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सन्त पापा फ्राँसिस एवं सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें- तस्वीर अप्रैल 2019 सन्त पापा फ्राँसिस एवं सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें- तस्वीर अप्रैल 2019  

लिबरेशन थेओलोजी तथा सांस्कृतिकरण मुद्दों पर सन्त पापा बेनेडिक्ट

अन्तरराष्ट्रीय काथलिक धर्मतत्वविज्ञान आयोग की 50 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोग के पूर्वाध्यक्ष, सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने एक सन्देश प्रकाशित कर आयोग द्वारा सम्पन्न कार्यों की सराहना की।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, शुक्रवार, 29 नवम्बर 2019 (रेई, वाटिकन रेडियो): अन्तरराष्ट्रीय काथलिक धर्मतत्वविज्ञान आयोग की 50 वीं वर्षगाँठ के उपलक्ष्य में आयोग के पूर्वाध्यक्ष, सेवानिवृत्त सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने एक सन्देश प्रकाशित कर आयोग द्वारा सम्पन्न कार्यों की सराहना की। 22 अक्टूबर को हस्ताक्षरित अपने सन्देश में उन्होंने, विशेष रूप से, लिबरेशन थेओलोजी एवं सांस्कृतिकरण के मुद्दों पर विशद चिन्तन किया।

ईशशास्त्र एवं धर्मशिक्षा

सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने स्मरण दिलाया कि कार्डिनल लेहमान के नेतृत्व में "गाओदियुम एत स्पेस" के मूलभूत प्रश्न अर्थात् मानव प्रगति के सन्दर्भ में ख्रीस्तीय मुक्ति के प्रश्न का विश्लेषण किया गया था। इस परिप्रेक्ष्य में, कथित लिबेरेशन थेयोलोजी या मुक्ति के ईशशास्त्र का प्रश्न उठा जो उस समय केवल एक सैद्धांतिक प्रकृति की समस्या का प्रतिनिधित्व नहीं कर रहा था बल्कि, दक्षिण अमरीका की कलीसियाओं के जीवन और मिशन को जोखिम में डाल रहा था। उन्होंने लिखा, "वह जोश जो तत्कालीन ईशशास्त्रियों को अनुप्राणित कर रहा था, वह वहाँ की राजनीति को भी प्रभावित कर रहा था। साथ ही, नैतिक धर्मतत्वविज्ञान के नाम पर, ईशशास्त्र के प्रशिक्षण एवं धर्मशिक्षा के बीच सम्बन्ध पर भी कई सवाल उठाये गये थे।

सन्त पापा बेनेडिक्ट ने इस तथ्य के प्रति ध्यान आकर्षित कराया कि इन सब समस्याओं के निदान के लिये सन्त पापा जॉन पौल द्वितीय ने अपने विश्व पत्र "वेरितास स्पेल्नदोरे" के प्रकाशन को भी कुछ समय के लिये मुल्तवी कर दिया था जो, केवल सन् 1993 में ही प्रकाशित किया गया। वर्तमान अन्तरराष्ट्रीय ईशशास्त्रीय आयोग के सदस्यों से सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने अनुरोध किया कि वे उक्त विश्व पत्र के प्रकाश में नैतिक ईशशास्त्र एवं कथित मुक्ति के ईशशास्त्र जैसी अवधारणाओं से सम्बन्धित प्रश्नों को दरकिनार नहीं करें बल्कि उनपर गूढ़ चिन्तन को जारी रखें ताकि इनपर एक मतैक्य स्थापित किया जा सके।  

सम्वाद, सांस्कृतिकरण की सीमा

स्थानीय कलीसियाओं में सांस्कृतिकरण के प्रश्न पर भी सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि विशेष रूप से अफ्रीका और भारत के धर्मतत्व वैज्ञानिकों ने इन प्रश्नों को उठाया था। इस सन्दर्भ में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने इस तथ्य पर बल दिया कि विश्व के सभी महान धर्मों के साथ सम्मान के साथ विचारों का आदान प्रदान किया जा सकता है किन्तु इस प्रक्रिया में  काथलिक विश्वास के मूल तत्वों को अक्षुण रखना अनिवार्य है।  

धन्यवाद ज्ञापन

सन्देश के अन्त में सन्त पापा बेनेडिक्ट 16 वें ने लिखा, "जहाँ तक वैयक्तिक रूप से अन्तरराष्ट्रीय काथलिक आयोग में मेरे काम का सवाल है, जो कुछ मैंने किया है वह मेरे लिये सन्तोष और आनन्द का स्रोत रहा है, जिसके लिये मैं ईश्वर के प्रति धन्यवाद ज्ञापित करता हूँ। विभिन्न धर्मों, भाषाओं और संस्कृतियों के लोगों से मिलकर मैं अत्यधिक प्रसन्न हुआ हूँ तथा उनका हार्दिक सम्मान करता हूँ तथापि, मैं इसकी सीमा से वाकिफ़ हूँ।"       

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29 November 2019, 11:59