पल्ली समुदाय पल्ली समुदाय 

सुसमाचार प्रचार की सेवा में पल्ली

याजकों के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने पल्ली समुदायों में सुधार लाने हेतु मार्गदर्शन देने के लिए एक नया दस्तावेज प्रकाशित किया है। दस्तावेज का शीर्षक है- "कलीसिया के सुसमाचार प्रचार मिशन में पल्ली समुदाय का प्रेरितिक बदलाव।"

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 20 जुलाई 20 (रेई)- कलीसिया सभी को अपना स्थान पाने का अवसर देती है, साथ ही, यह प्रत्येक की बुलाहट को सम्मान देती है। यही विचार पल्ली के दिशानिर्देश का मूल बिन्दु है जिसको याजकों के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने सोमवार को जारी किया।

दस्तावेज किसी नई नीति का प्रचार नहीं करता बल्कि मौजूदा नियमों और विहित मानदंडों को बेहतर ढंग से लागू करने के तरीकों का प्रस्ताव करता है। उद्देश्य है कि बपतिस्मा प्राप्त लोगों को सह-जिम्मेदारी के लिए प्रोत्साहित किया जाए और पल्लियों के बीच सामीप्य एवं सहयोग पर आधारित प्रेरितिक देखभाल को बढ़ावा दिया जाए।

दिशानिर्देश में एक चीज जबरदस्त उभरकर सामने आया है, वह है मिशनरी नवीनीकरण, पल्ली के प्रेरितिक बदलाव की आवश्यकता ताकि विश्वासी गतिशीलता एवं रचनात्मकता पा सकें जो पल्ली को, सभी बपतिस्मा प्राप्त विश्वासियों के सहयोग से हमेशा आगे बढ़ने में मदद देता है।  

दिशानिर्देश में 11 अध्याय हैं और इसे दो भागों में विभक्त किया जा सकता है। पहला भाग (अध्याय 1-6) प्रेरितिक बदलाव, मिशनरी पहुँच और समकालीन पृष्ठभूमि में पल्ली के महत्व पर विस्तृत चिंतन प्रदान करता है। दूसरा भाग (अध्याय 7-11) -पल्ली समुदाय के उपविभाजन, उनकी विभिन्न प्रेरितिक भूमिकाएँ और तरीके जिनमें प्रशासनिक नियम लागू हैं, आदि विषयों पर आधारित है।

पल्ली : "घरों के बीच एक घर"

अनुदेश में पल्ली को "घरों के बीच एक घर" कहा गया है। दस्तावेज के पहले भाग के अनुसार, पल्ली पुनर्जीवित प्रभु का अपने लोगों के बीच रहने का स्थायी चिन्ह है।

पल्ली का मिशनरी स्वभाव है कि यह मुख्य रूप से सुसमाचार प्रचार के लिए है। वैश्वीकरण और डिजिटल दुनिया ने उस क्षेत्र के साथ इसके विशिष्ट संबंध को बदल दिया है जिसमें यह शामिल है। अतः पल्ली का अर्थ केवल भौगोलिक क्षेत्र नहीं है बल्कि यह एक अस्तित्वपूर्ण स्थान है। यही कारण है कि इस पृष्टभूमि पर पल्ली लचीली है, समय की मांगों का जवाब देती है और इतिहास में विश्वासियों के लिए अपनी सेवा को अपनाती है।

मिशनरी नवीनीकरण

अतः अनुदेश, पल्ली संरचना के मिशनरी नवीनीकरण पर जोर देता है। इस तरह के नवीकरण में आत्म-केंद्रण और कठोरता नहीं होनी चाहिए। बल्कि इसे आध्यात्मिक गतिशीलता एवं  ईश वचन की घोषणा, संस्कारीय जीवन और दानशीलता पर आधारित प्रेरितिक मन-परिवर्तन पर ध्यान देना चाहिए। मुलाकात की संस्कृति को संवाद, एकात्मता और सभी के प्रति खुलापन की आवश्यक पृष्टभूमि पर बढ़ावा देना चाहिए। इस तरह, पल्ली समुदाय एक सच्ची "संगत की कला" विकसित करेगा, विशेषकर, अनुदेश- ठोस उदारता द्वारा विश्वास का साक्ष्य देने और गरीबों की मदद करने की सलाह देता है, जिसके द्वारा पल्ली सुसमाचार प्रचार करती है। हर बपतिस्मा प्राप्त व्यक्ति को सुसमाचार प्रचार का नायक होना चाहिए। अतः प्रेरितिक देखभाल के मिशनरी सुधार को आगे बढ़ाने हेतु मानसिक एवं आंतरिक बदलाव आवश्यक है। स्वाभाविक है कि इस प्रकार के परिवर्तन के लिए लाचीलापन एवं क्रमिकता जरूरी है, प्रेरितिक देखभाल की सेवा का दबाव किसी पर डाले बिना एवं उसे याजकवादी बनाये बिना, चूंकि प्रत्येक योजना को एक समुदाय के वास्तविक जीवन में स्थित होनी चाहिए।     

