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उपदेश सुनते संत पापा फ्राँसिस एवं कूरिया के सदस्य उपदेश सुनते संत पापा फ्राँसिस एवं कूरिया के सदस्य 

वाटिकन उपदेशक द्वारा आगमन का पहला उपदेश

वाटिकन के उपदेशक कार्डिनल रानियेरो कांतालामेस्सा ने शुक्रवार को आगमन काल के लिए अपना पहला उपदेश दिया। उपदेश में संत पापा फ्राँसिस के साथ रोमन कूरिया के सदस्य उपस्थित थे। उन्होंने उपदेश में मृत्यु के अर्थ पर चिंतन किया जो अनन्त जीवन के लिए एक सेतु के समान है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 5 दिसम्बर 2020 (रेई)- "हमें जीवन की क्षणभंगुरता सिखा, जिससे हममें सदबुद्धि आये।" स्तोत्र ग्रंथ का यह  पद शुक्रवार को कार्डिनल कांतालामेस्सा के उपदेश का केंद्रविन्दु था।

उन्होंने अपने उपदेश की शुरूआत कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न परिस्थिति को ध्यान में रखते हुए, प्रथम विश्व युद्ध के दौरान लिखी गई कविता से की जिसमें कवि ने कहा है, "हम पतझड़ के मौसम में पेड़ की पत्ती की तरह हैं।"

कार्डिनल ने कहा कि दुनिया की वर्तमान स्थिति ने आगमन के उपदेश में, हमें मानव जीवन की क्षणभंगुरता के सामने विश्वास की निश्चितता पर ध्यान देने हेतु प्रेरित किया है।

जीवन के लिए सीख

उन्होंने कहा, "मृत्यु को दो तरह से कहा जा सकता है : ख्रीस्त के मुक्तिदायी एवं पुनरूत्थान के प्रकाश में या प्रज्ञा के प्रकाश में। दोनों ही मानव को कुछ सीख दे जाते हैं। पहला- मुक्तिदायी दृष्टिकोण– दिखलाता है कि मृत्यु कोई दीवार नहीं है जो हमारे अस्तित्व के अंत को दर्शाता हो, बल्कि यह अनन्त जीवन के लिए एक सेतु है।" दूसरा, प्रज्ञा का दृष्टिकोण- हमें मृत्यु के अनुभव से अच्छा जीवन जीने की सीख देता है।

अपनी मृत्यु पर चिंतन

कार्डिनल कांतालामेस्सा ने अपने प्रथम उपदेश में प्रज्ञा के दृष्टिकोण पर ध्यान केंद्रित किया। ट्रापिइस्ट मठवासी उस वाक्य को याद रखते हैं, "याद रखो कि तुम मरोगे।"

पुराने व्यवस्थान का प्रज्ञा ग्रंथ और सुसमाचार भी मानव की क्षंणभंगुरता पर बहुत सारे उदाहरण देते हैं जिसको कलीसिया की परम्परा में लिया गया है, विशेषकर, निर्जन स्थानों में रहनेवाले मठवासियों के द्वारा।

उन्होंने कहा, "ख्रीस्त के अनुकरण में भी चेतावनी हैं, "सुबह याद करो कि शाम तक तुम नहीं बच पाओगे। जब शाम हो जाए तो सुबह होने पर भरोसा मत करो।" दूषित मोह में बने रहने की अपेक्षा अपनी क्षणभंगुरता पर चिंतन करो जो अनन्त जीवन में विश्वास की ओर ले जायेगा।

महामारी चिंतन करने में मददगार

कार्डिनल ने स्रोताओं को निमंत्रण दिया कि वे मृत्यु के स्कूल में शिक्षा ग्रहण करें जिसके कुछ पाठों को महामारी के बीच भी सीखा जा सकता है। "वर्तमान परिस्थिति ने हमें स्मरण दिलाया है कि भावी योजना और निर्धारण पर मनुष्य कितना निर्भर रह सकता है। मौत लोगों के बीच की हर प्रकार की पृथकता एवं अन्याय को मिटा देता है।

यह हमें अच्छी तरह जीने में मदद देता है, चीज वस्तुओं से आसक्त अथवा हमारे हृदय को दुनियावी चीजों में मग्न रहने से बचाता है।

अनन्त मृत्यु का भय

कार्डिनल कांतालामेस्सा ने गौर किया कि कई शताब्दियों पहले मृत्यु ने महत्वपूर्ण भूमिका अदा किया था एवं यह पुनः सुसमाचार प्रचार हेतु मदद कर सकता है। 

उन्होंने बतलाया कि एक आधुनिक मनोवैज्ञानिक ने कहा है कि मौत को अस्वीकार करना और नकारना सभी मानव क्रिया के मूल में है।   

लक्ष्य न केवल मानव को मृत्यु के भय से बचाना था क्योंकि येसु उन लोगों को मुक्त करने आये जो जीवन भर मौत के भय से बंधु हुए थे (इब्रा. 2:15) बल्कि व्यक्ति को अनुभव करना था कि उस भय से मुक्ति पायी जा सकती है। येसु उन लोगों को अनन्त मृत्यु से भय रखना सिखाये जो सिर्फ शारीरित मृत्यु से डरते थे।

यूखरिस्त में अपना जीवन अर्पित

अंत में कार्डिनल ने याद दिलाया कि येसु ने अपनी मृत्यु के पहले खुद को खाली किया और यूखरिस्त की स्थापना की।

यूखरिस्त में भाग लेने के द्वारा हम भी अपनी मृत्यु को मना सकते हैं और दिन प्रतिदिन अपने आप को पिता को समर्पित कर सकते हैं।  

कार्डिनल ने कहा कि जीवन को बनाने के लिए, सृष्टिकर्ता को उसे प्रेम से अर्पित करने से बढ़कर दूसरा क्या हो सकता है जिन्होंने प्रेम से अपने आप को हमारे लिए दे दिया? 

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05 December 2020, 13:14