कलीसिया में नाबालिगों की सुरक्षा हेतु धर्माध्यक्षों की सभा कलीसिया में नाबालिगों की सुरक्षा हेतु धर्माध्यक्षों की सभा  

नाबालिकों की सुरक्षा संबंधित चिंतन के 21 विन्दु

कलीसिया में नाबालिगों की सुरक्षा पर चिंतन हेतु संत पापा फ्राँसिस ने 21 विन्दुओं को प्रस्तावित किया।

उषा मनोरमा तिरकी-वाटिकन सिटी

कलीसिया में नाबालिगों की सुरक्षा की सभा का उद्घाटन करते हुए, संत पापा फ्राँसिस ने धर्माध्यक्षों को 21 विन्दुओं पर चिंतन करने का आग्रह किया ताकि उनके कार्यों में सहायता मिल सके। सभा का उद्घाटन 21 फरवरी को वाटिकन में हुआ।

संता पापा फ्राँसिस ने सभा का उद्घाटन करते हुए प्रतिभागियों के सामने कुछ दिशा-निर्देश रखे। चिंतन के ये 21 विन्दु विभिन्न धर्माध्यक्षीय सम्मेलनों द्वारा प्रेषित किये गये थे जिन्हें सभा में भाग लेने वालों की मदद हेतु सूचीबद्ध किया गया है।    

चिंतन विन्दुओं की सूची इस प्रकार है-

1.   मामलों के सामने आने पर प्रमुख क्षणों में अधिकारियों द्वारा उठाए जाने वाले कदमों का संकेत देते हुए एक व्यावहारिक पुस्तिका तैयार करना।

2.   अपने आप को उन श्रवण संरचनाओं से सुसज्जित करना जिनमें प्रशिक्षित और विशेषज्ञ शामिल हों, जो शुरू में कथित पीड़ितों के मामलों को समझ सकते हैं।

3.   धर्माध्यक्ष या धर्मसंघ के सुपीरियर की प्रत्यक्ष भागीदारी के लिए मानदंड स्थापित करना।

4.   आरोपों की जांच, पीड़ितों की सुरक्षा और अभियुक्तों के बचाव के अधिकार के लिए साझा प्रक्रियाओं को लागू करना।

5.   सिविल तथा वैधानिक मानदंडों के अनुपालन में सिविल अधिकारियों और उच्च कलीसियाई अधिकारियों को सूचित करना।

6.   सभी प्रेरितिक क्षेत्रों में नाबालिगों के लिए सुरक्षित वातावरण बनाये रखने हेतु न्याय एवं उदारता में नियमों एवं संलेख का समय-समय पर जाँच किया जाना, ताकि इस मामले में कलीसिया के कार्य अपने मिशन के अनुरूप हो सके।

7.   धर्माध्यक्षों के खिलाफ आरोपों पर कारर्वाई करने के लिए विशिष्ट प्रोटोकॉल स्थापित करना।

8.   पीड़ितों की चंगाई हेतु उन्हें साथ देना, उनकी सुरक्षा एवं उपचार करना और उनकी पूरी चंगाई हेतु हर आवश्यक समर्थन प्रदान करना।

9.   धर्माध्यक्षों, धर्मसंघ के अधिकारियों, याजकों और प्रेरितिक कार्यों में संलग्न व्यक्तियों के लिए प्रशिक्षणात्मक पहल के माध्यम से यौन शोषण के कारणों और परिणामों के बारे में जागरूकता बढ़ाना।

10.  यौन दुराचार से पीड़ित समुदाय की प्रेरितिक देखभाल तथा अपराधियों के लिए पश्चताप एवं सुधार का रास्ता तैयार करना।

11.  सभी भले इच्छा रखने वाले लोगों एवं सामाजिक संचार के कार्यकर्ताओं के साथ सहयोग को मजबूत करना ताकि मामलों की सही जाँच की जा सके एवं विद्वेष, अपमान, अफवाहों और मानहानि से बचा जा सके जो गलत आरोप लगाते हैं।

12.  विवाह का न्यूनतम उम्र 16 साल किया जाए।

13.  जांच और यौन या सत्ता के दुरुपयोग से संबंधित कानूनी प्रक्रियाओं के निर्णय के लिए, विभिन्न स्तरों में उन प्रावधानों को स्थापित करना जो विशेषज्ञों की भागीदारी को विनियमित और सुविधाजनक बनाते हैं।

14.  बचाव का अधिकार: निर्दोषता को मानने के प्राकृतिक और कलीसियाई कानून के सिद्धांत को भी तब तक सुरक्षित रखा जाना चाहिए जब तक कि आरोपी का अपराध सिद्ध न हो जाए। इसलिए, प्रारंभिक जांच से पहले, अभियुक्तों की सूचियों को, यहां तक कि धर्मप्रांत द्वारा भी रोकना आवश्यक है।

15.  अपराध के संबंध में सजा के आनुपातिकता के पारंपरिक सिद्धांत का निरीक्षण करना। यह तय करने के लिए कि नाबालिगों के यौन शोषण के दोषी पुरोहित और धर्माध्यक्ष सार्वजनिक सेवा छोड़ दें।

16.  सेमिनारी और पुरोहित तथा धर्मसमाजी जीवन के उम्मीदवारों से संबंधित नियमों को प्रस्तुत करना। उनके मानवीय, आध्यात्मिक और मनोवैज्ञानिक परिपक्वता, साथ ही साथ उनके पारस्परिक संबंधों और उनके व्यवहार को विकसित करने में मदद देने के लिए प्रारंभिक और सतत् प्रशिक्षण सुनिश्चित करना।

17.  पुरोहिताई एवं धर्मसमाजी जीवन के उम्मीदवारों की योग्य और मान्य विशेषज्ञों द्वारा मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन सुनिश्चित करना।

18.  एक गुरूकुल छात्र या पुरोहित अथवा धर्मसमाजी का एक धर्मप्रांत से दूसरे धर्मप्रांत अथवा एक धर्मसमाज से दूसरे धर्मसमाज में हस्तांतरण के लिए नियम निर्धारित करना।

19.  व्यक्तिगत संबंधों में उपयुक्त सीमाओं की रूपरेखा के लिए सभी याजकों, धर्मसमाजियों और स्वयंसेवकों के लिए अनिवार्य आचार संहिता तैयार करना। कर्मचारियों और स्वयंसेवकों की आवश्यक मांगों के लिए आपराधिक रिकॉर्ड की जांच में विशिष्ट होना।

20.  दुरुपयोग और इसके प्रभावों के खतरों के बारे में सभी जानकारी और आँकड़ों की व्याख्या करना, दुरुपयोग की पहचान कैसे करना और संदिग्ध यौन शोषण की रिपोर्ट कैसे करना। यह सब माता-पिता, शिक्षकों, पेशेवरों और नागरिक अधिकारियों के सहयोग से होना चाहिए।

21.  जहां यह अभी तक लागू नहीं हुआ है, उन पीड़ितों के आसान पहुँच के लिए एक समूह का गठन किया जाए, जो किसी भी अपराध का रिपोर्ट करना चाहते हैं। इस तरह के संगठन के पास स्थानीय कलीसियाई अधिकार के संबंध में एक निश्चित स्वायत्तता होनी चाहिए और इसमें विशेषज्ञ व्यक्तियों (याजकों और लोकधर्मी) को शामिल किया जाना चाहिए जो जानते हों कि जो लोग याजकों के अनुचित दृष्टिकोण से नाराज हैं, उनके प्रति कलीसिया का ध्यान कैसे व्यक्त किया जाए।

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22 February 2019, 12:42