संत पापा फ्राँसिस संत पापा फ्राँसिस  संपादकीय

यथार्थवाद और आशा

राजनयिक निकायों को सम्बोधित भाषण में पोप फ्रांसिस के प्रमुख शब्द

उषा मनोवाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 9 जनवरी 2020 (रेई)˸ वाटिकन न्यूज के संपादक अंद्रेया तोरनियेली ने ईरान और अमरीका के बीच बढ़ते तनाव के मद्देनजर "विश्व के राज्य" पर संत पापा फ्राँसिस के शब्दों पर प्रकाश डाला है।

उन्होंने कहा है कि संत पापा फ्राँसिस ने 5 जनवरी को जोर देकर कहा था कि संघर्ष को बढ़ाने से बचें तथा "अंतर्राष्ट्रीय वैधता के पूर्ण सम्मान में वार्ता एवं आत्मसंयम की ज्वाला प्रज्वलित करें।" उन्होंने सभी दलों से अनुरोध किया था कि वे सच्चाई से चिंतन करें ताकि मध्यपूर्व एवं पूरे विश्व को असाध्य परिणामों के साथ संघर्ष में न घसीटा जाए।  

आज अमरीका एवं ईरान के बीच तनाव भले ही सुर्खियों में है और साथ ही ईराक, जो पहले से ही युद्ध और आतंकवाद के कारण अस्थिर है किन्तु संत पापा फ्राँसिस इस सच्चाई को सरलता से नहीं लेते हैं, वे उन युद्धों एवं हिंसा की भी याद करते हैं जिनको भूला दिया गया है। वे सीरिया की तबाही में मौन के आवरण की निंदा करते, यमन में संघर्ष का विरोध करते जिसमें अंतरराष्ट्रीय समुदाय की उदासीनता के कारण गंभीर मानवीय संकट महसूस किया जा रहा है। वे लीबिया का हवाला देते हैं किन्तु बुरकिना फासो, माली, नाइजर और नाईजीरिया में हिंसा का विरोध करते हैं। वे निर्दोष लोगों के प्रति हिंसा की याद करते जिनमें सुसमाचार के प्रति निष्ठा के कारण कई ख्रीस्तीय आतंकवाद एवं चरमपंथियों के शिकार हुए हैं।

जिन लोगों ने संकट की लम्बी और विस्तृत सूची को पढ़ा है जिसमें लातीनी अमरीका में आग लगने की घटना भी शामिल है। इन सबका कारण अन्याय और भ्रष्टाचार है इनके बीच भी संत पापा आशा की किरण देखते हैं। आशा जो ख्रीस्तीयों के लिए एक आधारभूत सदगुण है जिसको वास्तविकता से अलग नहीं किया जा सकता, संत पापा बतलाते हैं कि आशा की मांग है कि समस्या को पहचाना जाए और उसका सामना साहस के साथ किया जाए, समय के साथ लड़े गए युद्धों और उनकी तबाही से हुई आपदाओं को भुलाए बिना, परमाणु हथियार की होड़ और विश्व में अपने विनाश के ठोस जोखिम के अनैतिकता एवं मूर्खता को भूले बिना। मानव जीवन एवं प्रतिष्ठा के सम्मान की कमी को भूले बिना; भोजन, जल और सभी पीड़ित लोगों की चिंता की कमी, पारिस्थितिक संकट आदि को नजरांदाज किये बिना, जिसको अनेक लोग अब भी अनदेखा करते हैं।   

हालांकि, आशा अब भी की जा सकती है क्योंकि दुनिया में जहाँ घृणा और दीवारों की निंदा की गयी है कुछ लोग विभाजन से सहमत नहीं हैं, वे पीड़ित लोगों को देखकर रास्ता नहीं बदलते। कई धर्मों के धर्मगुरू एक साथ मिलकर विश्व में शांति लाने का प्रयास कर रहे हैं। कुछ युवा लोग हैं जो वयस्कों को जोखिमों से सचेत कर रहे हैं कि सृष्टि एक गंभीर समस्या का सामना कर रही है। आशा इसलिए भी की जानी चाहिए क्योंकि बेतलेहेम की रात में सर्वशक्तिमान ईश्वर ने छोटा, कमजोर और विनम्र बालक बनने का निश्चय किया, ताकि अपने असीम प्रेम और दया से दुनिया को जीते एवं उसपर राज करे।
रमा तिरकी-वाटिकन सिटी

 

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09 January 2020, 17:04