बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता के प्रति वाटिकन राजनयिक की चिन्ता
जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी
वियेन्ना, शुक्रवार, 15 जनवरी 2021 (सी.एन.ए.): वाटिकन के राजनयिक फादर यानूस ऊरबानज़िक ने यूरोप में बढ़ती धार्मिक असहिष्णुता पर गहन चिन्ता व्यक्त की है तथा आशा व्यक्त की है कि इस समस्या पर नेताओं का ध्यान केन्द्रित होगा।
यूरोप में सुरक्षा एवं सहयोग सम्बन्धी संगठन (ओशे) में परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक फादर यानूस ऊरबानज़िक ने, गुरुवार, 14 जनवरी को वियेन्ना में सम्पन्न संगठन की स्थायी समिति की बैठक में "ख्रीस्तीयों, यहूदियों, मुसलमानों और अन्य धर्मों के अल्पसंख्यकों के खिलाफ बढ़ती असहिष्णुता और भेदभाव" को आवाज़ प्रदान की।
असहिष्णुता को सम्बोधित किया जाये
संगठन के वर्तमान स्वीडिश अध्यक्ष के समक्ष उन्होंने प्रस्ताव रखा कि वे असहिष्णुता एवं भेदभाव के मुद्दों को सम्बोधित करे ताकि पूर्वाग्रहों के बिना लक्षित समुदायों की आवश्यकताओं पर ध्यान दिया जा सके।
ओशे संगठन से फादर ऊरबानज़िक ने आग्रह किया कि संगठन केवल कुछ गिने-चुने मानवाधिकारों को ही वरीयता देने से सावधान रहे।
उन्होंने इस तथ्य को रेखांकित किया कि संगठन की अध्यक्षता का ध्यान मानवाधिकारों, प्रजातंत्रवाद तथा लैंगिक समानता पर अधिक रहा है, जबकि परमधर्मपीठ का आग्रह है कि सार्वभौमिक रूप से मान्यता प्राप्त समस्त मानवाधिकारों की महत्ता पर ध्यान केन्द्रित किया जाये।
शान्ति की प्राथमिकता
फादर ऊरबानज़िक ने कहा, "सच तो यह है कि मानवाधिकारों का उपयोग कभी भी राजनीतिक, आर्थिक, सैन्य, सांस्कृतिक या वैचारिक एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए।" उन्होंने कहा कि ओशे क्षेत्रों में शान्ति को प्राथमिकता दिया जाना जारी रखा जाना चाहिये।
उन्होंने कहा कि परमधर्मपीठ यह स्वीकार करने से कभी चूक नहीं सकती कि शीत युद्ध के 30 साल बाद, आज भी, स्वीडन के राजनयिक तथा संयुक्त राष्ट्र संघ के पूर्व महासचिव श्री डाग हैमर्सकोल्ड के शब्द समसामयिक हैं जिन्होने कहा था, "अपने परीक्षणों और अपनी त्रुटियों, अपनी सफलताओं और असफलताओं के बावजूद शांति और प्रगति की खोज को मन्द नहीं किया जा सकता और न ही कभी इसका परित्याग किया जा सकता है।"
सन्त पापा फ्राँसिस के विश्वपत्र फ्रातेल्ली तूत्ती को उद्धृत कर ऊरबानज़िक ने कहा, "वास्तविक और स्थायी शांति केवल सेवा व सहयोग सम्बन्धी वैश्विक नैतिकता के आधार पर संभव हो सकती है तथा सम्पूर्ण मानव परिवार में साझा ज़िम्मेदारी के बल पर भविष्य को साकारात्मक आकार दे सकती है।"
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