खोज

संत पापा जॉन पौल द्वितीय संत पापा जॉन पौल द्वितीय 

संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपने क्रूस को प्रेम में बदला

संत पापा जॉन पौल द्वितीय के निधन की 15वीं बरसी पर वाटिकन सिटी के विकर जेनेरल कार्डिनल अंजेलो कोमस्त्री ने उनकी विरासत की याद की।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

संत पापा जॉन पौल द्वितीय का निधन 15 वर्षों पहले 2 अप्रैल 2005 को हुआ था। अपनी लम्बी बीमारी के दौरान उन्होंने जो ख्रीस्तीय साक्ष्य दिया उसने विश्वासियों एवं गैर-विश्वासियों दोनों को प्रेरित किया। उनका उदाहरण कोविड-19 द्वारा इस वैश्विक पीड़ा के दौरान विशेष रूप से मार्मिक है। वाटिकन के पत्रकारों के साथ एक साक्षात्कार में वाटिकन सिटी के कार्डिनल अंजेलो कोमस्त्री ने संत पापा जॉन पौल द्वितीय के शब्दों एवं साक्ष्य की याद की।

कोरोना वायरस महामारी की संदर्भ में संत पापा जॉन पौल द्वितीय का जीवन एवं उनका साक्ष्य हमें क्या संदेश देता है?

महामारी का प्रसार, संक्रमित लोगों की संख्या में वृद्धि, प्रतिदिन लोगों का मरना एक ऐसे समाज को झेलना पड़ रहा है, जो तैयार नहीं है और अनेक लोगों के आध्यात्मिक शून्यता को दर्शाता है। अपनी मृत्यु के कुछ ही दिन पहले एक इताली पत्रकार इंद्रो मोनतानेल्ली ने स्पष्ट और ईमानदार विचार व्यक्त करते हुए इस प्रकार कहा था, “यदि मुझे अपनी आँखें यह बिना जाने बंद करना हो कि मैं कहाँ से आया हूँ, कहाँ जा रहा हूँ और इस पृथ्वी पर मैं क्या करने आया हूँ तो क्या मेरे लिए पहली जगह में अपनी आँखें खोलना उचित होगा? यह मेरे लिए असफलता की ही घोषणा होगी। मोनतेनेल्ली के ये शब्द वर्तमान समाज की स्थिति की तस्वीर है। यही कारण है कि महामारी हमारे लिए बहुत बड़ा डर का कारण है क्योंकि बहुत सारे लोगों का विश्वास मर चुका है। संत पापा जॉन पौल द्वितीय एक विश्वास के व्यक्ति थे, एक दृढ़ एवं सुसंगत विश्वासी और विश्वास ने उनके जीवन का मार्ग रोशन किया। अपनी पीड़ा एवं लम्बी बीमारी के बावजूद उन्होंने एक शांतिमय एवं आनन्दपूर्ण व्यक्ति का मनोभाव प्रकट किया।

संत पापा जॉन पौल द्वितीय जानते थे कि जीवन ईश्वर के भोज की और एक दौड़ है, ईश्वर के आलिंगन के उत्सव, उनकी अनन्त महिमा और आनन्द की ओर बढ़ना है किन्तु हमें उस मुलाकात के लिए तैयारी करना है। तैयार रहने के लिए हमें अपने आपको शुद्ध करना है और घमंड एवं स्वार्थ का त्याग करना है जिससे कि हम उनका आलिंगन कर सकें जिनका प्रेम किसी प्रकार की छाया से रहित है। संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपनी पीड़ा को इसी मनोभाव से जीया (गोली मारे जाने जैसे अत्यन्त कठिन समय में भी)। उन्होंने अपनी शांति कभी नहीं खोयी, क्योंकि उनके जीवन का मकसद हमेशा उनके सामने था। आज बहुत सारे लोग उस मकसद पर विश्वास नहीं करते। यही कारण है कि वे दुःख को निराशा के साथ जीते हैं क्योंकि वे दुःख के परे कुछ नहीं देख सकते। अपने दुःख और पीड़ा में संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने हमेशा आशा का आयाम देखा, उसे प्रभु के साथ मुलाकात करने का एक विशेष अवसर माना। हम उनके प्रेरितिक पत्र “सालभिफिक दोलोरिस ” की याद करते हैं।

