प्रवेश द्वार पर एक छोटी बच्ची
वाटिकन न्यूज
अंद्रेया तोरनीएली
"मुझे ऐसा महसूस हुआ जैसे किसी छोटी बच्ची का ऐसे घर में स्वागत किया गया हो जो उसका भी हो सकता था..." लीला आज़म ज़ंगानेह के इन भावुक शब्दों में कोई भी शब्द अनावश्यक नहीं लगता।
उसकी बड़ी गहरी आँखें अपने श्रोता का अध्ययन करती हैं, मानो उनके दिल को पढ़ रही हों। पेरिस में ईरानी माता-पिता के घर जन्मी, लीला ने हार्वर्ड में साहित्य और फिल्म पढ़ाया है। वे रोम, पेरिस और न्यूयॉर्क के बीच रहतीं, और सात भाषाएँ बोलती हैं। वे दुनिया की एक ऐसी महिला हैं जो दुनिया को जानती हैं, और दो साल के बच्चे की माँ हैं। हाल के दिनों में, उसने नैरेटिव 4 के अन्य सदस्यों के साथ संचार की जयंती में भाग लिया, जो लेखक कोलम मैककैन द्वारा व्यक्तिगत कहानियों के आदान-प्रदान के माध्यम से सहानुभूति और आपसी समझ को बढ़ावा देने के लिए स्थापित गैर-लाभकारी संगठन है।
वे भावुक होकर कहती हैं, "जुबली में शामिल होना, शायद मेरे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक थी, साथ ही दो साल पहले मेरे बेटे का जन्म भी हुआ था। मेरा जन्म पेरिस में हुआ था और मेरी ईरानी माँ ने तेहरान के काथलिक स्कूलों में पढ़ाई की थी। बचपन से ही उन्होंने मुझमें बहुत खुले विचारों वाली आस्था भर दी थी। मैंने काथलिक स्कूल में पढ़ाई की। लेकिन किसी ने कभी मुझसे नहीं कहा कि मैं कैथोलिक नहीं हूँ!"
जब लीला 9 साल की थीं तब उन्हें समझ में आया कि वे परमप्रसाद नहीं ले सकतीं क्योंकि उन्होंने बपतिस्मा नहीं लिया है। और नियम के अनुसार बपतिस्मा लेनेके लिए उसे 15 साल इंतजार करना था। “मैं फ्राँस में धर्मशिक्षा में भाग लेते हुए याद करती हूँ। एक दिन, क्लास में, मैंने एक सवाल किया: क्यों सिर्फ ख्रीस्त ही ईश्वर के बेटे हैं? क्या हम सभी ईश्वर के बच्चे नहीं हैं? मेरे गोत्र पर गौर करते हुए प्रचारक ने जवाब दिया, अगर तुम ऐसी बातें बोलोगी, तो यहाँ तुम्हारे लिए स्थान नहीं है।”
यह एक दर्दनाक याद है। "लेकिन, किसी चमत्कार से और शायद मेरी माँ के विश्वास के बदौलत, ख्रीस्तीय धर्म के साथ मेरा रिश्ता बहुत गहरा बना रहा। आप जुबली में पहुँचने पर मेरी भावना की कल्पना कर सकते हैं।"
लीला ने पोप के साक्ष्य को ध्यान और आश्चर्य से सुना
"अमेजन के एक पुरोहित ने एक बार मुझसे कहा, 'इस पोप के साथ, हृदय का नियम है, और आपके हृदय में, आप पहले से ही ख्रीस्तीय हैं।' मैं पोप फ्राँसिस की समावेशी दृष्टिकोण से बहुत प्रभावित हुई, उनका आग्रह कि हमें येसु के संदेश को बांटने के लिए दुनिया में जाना है।’ मैं अभिभूत हो गयी जब उन्होंने एक ऐसे ईश्वर के बारे में बात की जो प्रवेश करने के लिए नहीं, बल्कि बाहर जाकर सभी तक पहुँचने के लिए दस्तक देते हैं।"
शुक्रवार 24 जनवरी को, संचार की जयन्ती का पहला कार्यक्रम था संत जॉन लातेरन में प्रायश्चित जागरण प्रार्थना। वे स्वीकार करते हुए कहती हैं, "मैं अक्सर मिस्सा में भाग लेती हूँ, भले ही मुझे पता है कि 'तकनीकी रूप से' मैं काथलिक नहीं हूँ,"और मैं कह सकती हूँ कि लातेरन महागिरजाघर में मैंने जिस प्रार्थना सभा में भाग लिया, वह मेरे लिए अब तक का सबसे सुंदर अनुभव था। एक बार, हमें बताया गया कि साठ पुरोहित पापस्वीकार के लिए बैठे थे। नैरेटिव 4 की एक मित्र, रोजा, जो एक सच्ची काथलिक हैं, पापस्वीकार करने गई। जब वह वापस लौटी, तो मैंने पूछा कि क्या यह एक अच्छा अनुभव था। उसने उत्तर दिया, 'बहुत अच्छा।' मैंने उससे कहा, 'मैं पूरी तरह से काथलिक नहीं हूँ... क्या आपको लगता है कि मैं भी जा सकती हूँ?' वह आमतौर पर इन चीजों के बारे में बहुत सटीक होती है, इसलिए मुझे उम्मीद थी कि वह कहेगी, 'बिल्कुल नहीं!' इसके बजाय, उसने कहा, 'हाँ, आप जा सकती हैं।'"
