सामाजिक न्याय एवं पर्यावरण सम्बन्धी सच्चिवालय के सदस्यों के साथ सन्त पापा फ्राँसिस, तस्वीरः 07.11.2019 सामाजिक न्याय एवं पर्यावरण सम्बन्धी सच्चिवालय के सदस्यों के साथ सन्त पापा फ्राँसिस, तस्वीरः 07.11.2019  

अखण्ड पारिस्थितिकी पर वाटिकन का दस्तावेज़

सामान्य घर की रक्षा के लिये हमारी तीर्थयात्रा" शीर्षक से गुरुवार को वाटिकन ने एक दस्तावेज़ जारी कर विश्व के समस्त काथलिकों एवं ख्रीस्तानुयायियों से ईश्वर की सृष्टि के साथ स्वस्थ सम्बन्ध रखने का आह्वान किया।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 19 जून 2020 (रेई, वाटिकन रेडियो): "सामान्य घर की रक्षा के लिये हमारी तीर्थयात्रा" शीर्षक से गुरुवार को वाटिकन ने एक दस्तावेज़ जारी कर विश्व के समस्त काथलिकों एवं ख्रीस्तानुयायियों से ईश्वर की सृष्टि के साथ स्वस्थ सम्बन्ध रखने का आह्वान किया।  

पर्यावरण की रक्षा पर सन्त पापा फ्राँसिस के विश्व पत्र "लाओदातो सी" की प्रकाशना की पाँचवी वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में वाटिकन का उक्त दस्तावेज़ प्रकाशित किया गया जिसमें इस तथ्य को रेखांकित किया गया है कि सृष्टि की सुरक्षा हर किसी की ज़िम्मेदारी है। कोविद महामारी से पहले लिखे गये उक्त दस्तावेज़ में कहा गया कि हर चीज जुड़ी हुई हैं; प्रत्येक विशेष संकट एक एकल, जटिल सामाजिक-पर्यावरणीय संकट का हिस्सा है जिसके लिए एक सच्चे पारिस्थितिक रूपान्तरण की आवश्यकता होती है।

शिक्षा और पारिस्थितिकीय रूपान्तरण

दस्तावेज़ के प्रथम भाग में शिक्षा और पारिस्थितिकीय रूपान्तरण पर बल दिया गया है, जिसके तहत जीवन और सृष्टि की देखभाल, अन्यों के साथ संवाद और वैश्विक समस्याओं के बीच गहन संबंध के बारे में जागरूकता हेतु मानसिकता में बदलाव शामिल है।  

दस्तावेज़ में मठवासी परम्पारओं के अनुकूल मनन चिन्तन, प्रार्थना, श्रम और सेवा को महत्वपूर्ण बताया गया है, जो लोगों को व्यक्तिगत, सामाजिक और पर्यावरणीय संतुलन के बारे में शिक्षित कर सकते हैं।

जीवन, परिवार, शिक्षा एवं मीडिया

दस्तावेज़, तदोपरान्त, जीवन और मानव व्यक्ति की केंद्रीयता की पुष्टि करता है, क्योंकि "जीवन की रक्षा के बिना प्रकृति का बचाव नहीं हो सकता।" इस तथ्य से युवा पीढ़ी के बीच "मानव जीवन के खिलाफ पाप की अवधारणा को विकसित करने की आवश्यकता है, जो "देखभाल करने वाली संस्कृति" के पक्ष में "फेंक देने वाली संस्कृति" के विपरीत लड़ने में मदद कर सकती है।

परिवार को "अखण्ड पारिस्थितिकी के नायक" के रूप में दर्शाने पर भी दस्तावेज़ बल देता है। कहा गया कि जब परिवार "सहभागिता और फलप्रदत्ता" के मूल सिद्धांतों पर आधारित होता है, तब वह "शिक्षा के लिए एक विशेषाधिकार प्राप्त स्थान" बन जाता है, वह मानव प्राणियों एवं ईश्वर की सृष्टि का सम्मान सीखने का मंच बन जाता है। राष्ट्रों से, इसलिये "परिवार के विकास हेतु चतुर नीतियों को बढ़ावा देने" का आग्रह किया जाता है।

स्कूलों एवं विश्वविद्यालयों की केन्द्रीयता को रेखांकित करते हुए दस्तावेज़ में कहा गया कि ये विवेक, महत्वपूर्ण सोच और ज़िम्मेदाराना कार्रवाई के लिए क्षमता विकसित करने के स्थल बन सकते हैं। साथ ही मीडिया का भी आह्वान किया गया कि वे "मानव की नियति और प्राकृतिक वातावरण" के बीच संबंधों को उजागर कर नागरिकों को सशक्त बनाने का प्रयास करें तथा  "नकली समाचार" का मुकाबला करने के लिये सदैव तत्पर रहें।

अखण्ड पारिस्थितिकी और धारणीय विकास

भोजन की बर्बादी को अन्याय निरूपित कर दस्तावेज़ का दूसरा भाग, सन्त पापा फ्राँसिस के इन शब्दों से आरम्भ होता है, "जब भी खाना फेंका जाता है, तो वह वैसा ही है मानो गरीबों की थाली से चुराया गया हो"।

दस्तावेज़ में "विविध और टिकाऊ" कृषि, छोटे उत्पादकों और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा, तथा स्वस्थ खाद्य शिक्षा की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है। साथ ही, नवीकृत ऊर्जा में निवेश तथा धारणीय सामाजिक एवं आर्थिक विकास के प्रश्नों पर भी चिन्तन किया गया है।    

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

19 June 2020, 10:47