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युद्ध के दौरान यौन हिंसा की परमधर्मपीठ ने की निन्दा

परमधर्मपीठ ने एक बार फिर युद्धों के दौरान महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों और लड़कों के खिलाफ यौन हिंसा के अपराधों की निंदा करते हुए कहा है कि इस तरह की घिनौनी हरकतें कभी भी युद्ध का हथियार नहीं हो सकतीं और न ही इन्हें युद्ध का परिणाम समझ कर माफ़ किया जा सकता है।

जूलयट जेनेवीव क्रिस्टफर-वाटिकन सिटी

न्यूयॉर्क, शुक्रवार, 26 अप्रैल 2019 (रेई, वाटिकन रेडियो): परमधर्मपीठ ने एक बार फिर युद्धों के दौरान महिलाओं, पुरुषों, लड़कियों और लड़कों के खिलाफ यौन हिंसा के अपराधों की निंदा करते हुए कहा है कि इस तरह की घिनौनी हरकतें कभी भी युद्ध का हथियार नहीं हो सकतीं और न ही इन्हें युद्ध का परिणाम समझ कर माफ़ किया जा सकता है।

न्यूयॉर्क स्थित संयुक्त राष्ट्र संघ में वाटिकन के वरिष्ठ महाधर्माध्यक्ष तथा परमधर्मपीठ के स्थायी पर्यवेक्षक महाधर्माध्यक्ष बेरनारदीतो आऊज़ा ने 23 अप्रैल को  "महिलाएँ, शांति और सुरक्षा: संघर्ष में यौन हिंसा", शीर्षक से संयुक्त राष्ट्र संघीय सुरक्षा समिति की एक बैठक में राष्ट्रों के प्रतिनिधियों को सम्बोधित किया।   

महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने इस तथ्य पर भी बल दिया कि यौन हिंसा के परिणामस्वरूप जन्में शिशुओं को भी जन्म लेने तथा जीने का अधिकार है, तथा उन्हें कलंक मानने के बजाय समर्थन और प्यार दिया जाना चाहिये।  

चुप्पी तोड़ें

संघर्षों के दौरान यौन हिंसा एवं उसके प्रकारों पर चुप्पी की कड़ी निन्दा करते हुए महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने कहा, कि "प्रायः अपराधियों को दण्डित नहीं किया जाता है जिसके फलस्वरूप पीड़ित अक्सर बोलने से डरते हैं।"  उन्होंने कहा, "चुप्पी तोड़ी जानी चाहिए" और "दण्ड मुक्ति के बजाय  जवाबदेही को रास्ता दिया जाना चाहिये  ताकि न्याय और पुनर्वास को जगह मिल सके।"

महिलाएं, शांति एवं सुरक्षा

महाधर्माध्यक्ष आऊज़ा ने संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव 1325 अक्टूबर 2000 का स्मरण दिलाकर कहा कि प्रस्ताव में सशस्त्र संघर्ष के सभी पक्षों का आह्वान किया गया है कि वे, विशेष रूप से, यौन हिंसा और दुर्व्यवहार के विरुद्ध महिलाओं और लड़कियों की सुरक्षा को सुनिश्चित्त करें तथा शांति कायम करने के सभी प्रयासों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा दें। उन्होंने कहा कि महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देकर ही शांति एवं न्याय की स्थापना का आश्वासन मिल सकेगा।     

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26 April 2019, 11:57