संत पेत्रुस महागिरजाघर में स्थापित पवित्र क्रूस संत पेत्रुस महागिरजाघर में स्थापित पवित्र क्रूस 

पुण्य शुक्रवार को प्रभु का दुःखभोग, कोविड-19 महामारी पर चिंतन

पुण्य शुक्रवार को संत पेत्रुस महागिरजाघर में कुछ ही विश्वासियों के साथ संत पापा फ्राँसिस ने प्रभु के दुःखभोग की यादगारी मनायी। धर्मविधि में फादर रानिएरो कांतालामेसा ने उपदेश देते हुए कोरोना वायरस महामारी के सकारात्मक परिणामों पर प्रकाश डाला।

उशा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शनिवार, 11 अप्रैल 2020 (रेई)- कोरोना वायरस महामारी से संक्रमण रोकने के प्रतिबंधों को ध्यान में रखते हुए संत पापा ने रिक्त संत पेत्रुस महागिरजाघर में, विश्वभर के ख्रीस्तीय विश्वासियों के लिए प्रभु के दुःखभोग की धर्मविधि का अनुष्ठान किया, जिसको लाईव प्रसारित किया गया। धर्मविधि के दौरान पवित्र क्रूस की आराधना एवं चुम्बन की जाती है जिसको सिर्फ संत पापा ने किया।

परमधर्मपीठ के उपदेशक फादर रानिएरो कांतालामेसा ने उपदेश देते हुए सभी को याद दिलाया कि ईश्वर के पास हमारे हित की योजना है न कि अहित की, यहाँ तक कि कोरोना वायरस महामारी के बीच भी।

फादर कांतालामेसा का पूरा उपदेश  

“मेरे पास तुम्हारे हित की योजना है न कि अहित की।” संत ग्रेगोरी महान ने कहा है कि धर्मग्रंथ उसके पाठकों से बढ़ता है।” कुम लेजेंतीबुस क्रेशित (1) यह हर बार अपने पाठकों के हृदय में उठने वाले सवाल के अनुसार नया अर्थ प्रकट करता है और इस वर्ष हमने दुःखभोग के पाठ को सवाल के बदले, समस्त पृथ्वी में उठनेवाली रूदन को दिल में रखकर पढ़ा है। हमें उत्तर खोजना है जिसको ईश वचन  प्रदान करता है। अभी-अभी हमने सुसमाचार पाठ में पृथ्वी पर होने वाली सबसे बड़ी बुराई के बारे सुना। हम इसे दो अलग-अलग दृष्टिकोणों से देख सकते हैं। हम इसे या तो आगे से देख सकते हैं अथवा पीछे से, यानी इसके कारणों से या प्रभाव से। यदि हम ख्रीस्त की मृत्यु के ऐतिहासिक कारणों पर गौर करेंगे तो हम भ्रमित हो जायेंगे और पिलातुस के समान कहने लगेंगे, “मैं इस धर्मात्मा के रक्त का दोषी नहीं हूँ।” (मती. 27:24) क्रूस को इसके कारणों की अपेक्षा इसके प्रभाव से अधिक अच्छी तरह समझा जा सकता है।

ख्रीस्त की मृत्यु के क्या प्रभाव पड़े?

हम विश्वास द्वारा उनसे न्यायसंगत ठहराये जाकर, ईश्वर के साथ मेल –मिलाप किये, शांति प्राप्त किये एवं अनन्त जीवन की आशा से परिपूर्ण हो गये। यह एक परिणाम है जो वर्तमान की परिस्थिति को अच्छी तरह समझने में मदद दे सकता है। ख्रीस्त के क्रूस ने दुःख और हर प्रकार की मानव पीड़ा (शारीरिक और मानसिक) के अर्थ को बदल दिया। यह अब दण्ड अथवा अभिशाप नहीं रह गया। जब ईश्वर के पुत्र ने इसे अपने ऊपर लिया तब जड़ से इसपर मुक्ति पा ली गयी।

