खोज

काथलिक शिक्षा के लिए परमधर्मपीठीय धर्मसंघ द्वारा एक दस्तावेज का विमोचन काथलिक शिक्षा के लिए परमधर्मपीठीय धर्मसंघ द्वारा एक दस्तावेज का विमोचन  

लिंग पर वाटिकन दस्तावेज, वार्ता को हाँ, विचारधारा को नहीं

काथलिक शिक्षा के लिए परमधर्मपीठीय धर्मसंघ ने 10 जून को एक दस्तावेज का विमोचन किया जिसका शीर्षक है, "उन्होंने नर और नारी बनाया ˸ शिक्षा में लिंग सिद्धांत के सवाल पर बातचीत का एक रास्ता।" नए दस्तावेज़ का उद्देश्य मानव लैंगिकता के बारे में चल रही बहस में काथलिक योगदान को निर्देशित करने के लिए एक साधन प्रस्तुत करना तथा लिंग की विचारधारा से उत्पन्न होने वाली चुनौतियों का सामना करना।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

वाटिकन सिटी, मंगलवार, 11 जून 2019 (रेई)˸ वाटिकन द्वारा सोमवार को प्रकाशित नये दस्तावेज का उद्देश्य है- प्रेम में शिक्षा के व्यापक क्षितिज के आलोक में, युवा पीढ़ी की शिक्षा से संलग्न लोगों को "विधिवत" संबोधित करने हेतु समर्थन देना, जिन मुद्दों पर आज मानव लैंगिकता पर सबसे अधिक बहस हो रही है। यह खासकर, काथलिक स्कूलों और ख्रीस्तीय दर्शन से प्रेरित लोगों के लिए है। इसके द्वारा स्कूल के कर्मचारियों, अभिभावकों, शिक्षकों एवं विद्यार्थियों, साथ ही साथ धर्माध्यक्षों, पुरोहितों एवं धर्मसमाजियों और काथलिक संगठनों को भी मदद मिल सकती है।

काथलिक स्कूलों के लिए गठित परमधर्मपीठीय धर्मसंघ द्वारा तैयार दस्तावेज में शैक्षणिक संकट पर प्रकाश डाला गया है, विशेषकर, विचारधारा के द्वारा अलग-अलग रूपों में उभरने वाली चुनौतियों के सामने, प्रभावकारिता और लैंगिकता विषय पर, जिसे आमतौर पर लैंगिकता का सिद्धांत कहा जाता है जो 'एक पुरुष और एक महिला के स्वभाव में अंतर और उनके आपसी संबंध को नकारता है। जब उन्हें केवल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक अनुकूलन का उत्पाद माना जाता है, तब व्यक्ति की पसंद उसकी पहचान बन जाती है, जो समय के साथ बदल सकती है।

सुनने, तर्क करने एवं प्रस्ताव रखने के द्वारा वार्ता

शिक्षा में लिंग के सवाल पर संवाद का ये दस्तावेज़, "लिंग की विचारधारा और लिंग के अनुसंधान का पूरा क्षेत्र जो मानव विज्ञान के क्षेत्र में आता है उनके बीच एक अंतर बनाता है।"

संत पापा का हवाला देते हुए दस्तावेज यह बतलाता है कि जब लिंग की विचारधाराएं समझने योग्य आकांक्षाओं का जवाब देने का दावा करती हैं वे खुद को पूर्ण और निर्विवाद भी घोषित करने की तलाश करती हैं, यहाँ तक कि वे यह भी तय करतीं हैं कि बच्चों को किस तरह बढ़ाया जाए और इस तरह वार्ता को रोक देतीं हैं। बहरहाल, शोध किए गए हैं कि पुरुषों और महिलाओं के बीच के अंतर के बारे में हमारी समझ को गहरा करना चाहिए। अतः दस्तावेज में कहा गया है कि यह इस प्रकार के अनुसंधान के संबंध में है जिसको हमें सुनने, तर्क करने और प्रस्ताव करने के लिए खुला होना चाहिए।

लिंग सिद्धांत की शुरुआत के संक्षिप्त ऐतिहासिक सर्वेक्षण में, दस्तावेज़ गौर करता है कि 1990 के दशक में "यह सुझाव दिया गया था कि कोई भी लिंग और लिंग के बीच एक कट्टरपंथी अलगाव के सिद्धांत को बरकरार रख सकता है, जिसमें बाद वाले की अपेक्षा पहले वाले को प्राथमिकता दी गयी थी।

ख्रीस्तीय मानव जाति विज्ञान का प्रस्ताव

दस्तावेज का तीसरा भाग उस प्रस्ताव को प्रस्तुत करता है जो ख्रीस्तीय मानव जाति विज्ञान से आता है। यह वह आधार है जिस पर मनुष्य के अभिन्न पारिस्थितिकी का समर्थन किया जाता है। दस्तावेज उत्पति ग्रंथ का स्मरण दिलाता है जहाँ कहा गया है, "उसने नर–नारी बनाया।" यह तर्क देता है कि मानव स्वभाव को शरीर और आत्मा की एकता के प्रकाश में समझा जाना चाहिए, जिसमें "पारस्परिक संबंध" के "क्षैतिज आयाम" को ईश्वर के साथ संवाद के "ऊर्ध्वाधर आयाम" के साथ एकीकृत किया गया है।

शिक्षा की ओर मुड़ते हुए दस्तावेज जोर देता है कि बच्चों की शिक्षा के संबंध में माता-पिता का अधिकार एवं कर्तव्य पहला है जिसे दूसरों के द्वारा थोपा नहीं जाना चाहिए। उसमें यह भी कहा गया है कि बच्चों को अपने माता और पिता का अधिकार है और यह परिवार ही है जहाँ बच्चे लिंग के अंतर की सुन्दरता को पहचाना सीखते हैं।

Thank you for reading our article. You can keep up-to-date by subscribing to our daily newsletter. Just click here

11 June 2019, 17:24