इराक में पोप: एक दूसरे को भाइयों के रूप में पहचानअब्राहम से शुरु
माग्रेट सुनीता मिंज-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बुधवार 3 मार्च 2021 (वाटिकन न्यूज) : इराकी कलीसिया बाईस साल से संत पापा का इंतजार कर रही है । यह 1999 में था जब संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने उर के लिए एक छोटी लेकिन महत्वपूर्ण तीर्थयात्रा की योजना बनाई, जो कि मुक्ति के स्थानों के लिए जुबली यात्रा का पहला चरण था। वे यहूदियों, ईसाइयों और मुसलमानों द्वारा मान्यता प्राप्त पिता, अब्राहम के साथ तीर्थयात्रा की शुरुआत करना चाहते थे। कई लोगों ने इस यात्रा के खिलाफ बुजुर्ग पोलिश परमाध्यक्ष को सलाह दी जो सद्दाम हुसैन को मजबूत करने का जोखिम उठा सकते थे, जो पहले खाड़ी युद्ध के बाद से सत्ता में थे। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय, विशेष रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा, उसे खारिज करने के प्रयासों के बावजूद आगे बढ़े। लेकिन उस दिन के अंत में इराकी राष्ट्रपति के विरोध के कारण, विशेष रूप से धार्मिक प्रकृति की यात्रा नहीं हो पाई।
1999 में, ईरान (1980-1988) के खूनी युद्ध और कुवैत पर आक्रमण और प्रथम खाड़ी युद्ध के बाद हुए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंधों के कारण देश पहले ही अपने घुटनों पर था। इराक में ख्रीस्तियों की संख्या आज की तुलना में तीन गुना अधिक थी। संत पापा जॉन पॉल द्वितीय ने देश के दूसरे पश्चिमी सैन्य अभियान, 2003 के युद्ध के खिलाफ अपनी आवाज उठाई, जो सद्दाम की सरकार को उखाड़ फेंकने के साथ समाप्त हुई। 16 मार्च के देवदूत प्रार्थना का पाठ करने के बाद उन्होंने कहा: "संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रसिद्ध सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए, मैं संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देशों और विशेष रूप से सुरक्षा परिषद को याद दिलाना चाहूंगा कि बल का उपयोग अंतिम सहारा का प्रतिनिधित्व करता है, हर दूसरे शांतिपूर्ण समाधान के बाद समाप्त हो जाता है।” इसके बाद, उन्होंने निवेदन किया: "मैं उस पीढ़ी का व्यक्ति हूँ जिसने द्वितीय विश्व युद्ध को देखा और अनुभव किया है और ईश्वर का शुक्र है कि मैं बच गया। मेरा कर्तव्य है कि मैं उन सभी युवाओं से कहूं, जो मुझसे छोटे हैं, जिन्हें यह अनुभव नहीं है: ‘अब युद्ध कभी नहीं’ जैसा कि संत पापा पॉल छठे ने संयुक्त राष्ट्र की अपनी पहली यात्रा के दौरान कहा था। हमें हर संभव कोशिश करनी चाहिए।”
वे उन "युवा लोगों" की बातों को न सुन पाये, जिन्होंने युद्ध किया और शांति निर्माण में असमर्थ थे। इराक हमले, बम, तबाही और आतंकवाद के चपेट में था। सामाजिक ताना-बाना बिखर गया और 2014 में, देश ने आईएसआईएस द्वारा घोषित तथाकथित इस्लामिक स्टेट का उदय देखा। इराकी धरती पर क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय शक्तियों के नियंत्रण के साथ तबाही, उत्पीड़न और हिंसा जारी रही, जिसमें मिलिशिया का नियंत्रण शामिल था। जातीय और धार्मिक निष्ठाओं से विभाजित रक्षाहीन आबादी, मानव जीवन की कीमत चुका रही है। इराकी स्थिति को देखते हुए, कोई भी उन शब्दों की संक्षिप्तता और यथार्थवाद को देख सकता है जो संत पापा फ्राँसिस अपने नवीनतम विश्वपत्र, फ्रातेल्ली तुत्ती में व्यक्त किया है: "हम अब युद्ध को एक समाधान के रूप में नहीं सोच सकते, क्योंकि इसके कथित लाभों से कहीं अधिक इसके जोखिम होंगे। इसे देखते हुए, "सिर्फ युद्ध" की संभावना की बात करने के लिए पहले की शताब्दियों में विस्तृत किए गए तर्कसंगत मानदंडों को लागू करना आजकल बहुत मुश्किल है। फिर कभी युद्ध नहीं! ... हर युद्ध हमारी दुनिया को पहले की तुलना में बदतर बना देता है। युद्ध राजनीति की असफलता है और मानवता की, एक शर्मनाक पराजय, बुरी ताकतों के सामने एक पराजय है।”
इन वर्षों के दौरान सैकड़ों हजारों ख्रीस्तीय अपने घरों को त्यागने और विदेश में शरण लेने के लिए मजबूर हुए हैं। प्राचीनतम ख्रीस्तीय देश में, जिसकी प्राचीन कलीसिया की उत्पत्ति प्रेरितों के उपदेश से हुई है, ख्रीस्तीय आज ताजी हवा की सांस के रूप में संत पापा फ्राँसिस की प्रतीक्षा कर रहे हैं। संत पापा ने बहुत पहले ही इराक जाने की इच्छा जाहिर कर दी थी ताकि जो पीड़ित हैं संत पापा की निकटता से उन्हें आराम मिले। उनकी उपस्थिति सुलह, पुनर्निर्माण और शांति की प्रक्रियाओं के साथ उनकी निकटता को प्रदर्शित करता है और प्रोत्साहित करता है।
इस कारण से, महामारी और सुरक्षा से जुड़े जोखिमों और हाल के हमलों के बावजूद, संत पापा फ्राँसिस ने इस यात्रा को अपने एजेंडे पर रखा है, जो सभी इराकियों के इंतजार को निराश नहीं करता है। कोविद -19 के परिणामों के कारण पंद्रह महीने के जबरन यात्रा निलंबन के बाद पहली अंतरराष्ट्रीय बैठक उर शहर में होगी, जहां से आध्यत्मिक पिता अब्राहम रवाना हुए थे। यह अन्य धार्मिक विश्वासों, विशेष रूप से मुस्लिम विश्वासियों के साथ मिलकर प्रार्थना करने का अवसर होगा, ताकि भाइयों के बीच सह-अस्तित्व के उद्देश्यों को फिर से परिभाषित किया जा सके, ताकि एक सामाजिक ताने-बाने का पुनर्निर्माण किया जा सके जो गुटों और जातीय समूहों से परे हो और अपना संदेश मध्य पूरब और पूरी दुनिया को दे सके।
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