श्रीलंका के पुरोहित अंतरधार्मिक वार्ता के सचिव नियुक्त
उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी
वाटिकन सिटी, बृहस्पतिवार, 4 जुलाई (रेई)˸ 52 वर्षीय मोनसिन्योर 2012 से ही वाटिकन की इस समिति में उप-सचिव के रूप में अपनी सेवा दे रहे थे। वे श्रीलंका के बादुल्ला धर्मप्रांत के पुरोहित हैं।
मोनसिन्योर इंदुनिल का जन्म 1966 को हुआ था। 16 दिसम्बर 2000 को बादुल्ला धर्मप्रांत के लिए पुरोहित अभिषेक के दो साल बाद, वे पढ़ाई के लिए रोम भेजे गये जहाँ परमधर्मपीठीय उर्बनियन विश्वविद्यालय से उन्होंने मिशन में डॉक्ट्रेट की उपाधि हासिल की। पढ़ाई के उपरांत उन्हें उसी विश्वविद्यालय में प्रोफेसर के लिए चुना गया।
12 जून 2012 को संत पापा बेनेडिक्ट 16वें ने उन्हें अंतरधार्मिक वार्ता हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति का उप-सचिव नियुक्त किया था।
द्वितीय वाटिकन महासभा के मनोभाव पर वार्ता
अंतरधार्मिक वार्ता हेतु गठित परमधर्मपीठीय समिति की स्थापना संत पापा पौल षष्ठम ने सन् 1964 को पेंतेकोस्त पर्व के दिन की थी। इसका उद्देश्य था द्वितीय वाटिकन महासभा के मनोभाव के अनुसार, अन्य धर्मों के लोगों के साथ वार्ता को बढ़ावा देना, विशेषकर, "नोस्त्रा आएताते" की प्रकाशना के अनुसार।
यह एक ऐसी वार्ता है जिसमें अपनी आस्था को प्रकट करने के साथ-साथ दूसरों की आस्था के प्रति भी खुला होना। यह न तो कलीसिया की प्रेरिताई के प्रति धोखा है और न ही धर्मांतरण का नया तरीका। इस बात को संत पापा जॉन पौल द्वितीय ने प्रेरितिक विश्व पत्र "देमतोरिस मिशियो " में स्पष्ट किया है।
परमधर्मपीठीय केंद्रीय ईकाई (पीसीआईडी)
काथलिक कलीसिया में यद्यपि वार्ता के लिए परमधर्मपीठीय समिति ही केंद्रीय ईकाई होती है, इसके कार्य स्थानीय कलीसियाओं द्वारा आगे बढ़ाये जाते हैं। स्थानीय कलीसियाओं में प्रांतीय एवं राष्ट्रीय स्तर पर वार्ता आयोग का गठन किया गया है और वाटिकन कौंसिल इसके साथ जुड़कर कार्य करती है। अतः उन क्षेत्रों में स्थानीय वार्ता आयोग के गठन का प्रोत्साहन देती है जहाँ इसका अभाव है।
पीसीआईडी में 30 सदस्य और विश्वभर से विभिन्न पृष्टभूमियों के करीब 50 सलाहकार होते हैं।
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