क्या प्रमाण है कि कोई पीने दे उसमें जहर मिला हुआ नहीं है? यदि वह खुद पहले उसी प्याला से पीये। यही ईश्वर ने किया, क्रूस पर उन्होंने सारी दुनिया के सामने उस दुःख के प्याले को पूरा-पूरा पीया। इस तरह उन्होंने दिखलाया कि यह जहर नहीं बल्कि इसके तल में मोती है। न केवल उन लोगों के दुःख में जो विश्वास करते हैं बल्कि हर प्रकार की मानव पीड़ा में। वे समस्त मानव जाति के लिए मर गये, उन्होंने कहा कि जब मैं उठाया जाऊँगा तो सभी लोग मेरी ओर देखेंगे। (यो.12,32) सभी लोग न कि कुछ लोग। संत, पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपने ऊपर गोली चलाये जाने के बाद अस्पताल के पलंग पर से लिखा था, “दुःख सहने का अर्थ है अतिसंवेदनशील होना, ख्रीस्त में मानव जाति को प्रदान की गई ईश्वर की मुक्तिदायी शक्ति की कार्यशीलता के लिए खुला होना। ख्रीस्त के क्रूस के द्वारा पीड़ा, मानव जाति के लिए अपने आपमें “मुक्ति का विश्वव्यापी संस्कार” बन गया है।  

एक नाटकीय स्थिति जिससे मानवता इस समय गुजर रही है यह क्या प्रकाश डालता है? यहाँ भी हमें कारणों की अपेक्षा प्रभाव पर अधिक ध्यान देने की जरूरत है। हम हर रोज जो हृदय विदारक रिपोर्ट सुनते हैं उसके न केवल नकारात्मक पक्ष को देखने बल्कि सकारात्मक पक्ष को भी ध्यान देने की जरूरत है जिसको सावधानी पूर्वक देखने से ही समझा जा सकता है। कोरोना वायरस की महामारी ने हमें व्यक्तिवाद के खतरे एवं अपने आपको शक्तिशाली समझने के भ्रम से अचानक जगा दिया है। एक यहूदी रब्बी ने लिखा है कि इस साल हमें चेतना के निर्वासन से विशेष पास्का हेतु निर्गमण को मनाने का अवसर मिला है। प्रकृति के अत्यन्त छोटे और निराकार वायरस ने हमें याद दिलाया है कि हम मरणशील हैं, और सैन्य शक्ति एवं तकनीकी हमें बचाने के लिए काफी नहीं हैं। बाईबिल के एक स्तोत्र में कहा गया है कि मनुष्य अपनी प्रधानता में कुछ नहीं समझता है, वह जानवरों के समान है जो नष्ट हो जाते हैं। (स्तोत्र 49:21) यह बिलकुल सच है। जब कलाकार जेम्स थोर्नहिल्ल लंदन के संत पौल महागिरजाघर में भित्तिचित्र बना रहा था, वह एक बार अपने भित्तिचित्र से बहुत अधिक रोमांचित हो गया और  उसे देखने के लिए पीछे लौटने लगा किन्तु मचान के किनारे का उसे ध्यान नहीं था। एक भयभीत सहायक ने समझा कि उसके रोने से केवल आपदा ही बढ़ेगी, अतः बिना अधिक सोच-विचार किये, उसने पेंट में एक ब्रश डुबोया और उसे भित्तीचित्र के बीच में फेंक दिया। जेम्स धमकी देते हुए आगे बढ़ा। काम बिगड़ चुका था किन्तु वह बच गया।

ईश्वर कुछ इसी तरह हमारे साथ करते हैं। वे हमारी योजना में बाधा डालते और हमें रसातल जिसको हम देख नहीं सकते, उससे बचाते हैं। परन्तु हमें सावधान रहना है कि हम न ठगे जाएँ। ईश्वर हमारे तकनीकी समाज के शानदार भित्तीचित्र में ब्रश लगाकर नुकसान नहीं पहुंचाते। ईश्वर वायरस के मित्र नहीं, हमारे मित्र हैं। वे खुद बाईबिल में कहते हैं, मेरे पास तुम्हारे हित की योजनाएँ हैं अहित की नहीं।” (येरे.29:11) यदि यह ईश्वर की सजा होती तो भले और बुरे दोनों लोगों को एक समान नुकसान नहीं पहुँचाता और गरीबों को इसका सबसे अधिक कष्ट झेलना नहीं पड़ता। क्या वे दूसरों से अधिक पापी हैं?

