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फादर सेद्रिक प्रकाश एस. जे, "शेरिंग द विजडम ऑफ टाइम" की किताब को दिखलाते हुए फादर सेद्रिक प्रकाश एस. जे, "शेरिंग द विजडम ऑफ टाइम" की किताब को दिखलाते हुए 

संत पापा फ्रांसिस और “छलका कॉफी”

संत पापा की नई पुस्तिका “शेरिंग द विजडम ऑफ टाईम” नई और पुरानी पीढ़ी के बीच सीखने की कड़ी है।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 19 नवम्बर 2018 (रेई) संत पापा की नई पुस्तिका “शेरिंग द विजडम ऑफ टाईम” जिसका विमोचन युवाओं की आमसभा के अंत में किया गया, वह आज की नई पीढ़ी और बुजूर्गों के बीच सेतु का कार्य करेगी।

अनुभवों के झरोखे पर लिखी गई संत पापा की यह पुस्तिका कहानियों का एक संकलन है जो विश्व को बुजूर्गों का संदर्भ प्रस्तुत करती है। जीवन के विभिन्न पड़ावों में पड़े 30 देशों के लोगों की ज्ञान भरी बातों और अनुभवों का यह एक संग्रह हैं जो विश्वास, भरोसा, मानवीय लचीलापन औऱ प्रेम का वृतांत प्रस्तुत करती है।

संत पापा अपनी पुस्तिका की प्रस्तावना में अपने जीवन के पन्नों को साझा करते हुए युवाओं और बुजूर्गों के बीच संबंध स्थापित करने पर बल देते हैं। “मैं इस पुस्तिका को युवाओं के नाम समर्पित करता हूँ जिससे वे अपने बड़े-बुजूर्गों के सपनों को बेहतर भविष्य के रुप में परिणत कर सकें।”

इस पुस्तिका में मानव अधिकारों की रक्षा हेतु कार्यरत येसु समाजी पुरोहित सेद्रिक प्रकाश के अनुभव भी शामिल हैं। उन्होंने संत पापा फ्रांसिस की पुस्तिका के संबंध में और इस पुस्तिका में अपने अनुभव के पिरोये जाने पर विचार व्यक्त करते हुए कहा, “यह मेरे लिए बड़े आश्चर्य की बात है।”  

संत पापा की पुस्तिका के प्रकाशक लोयोला प्रेस ने पुरोहित सेद्रिक से साक्षात्कार करते हुए बतलाया कि वे बेरुत में जेआरएस (जेस्विट रेफ्युजी सर्विस) में प्रेरिताई कार्य कर रहे हैं। अपने लेख के बारे में उन्होंने कहा कि यह प्रेम का बारे में है, “मैंने कभी नहीं सोचा था कि इसे संत पापा की पुस्तिका में स्थान मिलेगा।”

कॉफी का छिलकना

सेद्रिक अपनी आदत के अनुसार अपने विचारों, खोज और चिंतनों को कागज पर कलमबंध करते थे। एक दिन एक मित्र उनके पास आया और बातचीत के क्रम में उन्होंने अपनी कॉफी उनके लिखे कागजों पर गिरा दिया। पुरोहित ने बतलाया कि कॉफी का छिलकना उनके साऱे कार्यों पर पानी फेरने जैसा था। “मैं स्वतः इस घटना से विचलित हो गया क्योंकि मेरी सारी मेहनत बेकार हो गई। मैं नहीं जान रहा था कि मैं उस पर क्रोध करूं या रोऊं। लेकिन मैंने मुस्कुराते हुए कहा क्या मैं आपके लिए दूसरी कॉफी तैयार करूँ।”  

पुरोहित सेद्रिक ने कहा कि वह मित्र आज भी उस घटना को नहीं भूलता है। वे कहते हैं कि हम अपने जीवन के विभिन्न परिस्थितियों से हो कर गुजरते हैं, “उस परिस्थिति में मेरा क्रोधित होना, मेरे उस मित्र पर चिल्लाना, नकारात्मक रुप से पेश आना परिस्थिति को नहीं बदलता, लेकिन मैंने सोचा कि क्या मैं अपनी उस परिस्थिति को बदलकर और अच्छा बना सकता हूँ।”  

संत पापा का प्रत्युत्तर

उन्होंने संत पापा के द्वारा दिये गये अपने इस अनुभव के प्रत्युत्तर के बारे में कहा कि जीवन के अनुभव हमें यह बतलाते हैं कि हमें अपने जीवन की चिंताओं से आगे निकलने की जरूरत है... उन्हें हल्के अंदाज से लेते हुए और अपने में निश्चित करते हुए कि जीवन की चीजें बदल सकती हैं। उम्र का तजुर्बा, जीवन के मुश्किल भरे क्षणों को हल्के रुप में लेना, हमें अपने जीवन की चुनौतियों को सकारात्मक रुप में लेने हेतु मदद करता है। हमें अपने जीवन की घटनाओं को नई ताजगी और सृजनात्मक रुप में लेने की जरूरत है। प्रेम अपने में सजीव है जो जीवन की विकट घटनाओं और दुर्घटनाओं से पराजित नहीं होता।”  

उन्होंने कहा कि मैं बहुत ही सम्मानित महसूस कर रहा हूँ कि मुझे संत पापा की पुस्तिका का अंग होने का मौका मिला। यह पुस्तिका आज के युवाओं को बुजूर्गों के विवेक और ज्ञान से रुबरु करेगी, जहाँ हम एक-दूसरे से सीखते हैं। उन्होंने कहा कि हमें वर्तमान परिवेश में एक विकल्प खोजने की जरूरत है जिसके फलस्वरुप हम अपने जीवन के द्वारा एक-दूसरे को धनी बनाते हुए, “दुनिया को और अच्छा, अधिक मानवीय, प्रेममय, स्वीकार्य तथा दूसरों के लिए और अधिक स्वागतार्थ बना सकें।

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19 November 2018, 16:35