आरिच्चा में रोमन कूरिया की आध्यात्मिक साधना आरिच्चा में रोमन कूरिया की आध्यात्मिक साधना 

हम सभी ईश्वर के शिल्पकार

रोमन कूरिया के सदस्य़ों हेतु आध्यात्मिक साधना का संचालन कर रहे येसु समाजी फादर पियेत्रो बोभाती ने प्राचीन व्यवस्थान के नायक नबी मूसा के जीवन पर चिंतन प्रस्तुत किया जिन्होंने याहवे से मित्रता की अनुभूति की।

दिलीप संजय एक्का-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, सोमवार, 2 मार्च 2020 (रेई) संत पापा फ्रांसिस ने रोमन कूरिया हेतु, रोम शहर के बाहर आरिच्चा में चल रहे आध्यात्मिक साधना की यात्रा वाटिकन के अपने निवास संत मार्था से की।

आध्यात्मिक संचालक ने चिंतन हेतु प्रस्तावित प्रवचन में कहा कि हम सभी ईश्वर के शिल्पकार हो सकते हैं लेकिन यह इस बात पर निर्भर करता है कि हम अपने प्रार्थनामय जीवन को किस भांति जीते हैं क्योंकि हमारा यह “कार्य” ही हमें जीवनदाता ईश्वर के अति निकट लाता है।

शांति के मनोभाव

बोभाती ने अपने प्रवचन में कहा, “प्रार्थना एक मार्ग है जिसके द्वारा हम “दिव्य निशानी” का अनुसरण करते हैं और मूसा इस आयाम की ओर हमारा ध्यान इंगित कराते हैं। मूसा जब याहवे से भेंट करने जाते तो वह मिलन तम्बू के बार खड़े रहते हैं, “यह अभिलाषा का मार्ग” है जहाँ हम अपनी साऱी चीजों को ईश्वर से मिलने हेतु परित्याग करते हैं। बादल जो मूसा को ढ़कता, ईश्वरीय उपस्थिति को दिखलाता है जो उनसे मिले आते हैं। यह हमारे लिए प्रार्थना के मनोभाव को व्यक्त करता है जो ईश्वर के साथ सच्चे संबंध में प्रवेश करना है जहाँ हम मूसा की भांति शांति में ईश्वरीय आवाज को सुनते हैं। धर्मग्रंथ बाईबल हमें कहता है कि ईश्वर मूसा से, “एक मित्र की भांति” आमने-सामने बातें करते हैं।

आत्मा की बात

प्रार्थना को येसु समाजी ईशशस्त्रीय पुरोहित ने “घनिष्ट परिचय” की संज्ञा दी। ईश्वर से हमारा परिचय धार्मिक कार्यों से संबंधित नहीं है और न ही अच्छे ईशशस्त्रीय ज्ञान और धर्मग्रंथ की संस्कृति से ही ताल्लुकात रखता है। बल्कि यह सच्ची प्रार्थना का प्रतिफल है जहाँ हम ईश्वर की योजना का रसास्वादन, अनुभव करते जो ठोस कार्यों द्वारा हमारी उदारता में अतिशीघ्र पूरा होती है। ईश्वर से अपने परिचय के बिना हमारा धर्मसमाजी जीवन केवल पवित्र वस्तुओं के रुप में ही रह जाता है।

झाड़ी की आवश्यकता

ईश्वर से अपने अनुभवों को पुख्ता करने हेतु हमें मूसा की भांति “जलती झाड़ी का अनुभव” निरंतर करने की जरूरत है। झाड़ी हमारे लिए मानव की क्षणभंगुरता, कमजोरी, टूटापन हो सकता है, यद्यपि वह परिस्थिति भी हमारे लिए जीवन की शक्ति को भरी होती है।

हमारे लिए किसी छोटे-से धार्मिक कार्य में द्वारा आत्मा को प्रज्वलित करना सहज नहीं है बल्कि इसके लिए हमें अपने को उस सत्य हेतु खोलने की जरुरत है जिसे देने हेतु य़ेसु संसार में आये। “मैं संसार में आग लेकर आया हूँ और मेरी कितना अभिलाषा है कि यह दहक उठे”।

“ऊपर चढ़ना”

दुनिया को आज इसी आग की नितांत जरुरत है जहाँ हम आपातकालीन स्थिति पाते हैं जहाँ आध्यात्मिकता की आवश्यकता है जिसके केवल येसु ख्रीस्त पूरा करते और दुनिया में चंगाई लाते हैं।

कलीसिया अपनी आध्यात्मिकता में नवीकरण लाने हेतु सदा लालायित रहती है। उसे अपने में नयापन लाने की जरुरत है जो अनुशासण और प्रबंधन के मापदण्डों तक ही सीमित नहीं है बल्कि पवित्र आत्मा अपनी कृपा के द्वारा शहीदों और संतों में इसे पूरा करते हैं। विश्वासियों के रुप में अपने उत्तरदायित्वों के प्रति सजह होते हुए हमें “अंतिम व्यारी के कमरे” में जाने की जरुरत है जैसे कि प्रेरित चरित हमें कहता है, जहाँ हम शांति में प्रार्थना करते हुए पवित्र आत्मा की प्रतीक्षा करते हैं जो अपनी प्रतिज्ञानुसार विश्वासियों के ऊपर उतरते और उन्हें सामर्थ्य तथा शक्ति से भर देते हैं।

पवित्र भूमि

अपने प्रवचन में संत मत्ती के सुसमाचार पर चिंतन और स्तोत्र के पठन की ओर ध्यान आकृष्ट कराते हुए फादर बोभाती ने कहा कि पवित्र भूमि में जलती हुई झाड़ी की ओर बढ़ते हुए मूसा ने अपने पैरों से जूते हटाये। यह हमारे लिए ईश्वर की ओर से दिव्य निमंत्रण है जहाँ हम रुकने और अपने हृदय को दूसरे विचारों से विचलित नहीं बल्कि अपनी हृदय की शक्ति को संग्रहित करने हेतु बुलाये जाते हैं जो हमें ईश्वर से मिलन में प्राप्त होती है। 

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02 March 2020, 16:43