लीला, जो एक छोटी बच्ची के रूप में परमप्रसाद लेना चाहती थी लेकिन ले नहीं पायी क्योंकि वह बपतिस्मा नहीं ली थी, उठी और एक पुरोहित के पास गई। “मैं एक फ्रांसीसी भाषी पुरोहित के पास गई। जब मैं कांगो के पुरोहित के पास पहुँची, तो मैंने सबसे पहले यही कहा, ‘फादर, मेरा पहला पाप यह है कि मैं काथलिक नहीं हूँ। लेकिन मेरे दिल में ख्रीस्तीय धर्म है।’ उन्होंने जवाब दिया, ‘हम सभी पापी हैं, और ईश्वर के घर में आपका स्वागत है।’ फिर उन्होंने प्रार्थना करना शुरू कर दिया। यह इतना खूबसूरत पल था कि मैं खुशी से रोने लगी। उन्होंने मुझे अद्भुत बातें बताईं। उन्होंने मुझे पवित्र आत्मा से जुड़े रहने के लिए आमंत्रित किया, और प्रेम के बारे बात की। उन्होंने मुझे बताया कि दूसरे हमेशा हमारे हिस्से होते हैं और मुझे प्यार की आज्ञा की याद दिलाई। मैं खुशी के आँसू बहायी, और अंत में, मैंने हँसते हुए उनका धन्यवाद किया क्योंकि यह एक बहुत ही आनंददायक अनुभव था।”
सोमवार को सम्प्रेषकों के साथ लीला को भी पोप फ्राँसिस से मिलने का अवसर मिला। मुलाकात का अनुभव बतलाते हुए वे कहती हैं, “उन्होंने मेरी ओर देखा, मुझे आगे बढ़ते रहने और हिम्मत रखने के लिए प्रोत्साहित किया। मेरे कांगो के पापपोचक ने भी पोप की भावना को समझ लिया था - यह अविश्वसनीय खुलापन, जैसे कोई व्यक्ति एक ही समय में बाहर और अंदर हो, हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश करता हो।"
इसलिए जुबली के आलिंगन में और पापस्वीकार के स्थान पर लीला एक छोटी बच्ची की तरह प्रवेश द्वार पर खड़ी है, ठीक वैसे ही जैसे महान फ्रांसीसी काथलिक लेखक चार्ल्स पेगुई, जिन्होंने अविस्मरणीय गहराई और आस्था के पन्ने लिखे, फिर भी अपने पूरे जीवन में संस्कार प्राप्त करने में असमर्थ रहे क्योंकि उन्होंने एक नास्तिक महिला से विवाह किया था और उनके तीन बच्चे थे जिनका बपतिस्मा नहीं हुआ था। येसु के तीन साल के सार्वजनिक जीवन पर चिंतन करते हुए, पेगुई ने लिखा:
"उसने उन्हें रोने-धोने या समय की दुष्टता को दोष देने में नहीं बिताया... उसने किसी पर आरोप नहीं लगाया, उसने किसी की निंदा नहीं की। उसने बचाया। उसने दुनिया को दोषी नहीं ठहराया। उसने दुनिया की मुक्ति की। जबकि लोग निंदा करते हैं, तर्क देते हैं, और दोषी ठहराते हैं, जैसे गुस्साए डॉक्टर मरीज को डांटते हैं। वे युग की रेत को दोष देते हैं, लेकिन येसु के समय में भी, युग थे और उनकी रेत थी। फिर भी उस सूखी रेत पर, युग की रेत पर, एक अटूट झरना बहता था - अनुग्रह का झरना।"
वही अनुग्रह अब एक लेखिका के शब्दों और चेहरे से झलकता है जो “तकनीकी रूप से” काथलिक नहीं है। लेकिन लातेरन में एक शाम उसके दिल में दुनिया और अनुग्रह एक-दूसरे से इस तरह लिपट गए कि अलग नहीं हो सकते।
Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here