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हिन्दू और ईसाई, बंधुत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के निर्माता

अंतरधार्मिक वार्ता को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति ने दिवाली उत्सव के उपलक्ष्य में हिन्दुओं को एक संदेश भेजा है।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 22 अक्टूबर 2019 (रेई)˸ अंतरधार्मिक वार्ता को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति ने दिवाली उत्सव के उपलक्ष्य में हिन्दुओं को एक संदेश भेजा है। संदेश में कहा गया है कि धर्म मूल रूप से एक-दूसरे को भाई-बहन के रूप में देखने, उन्हें सहयोग देने और उनसे प्रेम करने हेतु प्रेरित करता है, यह सबसे बढ़कर "दूसरों की आस्था या संस्कृति के प्रति किसी भी प्रकार के अनुचित पूर्वाग्रह के बिना उनकी अलंघ्य प्रतिष्ठा और अहरणीय अधिकारों का सम्मान करने के लिए सिखाता है|"

परमधर्मपीठीय समिति ने संदेश में लिखा है, "लोगों के बीच भ्रातृत्व के संबंध को विकसित करना और निरंतर संवाद के द्वारा बंधुत्व और मैत्रीभाव में जीवन बिताना हिन्दू या ईसाई के लिए धार्मिक व्यक्ति होने का स्वाभाविक लक्ष्ण होना चाहिए|"

दिवाली का त्योहार

दिवाली दीपों का त्योहार है और इसे झूठ पर सत्य, अंधकार पर प्रकाश, मृत्यु पर जीवन और बुराई पर भलाई की विजय का प्रतीक माना जाता है। इस त्योहार को तीन दिनों तक मनाया जाता है। इस साल दिवाली का त्योहार कई हिन्दूओं के द्वारा 27 अक्टूबर को मनाया जाएगा।

अंतरधार्मिक वार्ता को प्रोत्साहन देने हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति के अध्यक्ष कार्डिनल मिगुएल एंगेल अयुसो गिक्सोट, एमसीसीजे एवं मोनसिन्योर इन्दुनिल कोडिथुवाक्कु जनकरत्ने कनकनमलगे द्वारा हस्ताक्षरित संदेश की विषयवस्तु है, "विश्वासी : बंधुत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के निर्माता"।

बंधुत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के निर्माता होने की आवश्यकता

संदेश में कहा गया है कि "विभिन्न क्षेत्रों में अभूतपूर्व प्रगति के अनुभव के साथ साथ, हम ऐसे दौर में हैं, जहां एक ओर अंतरधार्मिक और अंतरसांस्कृतिक संवाद, सहयोग और भ्रातुत्व की एकात्मता के प्रयास हो रहे हैं| दूसरी ओर कुछ धार्मिक लोगों के बीच अन्य लोगों के प्रति भावशून्यता, उदासीनता, और घृणा भी है| ऐसा इसलिए होता है कि वे ‘पराये’ व्यक्ति को अपने भाई या बहन के रूप में पहचानने से चूक जाते हैं| दूसरों के द्वारा गुमराह किये जाने से या अनुदार या असंवेदनशील भावनाओं के कारण इस तरह का रवैया उत्पन्न हो सकता है जिससे समाज में सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व का ताना-बाना अस्त-व्यस्त और अव्यवस्थित हो जाता है| ऐसी स्थिति के बारे में हमें चिंता है। इसलिए हम हर व्यक्ति को, विशेष रूप से ‘ईसाई और हिंदू को, वे जहां कहीं भी हों, बंधुत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के निर्माता होने की आवश्यकता है’ विषय पर कुछ विचार आप के साथ साझा करना उचित और उपयुक्त मानते हैं|"  

धार्मिक व्यक्ति होने का स्वाभाविक लक्षण           

धर्म हमें मूल रूप से “दूसरे व्यक्ति को अपने भाई या बहन के रूप में पहचानने, समर्थन करने और प्रेम करने के लिए प्रेरणा देता है” और साथ ही वह हमें दूसरों की आस्था या संस्कृति के प्रति किसी भी प्रकार के अनुचित पूर्वाग्रह के बिना उनकी अलंघ्य प्रतिष्ठा और अहरणीय अधिकारों का सम्मान करने के लिए सिखाता है|" जब धर्मों के अनुयायी अपने धर्म के नीतिशास्त्र के अनुकूल जीवन जीने की मांग पर खरे उतरते हैं, तभी वे शान्ति के निर्माता और मानवता की साझेदारी के साक्षी के रूप में पहचाने जा सकते हैं| इस प्रकार, निरंतर संवाद के द्वारा बंधुत्व और मैत्रीभाव में जीवन बिताना हिन्दू या ईसाई के लिए धार्मिक व्यक्ति होने का स्वाभाविक लक्षण होना चाहिए|"

महात्मा गांधी की 150वीं जयंती

"यह सुखद संयोग है कि इस महीने के प्रारम्भ में महात्मा गांधी की 150वीं जयंती समारोह था| गाँधी जी “सत्य, प्रेम और अहिंसा के उत्कृष्ट और साहसी गवाह” थे।(1 फरवरी 1986 को राजघाट, दिल्ली में अपनी यात्रा के समापन पर संत पापा जॉन पॉल द्वितीय द्वारा की गयी शान्ति के लिए प्रार्थना) और मानवीय भ्रातुत्व और शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व के वीर समर्थक थे| अतः हम सब के लिए उपयुक्त होगा कि हम शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व को जीने में महात्मा गाँधी से प्रेरणा लें|"

मानवता के कल्याण के लिए

"अपनी-अपनी धार्मिक धारणाओं में दृढ़ और मानवता के कल्याण के लिए चिंता साझा कर रहे विश्वासी होने के नाते, आप और हम विभिन्न धार्मिक परम्पराओं के लोगों और सभी शुभेच्छु व्यक्तियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर और अपने साझा उत्तरदायित्व को ध्यान में रखकर भ्रातृभाव से सम्पन्न शांतिपूर्ण समाज बनाने के लिए जो कुछ हम कर सकते हैं, करें।"

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22 October 2019, 17:03