मानवाधिकार घोषणा के 70 वर्षों पर महाधर्माध्यक्ष गलाघेर का संदेश
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
स्ट्रैसबर्ग, बुधवार 12 सितम्बर 2018 (वाटिकन न्यूज) : स्ट्रैसबर्ग में यूरोपीय परिषद् की बैठक की विषय "सार्वभौमिक चुनौती" थी जहाँ महाधर्माध्यक्ष पॉल रिचर्ड गलाघेर ने सोमवार को "बहुपक्षीय संदर्भ में मानवाधिकार और मानव अधिकारों की सार्वभौमिकता" विषय पर अपना वक्तव्य दिया।
मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा की 70वीं वर्षगांठ को चिह्नित करते हुए अपने संबोधन में, महाधर्माध्यक्ष ने तीन प्रमुख चुनौतियों पर ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने कहा, "वर्तमान ऐतिहासिक संदर्भ में, मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता की मान्यता को खतरा है, और इसे बचाने के लिए संभावित उपायों की तलाश करनी है।"
चुनौतियां
उन्होंने कहा कि मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता की पहली चुनौती, "सामाजिक विकास के मॉडल से आती है। हमारा लक्ष्य उन्नत अर्थव्यवस्थाओं और वैश्विक स्तर दोनों पर है।" महाधर्माध्यक्ष गलाघेर ने कहा कि हाल के वर्षों में, पश्चिमी देशों में सामाजिक ताने-बाने पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ा है। क्योंकि असमानताओं के विकास, कुछ देशों में जनसंख्या में गिरावट, नौकरी असुरक्षा, साथ ही सामाजिक सुरक्षा प्रणालियों में गिरावट आयी है।"
उन्होंने कहा कि वैश्विक स्तर पर भी, "विश्व अर्थव्यवस्था की समग्र वृद्धि के बावजूद, पूरी आबादी गरीबी में है।"
मानवाधिकारों की सार्वभौमिकता की दूसरी चुनौती, "बढ़ते सांस्कृतिक बहुलवाद से आती है जिसे हम अपने समाजों में अनुभव करते हैं।"
महाधर्माध्यक्ष ने आगे कहा कि तीसरी चुनौती, "अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था की अस्थिरता और शांति के बढ़ते खतरों से उत्पन्न हुई है।"
संभावित समाधान
इन चुनौतियों के जवाब में, महाधर्माध्यक्ष गलाघेर ने परमधर्मपीठ के परिप्रेक्ष्य से कुछ संभावित समाधान प्रस्तुत किए। पहली चुनौती के संबंध में, उन्होंने जोर देकर कहा "सार्वभौमिक घोषणा के एक आवश्यक पहलू: अर्थात्," आर्थिक, सामाजिक और सांस्कृतिक "अधिकारों के साथ" राजनीतिक और नागरिक "अधिकारों की पुष्टि जरुरी है।"
दूसरी चुनौती के जवाब में महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि एक बढ़ती सांस्कृतिक बहुलवाद में, "धर्म की आजादी के अधिकार की पुष्टि मजबूती के साथ की जाना चाहिए, जो बहुलवादी समाज के वास्तविक संदर्भ में वास्तविक समानता और पारस्परिक सम्मान की स्थिति को दिखाती है।"
महाधर्माध्यक्ष गलाघेर ने तीसरी चुनौती के समाधान पर जोर देते हुए कहा कि अगर दूसरों की गरिमा और अधिकारों की उपेक्षा की जाती है या रौंद दिया जाता है, तो खुद की गरिमा और अधिकार भी खतरे में पड़ जाती है।
उनहोंने कहा, “हम बहुधा देखते हैं कि अधिकांश मानवता को प्रभावित करने वाले गंभीर आर्थिक और सामाजिक अन्यायों का भी यूरोप में प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है। प्रवासी और शरणार्थी संकट ने हमें अन्य बातों के साथ, इसे भी सिखाया है।"
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