2019.10.19 Congregazione per la dottrina della fede 2019.10.19 Congregazione per la dottrina della fede 

वाटिकनः समलैंगिकों के बीच संबंधों को आशीर्वाद नहीं

विश्वास एवं धर्म सिद्धांत हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद ने समलैंगिक जोड़ों को आशीर्वाद देने की संभावना पर नकारात्मक प्रतिक्रिया दी : "यह अन्यायपूर्ण भेदभाव नहीं है, न ही व्यक्ति को दण्ड देना है”।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन रेडियो, सोमवार, 15 मार्च 2021 (रेई) विश्वास और धर्मसिद्धांत हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद ने इस बात को स्पष्ट किया है कि कलीसिया के पास समलैंगिकों को आशीर्वाद देने का अधिकार नहीं है अतः इसे “वैध नहीं माना जा सकता है”।

इसे विश्वास एवं धर्मसिद्धांत हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद ने “दुबियुस” के तहत घोषित किया है। यह कलीसियाई पुरोहतों के अधिकार क्षेत्र से परे है कि वे समलौंगिक जोड़ों को आर्शीवाद दें जो अपने संबंध को धार्मिक रुप में पहचान प्रदान करने की चाह रखते हैं। संत पापा को इस संबंध में सूचित किया गया था और उन्होंने इस मुद्दे पर “अपनी सहमति” प्रदान की, इसके स्पष्टीकारण पर प्रीफेक्ट कार्डिनल लुइस लादारिया और सचिव महाधर्माध्य जियाकोमो मोरांडी ने हस्ताक्षर किये हैं।

विदित हो कि दस्तावेज के शुरू में कुछ बातों और अभ्यासों का उल्लेख है कि “समलैंगिक लोगों का स्वागत किया जाना और उन्हें सहचर्य दिखाना है, जिससे वे विश्वास में विकास कर सकें”, यह तथ्य आमोरिस लात्तेसिया में भी घोषित है, जो उन्हें आवश्यक सहायता की बात कहती है, “जिससे वे ईश्वरीय योजना को पूर्णरूपेण समझ सकें”। अतः इस संबंध में प्रेरितिक योजनाओं और प्रस्तावों पर मूल्यांकन करना जरुरी है जिसमें उनके संबंधों को आशीर्वाद की बातें हैं।

परमधर्मपीठीय दस्तावेजों के मूलभूल आधार पर हम व्यक्तियों और संबंध के बीच स्पष्ट रुप से अंतर को पाते हैं। उनके संबंधों को आशीर्वाद की नकारात्मकता व्यक्तियों का व्यक्तिगत भेदभाव नहीं है और न ही उनके साथ अन्यायपूर्ण व्यवहार ही, जैसे कि पहले ही दस्तावेज में कहा जा चुका है। 

इस नकारात्मक उत्तर के कारण कुछ इस प्रकार हैं। पहला कि कलीसियाई संस्कारीय आशीष जो कलीसिया की रीति के अनुरूप होता है सच्चाई और मूल्य पर आधरित है जो कृपा का स्रोत बनता है जैसे कि ईश्वर की सृष्टि योजना में अंकित है। मानवीय संबंध, “विवाह जहाँ हम शारीरीक मिलन की बात करते हैं, नर और नारी के बीच अटूट संबंध है जो नये जीवन हेतु खुला है, वहीं समलैंगिक संबंध में ईश्वर की यह योजना पूरी नहीं होती है। यह केवल समलैंगिक दंपतियों को अपने में सम्माहित नहीं करता अपितु विवाह के बाहर यौन प्रक्रियाओं को भी अपने में वहन करता है।  

विश्वास और धर्म सिद्धांत हेतु गठित परमधर्मपीठीय परिषद “दुबियुस” के प्रत्युत्तर में इस तथ्य को स्पष्ट किया गया है “समलैंगिकता संबंधी झुकाव वाले व्यक्तियों को आशीर्वाद” नहीं दिया जा सकता है, यद्यपि वे ईश्वरीय योजनाओं के प्रति निष्ठा में रहने की इच्छा प्रकट करते हों। यह आशीर्वाद के किसी भी रुप को गैरकानूनी घोषित करता है जो उनके पारस्परिक संबंध को मान्यता प्रदान करता है।

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15 March 2021, 15:44