जिन्होंने लाजरूस की मृत्यु पर शोक मनायी थी वे आज की विपत्ति के लिए भी रोते हैं। जी हाँ, ईश्वर हर पिता और माता की तरह रोते हैं। यदि हम इसे एक दिन समझ जायेंगे, तब हम अपने जीवन में उनपर लगाये गये सभी आरोपों के लिए शर्मिंदा होंगे। हमारे दुःखों से ऊपर उठने में मदद देने के लिए ईश्वर उसमें सहभागी होते हैं। संत अगुस्टीन लिखते हैं- “सर्वोच्च अच्छाई होने के द्वारा ईश्वर अपने कार्य में किसी तरह की त्रुटि आने नहीं देते, अपने सर्व सामर्थ्य एवं अच्छाई से बुराई पर भी अच्छाई उत्पन्न करते, तो क्या ईश्वर अपने पुत्र की मृत्यु की इच्छा करते ताकि उससे बाहर निकला जा सके? जी नहीं, वे मनुष्यों को स्वतंत्रता प्रदान करते हैं। प्राकृतिक आपदा जैसे भुकम्प और महामारी को ईश्वर नहीं भेजते। उन्होंने प्रकृति को भी स्वतंत्रता प्रदान की है, निश्चय ही मानुष्यों से कम किन्तु एक तरह की स्वतंत्रता ही है, उसके अपने नियम के अनुसार विकसित होने की आजादी है। ईश्वर दुनिया की सृष्टि एक घड़ी के समान नहीं किये हैं जिसकी गतिशीलता को बढ़ाया जा सकता है। कुछ लोग इसे अवसर कहते हैं किन्तु बाईबिल इसे ईश्वर की प्रज्ञा मानता है।

वर्तमान के इस स्वास्थ्य संकट का दूसरा सकारात्मक प्रभाव है- एकात्मता की भावना

मानवता की स्मृति में कब इस तरह महसूस किया गया जब सभी राष्ट्रों के लोग एक-दूसरे से जुड़े हुए, एक समान और कम विरोध करते हुए देखे गये? कवि के शब्दों की सच्चाई को जितना इस समय अनुभव किया जा रहा है उतना कभी नहीं किया गया था, “शांति, आप लोगों को, पृथ्वी का रहस्य इतना गहरा है।” हम दीवार बनाना भूल गये हैं। वायरस सीमा नहीं जानता। कुछ ही समय में उसने जाति, राष्ट्र, धर्म, धन और शक्ति के हर घेरे को तोड़ दिया है। जब यह समय बीत जायेगा, हमें पहले के समय में वापस नहीं लौटना चाहिए। जैसा कि संत पापा ने आह्वान किया है हमें इस अवसर को व्यर्थ नहीं जाने देना चाहिए। आइये, हम बहुत अधिक दर्द एवं मृत्यु को हावी होने न दें तथा स्वास्थ्य कर्मियों के साहसिक कार्यों को न बेकार जाने न दें। चीजें जैसी थी उसी में लौट जाने से हमें सबसे अधिक डर होना चाहिए।

वे तलवारों को पीटकर फाल बनायेंगे और अपने भालों को झाड़ी काटने का औजार। एक देश दूसरे देश के विरूद्ध खड़ा नहीं होगा और न ही युद्ध की शिक्षा दी जायेगी।(इसा. 2:4)