दुःख निश्चय ही सभी को भयभीत करता है लेकिन जब यह विश्वास से आलोकित होता है तब यह निस्वार्थ और सादगी का रास्ता अपनाता एवं निरर्थक चंचलता से बचता है। उससे भी बढ़कर, हम ख्रीस्तीय पीड़ा को क्रूसित येसु की पीड़ा के साथ मिलाते हैं। उनके साथ एक होकर हम अपनी पीड़ा में प्यार एवं मन-परिवर्तन की भावना भरते हैं जो एक ऊर्जा बन जाती और स्वार्थ को चुनौती देती एवं उससे ऊपर उठने में मदद देती है। यह अब भी दुनिया में है। संत पापा जॉन पौल द्वितीय प्रेम द्वारा पीड़ा पर विजय पाने का सच्चा आदर्श प्रस्तुत करते हैं। उन्होंने दुःख को, स्वार्थ को समाप्त करने की औषधि में बदल दिया। मानव स्वार्थ को मुक्ति में परिणत कर दिया। यह हृदय को येसु के लिए खोलने के द्वारा ही सम्भव है। उनके द्वारा ही कोई भी पीड़ा महत्वपूर्ण हो सकता है एवं उसे समझ सकता है।

कोरोना वायरस के कारण और संक्रमण रोकने के लिए निर्देशों के अनुपालन के रूप में इस साल पास्का पर्व नहीं मनाया जा सकेगा। कई लोग याद करेंगे कि संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपना अंतिम पास्का बीमारी एवं एकाकी में मनाया था, जैसा कि आज हो रहा है?

संत पापा जॉन पौल द्वितीय के अंतिम पुण्य शुक्रवार की याद हम सभी करते हैं। टेलीविजन पर हमने जो तस्वीर देखी थी उसे भुलया नहीं जा सकता। संत पापा जिन्होंने अपनी शारीरिक शक्ति पूरी तरह खो दी थी, अपने हाथों में क्रूस लेते और शुद्ध प्रेम से उसे निहारते हैं। हम महसूस कर सकते हैं कि वे क्या कह रहे हैं, “येसु मैं भी आपके समान क्रूस पर हूँ। आपके साथ मैं भी पुनरूत्थान का इन्तजार कर रहा हूँ।” सभी संतों ने इसी तरह जीया, बेनेदेत्ता पोर्रो, जो एक गंभीर बीमारी के कारण अंधी, बहरी और लकवाग्रस्त हो गयी थी तथा उनका निधन 24 जनवरी 1964 को शांतिपूर्ण तरीके से हुआ, मरने के कुछ दिनों पहले उन्होंने एक विकलांग एवं निराश युवा नातालिनो के नाम एक सुन्दर पत्र का श्रुतिलेख किया था। उनका पत्र इस प्रकार था, “प्यारे नातालिनो, मैं तुम्हारे समान 26 साल की हूँ। मेरा पलंग ही मेरा घर बन गया है। मैं कई महिनों से अंधी हो गयी हूँ किन्तु मैं निराश नहीं हूँ क्योंकि मैं जानती हूँ कि इस राह के अंत में येसु मेरा इंतजार कर रहे हैं। प्यारे नातालिनो, जीवन एक तेज गली है, हम अपना घर इस तेज गली में न बनायें बल्कि हमारा सच्चा घर पहुँचने के लिए येसु का हाथ पकड़कर इसे पार करें।” संत पापा जॉन पौल द्वितीय का मनोभाव ऐसा ही था।

कोविड-19 की महामारी के समय बहुत सारे लोग वाटिकन न्यूज एवं वाटिकन मीडिया के माध्यम से देवदूत प्रार्थना एवं रोजरी में भाग ले रहे हैं। जिसका संचालन स्वंय कार्डिनल कोमस्त्री करते हैं। हम इसके द्वारा संत पापा जॉन पौल द्वितीय की माता मरियम के प्रति भक्ति की याद करते हैं। जैसा कि उन्होंने अपने कॉट ऑफ आर्म में तोतुस तुस मरिया (मरियम, मैं पूरी तरह आपका हूँ) वाक्य चुना था।

उन्होंने इस वाक्य को चुना था क्योंकि येसु को क्रूस पर चढ़ाये जाने के समय माता मरियम उनके नजदीक थी एवं उन्होंने विश्वास किया कि यह क्षण मानवीय कमजोरियों पर ईश्वर के विजय का क्षण था। उन्होंने प्रेम के द्वारा विजय पायी जो ईश्वर की शक्ति है। क्रूस में प्रेम का बलिदान अर्पित करने के कुछ ही समय पहले मरियम ने येसु के शब्दों को सुना, भद्रे, यह तुम्हारा पुत्र है। उनके ऐसा कहने का अर्थ है मुझपर ध्यान मत दो, दूसरों की चिंता करो, दुःख को प्रेम में बदलने में उनकी मदद करो। यह विश्वास करने में मदद दो कि भलाई में शक्ति है जो बुराई पर विजय दिलाती है। उस समय से मरियम ही हमारी चिंता करती है और जब हम उनके मार्गदर्शन पर चलते हैं हम सुरक्षित होंगे। संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने इसपर विश्वास किया। उन्होंने मरियम पर भरोसा रखा और उनके साथ अपनी पीड़ा को प्रेम में बदल दिया।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

02 April 2020, 18:14