डीजल के दाम बढ़ाये जाने से असंतुष्ट हैं।   

वार्ता एवं शांति

वक्तव्य में कहा गया है कि "कहावत (जो कैसर का है उसे कैसर को दो और जो ईश्वर का है उसे ईश्वर को) की व्याख्या बहुधा ईश्वर पर अपनी आस्था बनाये रखने एवं अन्य नागरिकों के समान व्यवहार करने के लिए किया जाता है।" धर्माध्यक्षों ने कहा है कि जबकि वे लोगों की गतिविधियों में हस्तक्षेप करना नहीं चाहते, किन्तु यह ध्यान देने योग्य है कि सुसमाचार के कहावत की तरह, करों का सवाल अक्सर, व्यवहार के लिए अन्य मुद्दों और उद्देश्यों को छिपाता है।  

वक्तव्य में कहा गया है कि हिंसा द्वारा समाधान संभव नहीं है। समाधान तभी संभव है जब दोनों पक्षों के लोग एक-दूसरे से वार्ता के लिए सहमत हों। संकट से बाहर तब तक निकला नहीं जा सकता है जब तक कि सरकार एवं नागरिक आमने-सामने होकर अपनी पसंद का चुनाव करते रहेंगे। पसंद के चुनाव की ओर झुकाव अधिक मदद नहीं कर पायेगा। अतः ख्रीस्तियों एवं सदइच्छा रखने वाले लोगों को प्रोत्साहन दिया जाता है कि वे वार्ता में भाग लें।

"लौदातो सी"

वक्तव्य में, संत पापा फ्राँसिस के प्रेरितिक पत्र "लौदातो सी" का जिक्र करते हुए कहा गया है कि यह प्रदर्शनकारियों एवं सरकार के बीच सेतु के समान है। संत पापा फ्राँसिस ने सही कहा है कि लौदातो सी में सब कुछ जुड़ा हुआ है। इसमें वे एक समग्र परिस्थितिकी, ग्रह के प्रति सम्मान तथा मानव के विकास का प्रस्ताव रखते हैं। एक ख्रीस्तीय के रूप में हम किस तरह सृष्टिकर्ता ईश्वर की कल्पना करते हैं जो ग्रह के प्रति सम्मान एवं लोगों के प्रति एकात्मता के बीच चुनाव करते? हालांकि, उपभोग में न तो परिस्थितिकी और न ही एकात्मता पायी जाती है, जिसमें जीने की चाह रखनेवालों, क्रयशक्ति खोने से भयभीत लोगों अथवा अधिक पाने की चाह रखने वाले सभी लोगों के लिए परेशानी है।  

पर्यावरण और प्रदर्शनकारियों के बारे में सरकार की चिंताओं को उजागर करते हुए धर्माध्यक्षों ने दोनों पक्षों को एक आम पृष्टभूमि दिखाने की कोशिश की है तथा वे उम्मीद करते हैं कि एक पक्ष द्वारा पूर्ण संधिपत्र की मांग के बदले, वार्ता एवं समझौता द्वारा समस्या का हल किया जा सकेगा।

पूरे समाज की चिंता

वक्तव्य को इस मकसद से भी जारी किया गया है कि राजनीतिज्ञों को इस बात की चेतावनी दी जा सके कि वे अन्य सभी चीजों एवं लोगों का बहिष्कार कर, केवल अर्थव्यवस्था पर ध्यान देने के प्रलोभन से दूर रहें। वे समाज के सभी लोगों पर ध्यान दें ताकि उनका भविष्य सुनिश्चित हो एवं राजनीति में स्थिरता लायी जा सके।

बच्चों, युवाओं एवं रोगियों की चिंता तथा परिवारों को प्रोत्साहन दिया जाना, उदारता तथा उन सभी बातों को महत्व देना, समाज में जीवन को सच्ची खुशी प्रदान करता है वह भी राजनीतिक उपलब्धि है। भाईचारा के बिना अर्थव्यस्था की चिंता करना बांझपन के समान है।

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11 December 2018, 16:11