इस समय नबी इसायस की भविष्यवाणी को जीने का समय है। जिसको पूरा होने का इंतजार मानव लम्बे समय से कर रहा है। आइये, हम हथियार के त्रासदीपूर्ण प्रतिस्प्रद्धा से कहें- बहुत हो गया। आप युवा इसे अपनी पूरी शक्ति से कहें क्योंकि यह आपका भाग्य है जो दाँव पर है। आइये हम उन असीमित संसाधनों पर ध्यान दें जिनको हमने हथियार निर्माण में खर्च किया है वे हमारे स्वास्थ्य, स्वच्छता, भोजन, गरीबी का सामना करने और सृष्टि की देखभाल के लिए कितना आवश्यक है। आइये हम अगली पीढ़ी के लिए एक ऐसी विश्व को छोड़ दें जो संसाधन और धन में भले ही कमजोर हो, पर मानवता का धनी हो। ईश वचन हमें ऐसे समय में पहली चीज सिखलाती है कि हम ईश्वर को पुकारें। वे स्वंय लोगों के होठों पर उन्हें पुकारने के लिए शब्द प्रदान करते हैं। कई बार नाराजगी और शोक के रूप में, प्रभु आप क्यों सो रहे हैं? उठिये, हमें सदा के लिए मत त्याग दीजिए, हमारी सहायता कीजिए। अपनी दया से हमें बचा (स्तोत्र 44,24-27) “गुरूवर, हम डूब रहे हैं क्या आपको इसकी कोई चिंता नहीं।?” (मार. 4:38)

क्या ईश्वर चाहते हैं कि हम अर्जी करें तब वे हमें प्रदान करेंगे?

क्या हमारी प्रार्थना ईश्वर की योजना को बदल सकती है? नहीं, किन्तु कुछ चीजें हैं जिनको ईश्वर ने अपनी कृपा एवं हमारी प्रार्थना के फलस्वरूप देने का निश्चय किया है। ईश्वर ने खुद हमें ऐसा करने को कहा है। येसु कहते हैं, ढूँढ़ों और तुम्हें मिलेगा। खटखटाओं और तुम्हारे लिए खोला जाएगा। (मती. 7,7)

जब इस्राएली मरूस्थल में विषैले सांपों द्वारा कांटे गये, ईश्वर ने मूसा को कांसे के सांप को डंडे पर उठाने को कहा और जितनों ने उसे देखा वे बच गये। येसु ने इस प्रतीक को अपने ऊपर साकार किया जब उसने निकोदेमुस से कहा, “जिस तरह मूसा ने मरूस्थल में सांप को ऊपर उठाया उसी तरह मानव पुत्र भी ऊपर उठाया जाएगा ताकि जो कोई उन में विश्वास करें वे अनन्त जीवन प्राप्त कर सकें।” (यो. 3:14-15) हम भी इस समय अदृश्य विषैले सांप द्वारा कांटे जा रहे हैं, हम उनकी ओर नजर डालें जो हमारे लिए क्रूस पर उठाये गये थे। आइये, हम अपनी ओर से और पूरे मानव जाति की ओर से उनकी आराधना करें। जो लोग उनकी ओर विश्वास से देखेंगे वे कभी नहीं मरेंगे और यदि वे व्यक्ति मर भी जाएंगे तो अनन्त जीवन में प्रवेश करेंगे।

मैं तीन दिनों के बाद पुनर्जीवित होऊँगा- येसु ने भविष्यवाणी की थी।(मती. 27:63) हम भी इन दिनों के बाद यदि आशा करेंगे तो फिर उठेंगे और हमारे घरों की कब्रों से बाहर निकलेंगे। परन्तु हमें लाजरूस के समान पहले के जीवन में वापस नहीं लौटना चाहिए, बल्कि येसु के समान नये जीवन में आगे बढ़ना चाहिए, एक अधिक भाईचारापूर्ण, अधिक मानवीय, अधिक ख्रीस्तीय जीवन में।

पुण्य शुक्रवार प्रभु का दुःखभोग

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

11 April 2020, 16:46