संत पापा पियुस 13वें की महानता वाटिकन संग्रहालय में
दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, सोमवार, 2 मार्च 2020 (रेई) वाटिकन विदेशी सचिव महाधर्माध्यक्ष पौल रिचार्ड गल्लाघर ने कहा कि वाटिकन संग्रहालय सन् 1939 से लेकर सन् 1958 के मध्य संत पापा पियुस 13वें द्वारा सोवियत संघ के साथ हुए संचार के महान कार्यों को प्रदर्शित करेगी।
महाधर्माध्यक्ष गल्लाघर ने वाटिकन संचार विभाग के संपादकीय संचालक अंद्रेया तोरनेल्ली से वार्ता करते हुए अपने विचारों को साझा किया, “यह ऐतिहासिक निरंतरता के संदर्भ में अपनी अंतर्दृष्टि के कारण अति महत्वपूर्ण है”। उन्होंने कहा कि इस खास पुरालेख की उत्पति सन् 1814 से जुड़ी है जो कई धर्मसभाओं और विभागों को एक साथ संलग्न करती है जिसके परिणाम स्वरुप हम, वर्तमान में वाटिकन के विदेशी संबंधों में व्यापकता को देख सकते हैं।
अभूतपूर्व अतंर्दृष्टि
वाटिकन विदेशी सचिव महाधर्माध्यक्ष गल्लाघर ने इस तथ्य का खुलासा किया कि सन् 1939 से लेकर सन् 1948 तक के सारे दस्तावेज तैयार हैं जिन्हें 2 मार्च को उपलब्ध किया जायेगा जबकि बाकी अन्य दस सालों के कार्यों की खोजबीन जारी है जिन्हें पूरा नहीं किया गया है अतः उनके प्रकाशन हेतु थोड़ा इंतजार करना होगा। उन्होंने कहा कि इन सारी चीजों के माध्यम उस अवधि में विदेशों से साथ वाटिकन के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंधों में अभूतपूर्ण अतंर्दृष्टि प्राप्त होंगे।।
“पुरालेख के माध्यम हमें उस अवधि की बातों और घटनाओं की व्यापक समझ मिलती है, हम संत पापा पियुस 13वें के बारे में ज्ञान हासिल करते हैं कि उनका व्यक्तित्व कैसा था, द्वितीय विश्व युद्ध के कठिन दौरान उनके मनोभाव क्या थे और उन जटिल वर्षों का सामना उन्होंने कैसे किया”।
आकार और सामग्री
दस्तावेजों के आकार औऱ सामग्री के बारे में महाधर्माध्यक्ष ने कहा, “दस्तावेजों की संख्या अपने में 2 मिलयन के करीब है यदि हम उन्हें एक साथ जमा करते हुए संग्रहित करें तो उनकी लम्बाई 323 मीटर के करीब होगी”।
दस्तावेज अपने में बहुत बड़े कार्यों समाहित करते हैं जिसमें हम द्वितीय विश्व युद्ध के समय वाटिकन के कार्यों, इसकी नीतियों, सुलह और समझौताओं, कलीसिया के मानववादी कार्यों, विशेष धर्मों और राजनीति मुद्दों पर रिपोर्ट, शैक्षणिक रिपोर्ट और वाटिकन राज्य संबंधी अनेक दस्तावेजों को पाते हैं। उन्होंने कहा कि इन दस्तावेजों में उस समय के कुछ नायकों के कार्यों की भी चर्चा है जैसे कि मान्यवर मोनतीनी जो आगे चलकर संत पापा पौल 6वें नियुक्त किये गये।
कलीसिया, द्वितीय विश्व युद्ध औऱ शीतयुद्ध के दौरान संत पापा
पुरालेख अपने में द्वितीय विश्य युद्ध के समय संत पापा और वाटिकन के कई कार्यों का संग्रह प्रस्तुत करता है। महाधर्माध्यक्ष ने कहा कि संत पापा पियुष 13वें “मानवता के नयक रुप प्रकट हुए, जिन्होंने उन विकट वर्षों में मानवता हेतु अपनी चिंता दिखलाई, वे प्रताड़ित लोगों के प्रति अति संवेदनशील रहे, उन्होंने नाजी और फासिज्म से शिकार लोगों के प्रति अपनी विशेष सहानुभूति रखा”। उन्होंने कहा कि संग्रहालय “शीतयुद्ध” पर प्रकाश डालता है साथ ही हम यह देख सकते हैं कि कलीसिया के नेक कार्यों के कारण किस प्रकार संत पापा औऱ कलीसिया पर आक्रमण किये गये।
दस्तावेजों में युद्ध के वर्षों में संत पापा पचेली और कार्डिनल कासारोली की भूमिकाओं का जिक्र है। हमें धर्मबन्धुओं और पुरोहितों के कार्यों के बारे में ज्ञान हासिल होता है जिन्होंने “सोवियत संघ के स्थानीय अधिकारियों से संबंध स्थापित करने की कोशिश की जिससे कलीसिया द्वारा विश्व में शांति स्थापित की जा सके”।
डिजिटलीकरण
अपने वार्ता के अंत में महाधर्माध्यक्ष गल्लाघर ने संग्रहालय के आधुनिकीकरण के बारे में कहा, “दस्तावेजों का डिजीटलीकरण हमें उन्हें सुरक्षित रखने में सुलभ बनाता है जिससे लोग पुस्तकों की भांति बिना बाहर लिए आसानी से देख सकते हैं। उन्हें छूआ नहीं जा सकता और वे मौसम परिवर्तन होने के कारण प्रभावित होने से बचाये जा सकते हैं”। घटनाओं की क्रमबध सूची उपलब्ध होने के कारण लोग आवश्यकता अनुरूप किसी भी विषय में आसानी से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं। उन्होंने कहा, “एक दूसरी बात की कई लोग किसी खास मुद्दे पर एक ही साथ, एक ही समय कार्य कर सकते हैं जो इतिहासकारों और विद्यार्थियों के लिए एक बड़ी सुविधा की बात है”।
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