शिशु को बपतिस्मा संस्कार देते हुए शिशु को बपतिस्मा संस्कार देते हुए 

बपतिस्मा संस्कार अमान्य होगा यदि सही सूत्र का प्रयोग न किया जाए

विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने बपतिस्मा संस्कार के अनुष्ठान में संशोधित सूत्र को अमान्य घोषित किया हैं।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 7 अगस्त 2020 (वीएन)- विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने बपतिस्मा संस्कार के अनुष्ठान में संशोधित सूत्र को अमान्य घोषित किया हैं। जिसके अनुसार - "पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर हम आपको बपतिस्मा देते हैं" भी मान्य नहीं होगा। 

बपतिस्मा संस्कार के अनुष्ठान में मनमाने ढंग से संशोधित सूत्र मान्य नहीं होगा और जिन्हें बपतिस्मा लेना है उन्हें सही सूत्र के साथ बपतिस्मा लेना होगा। अर्थात् कलीसिया द्वारा निर्धारित धर्मविधिक नियम के आधार पर ही बिना शर्त धर्मविधि को मनाया जाना चाहिए।

विश्वास के सिद्धांत के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने बपतिस्मा संस्कार के अनुष्ठान के संबंध में दो सवालों का जवाब देते हुए पुष्टि दी है कि सही सूत्र इस प्रकार हो, "पिता और माता, धर्म पिता और धर्म माता, दादा-दादी एवं परिवार के सदस्यों, मित्रों और समुदाय के नाम पर, हम पिता और पुत्र और पवित्र आत्मा के नाम पर बपतिस्मा देते हैं।" (आधिकारिक अनुवाद नहीं)। सूत्र को जून के अंत में ही संत पापा फ्रांसिस द्वारा अनुमोदन मिल गया था जिसको बृहस्पतिवार को प्रकाशित किया गया।

ख्रीस्त बपतिस्मा देते हैं

एक व्याख्यात्मक सैद्धांतिक दस्तावेज में जवाब देते हुए सीडीएफ ने कहा है कि "संस्कारीय सूत्र का जानबूझकर संशोधन, बपतिस्मा के सामुदायिक महत्व पर जोर देने, परिवार एवं उपस्थित लोगों की सहभागिता व्यक्त करने तथा पुरोहित की पवित्र शक्ति पर ध्यान केंद्रित कर माता-पिता एवं समुदाय को हानि पहुंचानेवाली भावना को दूर करने का यह सूत्र रोमन धर्मविधि से अलग लग सकता है।" दूसरी ओर, साक्रोसंतुम कोनचिलियुम का हवाला देते हुए कहा गया है कि "जब कोई बतिस्मा देता है तो वे हैं ख्रीस्त ...समारोह में प्रभु की ही मुख्य भूमिका है।"  

व्याख्या में स्वीकार किया गया है कि माता पिता, धर्म माता-पिता और पूरे समुदाय को एक सच्ची धर्मविधि में सक्रिय भूमिका अदा करने का निमंत्रण दिया जाता है – किन्तु इसके लिए आवश्यक है कि हर व्यक्ति; याजक अथवा लोकधर्मी स्वाभाविक रूप से संस्कार एवं धर्मविधि के अनुष्ठान में अपनी भूमिका अदा करे।

कलीसियाई समुदाय में एक घाव

परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने स्पष्ट किया है कि जब किसी व्यक्ति द्वारा अपनी पहल से संस्कार के सूत्र में संशोधन किया जाता है तब उससे न केवल सकारात्मक नियमों के हस्तांतरण की तरह धर्मविधि का दुरुपयोग होता है, बल्कि कलीसियाई समुदाय में एवं ख्रीस्त के कार्य की पहचान में घाव हो जाता है तथा बड़े मामलों में संस्कार ही अमान्य हो जाता है क्योंकि संस्कारों के अनुष्ठान का स्वभाव, उसी निष्ठा की मांग करता है जैसा कि उसे ग्रहण किया गया है।

कलीसियाई मिशन का स्वभाव

दस्तावेज में कहा गया है कि संस्कार के सूत्र में संशोधन करने का अर्थ है कलीसियाई प्रेरिताई के स्वभाव को ही नहीं समझना जो हमेशा ईश्वर एवं उसकी प्रजा की सेवा में समर्पित है, न कि किसी शक्ति का प्रदर्शन है और जो कलीसिया को समर्पित परम्परा में हेरफेर करने के लिए दूर तक जाती है।

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07 August 2020, 16:44