धर्मप्रांतीय उपविभाजन

अनुदेश का दूसरा भाग धर्मप्रांतीय क्षेत्र में उपविभाजन की व्याख्या के साथ शुरू होता है।

पहला, दस्तावेज बतलाता है कि पल्लियों को निकटता के प्रमुख कारकों का पालन करना चाहिए, जब लोगों की समानताओं और क्षेत्र की विशेषताओं पर ध्यान दिया जाता है। उसके बाद दस्तावेज में पल्ली के समावेश, विलीनीकरण एवं विभाजन से संबंधित प्रक्रिया पर ध्यान आकृष्ट किया गया है तथा भिखारिएट पर गौर किया गया है जो कई पल्लियों एवं प्रेरितिक ईकाईयों को एक साथ लाता है।    

पल्ली पुरोहित : समुदाय का "चरवाहा"

अनुदेश तब साधारण और असाधारण दोनों तरीकों से पल्ली समुदायों की प्रेरितिक देखभाल को सौंपने के विषय पर आधारित है।

सबसे पहले, एक पल्ली पुरोहित की भूमिका अपने समुदाय के लिए चरवाहे के समान होनी चाहिए। वे पल्ली की सेवा में नियुक्त हैं और इसके अलावा कोई दूसरा रास्ता नहीं है। उनकी भूमिका है आत्माओं की पूरी देखभाल करना।

वे पल्ली की सम्पति के जिम्मेदार प्रबंधक हैं एवं पल्ली के कानूनी प्रतिनिधि भी। उन्हें समय की अनिश्चित अवधि के लिए नियुक्त किया जाना चाहिए, क्योंकि आत्माओं की भलाई, स्थिरता और समुदाय के ज्ञान की मांग करती है। हालांकि, अनुदेश में याद दिलाया गया है कि धर्माध्यक्ष एक पल्ली पुरोहित को निश्चित अवधि के लिए नियुक्त कर सकता है, बशर्ते कि यह पाँच साल से कम न हो और धर्माध्यक्षीय सम्मेलन इसके लिए आज्ञप्ति जारी करे।  

जब एक पल्ली पुरोहित 75 साल की उम्र पूरी कर लेता है उसका नैतिक कर्तव्य है कि वह इस्तीफा पत्र प्रस्तुत करे, फिर भी वह अपने पद पर तब तक बना रह सकता है जब तक कि धर्माध्यक्ष उसे स्वीकार न कर ले और लिखित स्वीकृति प्रदान करे। बहर हाल, स्वीकृति हमेशा एक उचित एवं समानुपाती कारण से होनी चाहिए जिससे कि मिशन की "कार्यात्मक" अवधारणा को रोका जा सके।  

उपयाजक : अभिषिक्त अनुष्ठाता, आधा पुरोहित और आधा लोकधर्मी नहीं

अनुदेश का 8वाँ अध्याय उपयाजकों के लिए समर्पित है। वे सुसमाचार प्रचार के मिशन में धर्माध्यक्षों एवं पुरोहितों के सहयोगी हैं। उपयाजक अभिषिक्त अनुष्ठाता हैं और इस पवित्र ऑर्डर के संस्कार की आज्ञप्ति में भाग लेते हैं, विशेषकर, सुसमाचार प्रचार एवं परोपकारी कार्यों के क्षेत्र में, जिनमें चीजों का प्रबंधन, पवित्र यूखरिस्त की सेवा एवं सुसमचार की घोषणा शामिल हैं।

अनुदेश के अनुसार उन्हें आधा पुरोहित और आधा लोकधर्मी नहीं गिना जाना चाहिए और न ही उनकी बुलाहट को याजकवाद अथवा कार्यात्मकवाद की दृष्टिकोण से देखा जाना चाहिए।

समर्पित लोगों के साक्ष्य एवं लोकधर्मियों की उदार प्रतिबद्धता

अनुदेश में पल्ली समुदाय के अंतर्गत समर्पित पुरूषों और महिलाओं के साथ-साथ लोकधर्मियों पर भी चिंतन किया गया है। समर्पित स्त्री और पुरूष सबसे पहले "अस्तित्व" के द्वारा पल्ली को सहयोग देते हैं अर्थात् ख्रीस्त का पूर्ण रूप से अनुसरण करने का साक्ष्य देने के द्वारा, जबकि लोकधर्मी सुसमाचार प्रचार के कार्यों में सहभागी होते हैं। वे सुसमाचार के अनुसार जीते हुए अपने दैनिक जीवन को उदारतापूर्वक समर्पित करने एवं पल्ली समुदाय की सेवा में अपने आप को समर्पित करने के लिए बुलाये जाते हैं।  

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21 July 2020, 15:38